(तब सेना के एक कर्नल ने इस पत्रकार को जान से मारने की धमकी दी थी।)
महर्षि विद्या मंदिर के संचालकों ने भी इस षड़यंत्र में भाग लिया, प्रशासन की मिलीभगत भी सामने आई, शुरू ही से ही विवादों से घिरा रहा है यह विद्यालय
डीके पुरोहित. जैसलमेर
हिन्दुस्तान में 11 फरवरी 1996 को इस रिपोर्टर ने एक न्यूज प्रकाशित की थी- इतने पर भी खुला घूम रहा है नया नटवरलाल…। इस खबर प्रकाशन के दौरान भगवानलाल सोनी जिला एसपी हुआ करते थे और निरंजन आर्य जिला कलेक्टर हुआ करते थे। गौरतलब है कि यादरामसिंह कुंतल नाम के गांव सोन पोस्ट सोन जिला मथुरा उत्तरप्रदेश निवासी व्यक्ति के खिलाफ यह न्यूज थी और वह महर्षि विद्या मंदिर जैसलमेर में शिक्षक के रूप में कार्यरत था। बाद में वह हेराफेरी कर प्रिंसिपल बन बैठा। पता चला है कि नटवरलाल महर्षि विद्या मंदिर को तत्कालीन जिला कलेक्टर अजीत कुमार सिंह द्वारा राजस्व की 30 साल की लीज पर निशुल्क दी गई 25 बीघा भूमि और जिस पर बाद में करोड़ों की बिल्डिंग बनाई गई। इस स्कूल में अजीत कुमार सिंह की पत्नी श्रीमती किरणसिंह प्रिंसिपल हुआ करती थी। यह रिपोर्टर भी इस स्कूल का हिस्सा रहा है। अब वो स्कूल बंद हो चुका है और 30 साल की लीज पर दी गई जमीन को अवैध रूप से बेचकर यादराम और पक्षकार फरार हो गए हैं।
महर्षि विद्या मंदिर के माफियाओं के बारे में फिर किसी मंच पर खबर प्रकाशित करेंगे। फिलहाल यादराम की राम कहानी बताना जरूरी है। गौरतलब है कि इस रिपोर्टर ने पुलिस और प्रशासन को कई पत्र लिखकर नटवरलाल के खिलाफ कार्रवाई करने और इस रिपोर्टर के साथ न्याय करने की गुजारिश की थी, मगर तब भी पूंजीवादी ताकतों ने यादराम का बचाव किया और स्थानीय पत्रकारों ने पुलिस और संबंधित पक्षकारों की मुखबिरी की थी। यह पत्रकार तब भी आर्थिक संकट से जूझ रहा था और आज भी। मगर मजे की बात यह है कि उस दौर के कई पत्रकार आज करोड़ों की पूंजी के मालिक हो गए हैं। इनकम टैक्स विभाग की भी कभी उन पर नजर नहीं पड़ती। जैसलमेर की पत्रकारिता की विडंबना देखिए किसी अखबार ने महर्षि विद्या मंदिर के बेचने की खबर नहीं चलाई।
डीके पुरोहित का वह दौर था जब पूंजीवादी ताकतों से वह टकरा बैठा था। आज जो स्थिति दैनिक भास्कर में रहते जोधपुर में उसके सामने है वो ही परिस्थितियां तब जैसलमेर में उसके सामने थीं। पुलिस का तब भी गुंडाराज था और आज भी पुलिस का गुंडाराज ही है। वो दौर था जब इस रिपोर्टर को एसपी भगवानलाल सोनी की नाक नीचे सीआई भगवानसिंह राठौड़ के आदमियों ने महर्षि विद्या मंदिर परिसर से मारते-पीटते और घसीटते हुए ले जाया गया और झूठे मुकदमे बनाए गए। तब इस रिपोर्टर ने उस समय के धन्नासेठ और शहर का डॉन कहे जाने वाले वकील एलएन मेहता के खिलाफ खबर प्रकाशित की थी। उस खबर प्रकाशन के बाद एडवोकेट ओमप्रकाश वासु ने एलएन मेहता के बचाव में 2 लाख का मान हानि का नोटिस हिन्दुस्तान के संपादक आलोक मेहता के नाम भेजा था और हिन्दुस्तान रिपोर्टर से जवाब मांगा गया। इसके साथ ही यादराम ने भी इस रिपोर्टर के खिलाफ शिकायत की। मगर इस रिपोर्टर ने सारे सबूत बाय बस दिल्ली जाकर आलोक मेहता को सुपुर्द कर दिए और एलएन मेहता कुछ भी नहीं कर पाए। गौरतलब है कि महर्षि विद्या मंदिर विवादास्पद स्कूल ही रहा है। शुरू से ही यहां झगड़े फसाद और राजनीति हावी रही है। महर्षि महेश योगी खुद इंटरनेशनल डॉन रहे हैं और उनकी गंगा नदी की तरह बहने वाली संपत्ति पर दुनिया चकित रही है। यह पत्रकार फिर किसी मंच पर स्टोरी पब्लिश करेगा जिसमें महर्षि महेश योगी का धन यूरोप और अमेरिका के शस्त्र बाजार में लगा है। महर्षि विद्या मंदिर के संचालक माफिया गिरोह चलाते हैं। यहां ब्रह्मचारियों के वेश में व्याभिचारी घूमते रहे हैं। महर्षि महेश योगी के संस्थानों से भारत की सेना के कई रिटायर अफसर जुड़े रहे हैं और जिन-जिन लोगों ने महर्षि विद्या मंदिर के खिलाफ आवाज उठाई उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया।
क्या थी 11 फरवरी 1996 को हिन्दुस्तान में प्रकाशित खबर
इतने पर भी खुला घूम रहा है नया नटवरलाल
हमारे संवाददाता
जैसलमेर 11 फरवरी। एक और ‘नटवरलाल’ आए दिन जैसलमेर में नित नए गुल खिला रहा है। मगर कोई कुछ नहीं कर पा रहा है, क्योंकि मामला निजी शिक्षण संस्था का है जिसकी अपनी राम कहानी कम दिलचस्प नहीं है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार गांव सोन पोस्ट सोन जिला मथुरा उत्तर प्रदेश निवासी यादरामसिंह कुंतल के पुराने और नए कारनामों की जो फेहरिस्त सामने आई उसके बाद भी यह ‘नटवरलाल’ अगर बच रहा है तो उसका कारण है महर्षि विद्या मंदिर। विद्यालय अपना अस्तित्व और साख बचाने के लिए इस आदतन अपराधी को प्रश्रय दिए हुए है जबकि प्रशासन इसलिए आंख मूंदकर बैठा है क्योंकि विद्यालय के खिलाफ कार्रवाई करने का अर्थ है कि पूर्व कलेक्टर अजीत कुमार सिंह की फाइल खोलना।
ज्ञात रहे कि महर्षि वेद विज्ञान विश्व विद्या पीठम नई दिल्ली की एक पंजीकृत संस्था है। (पंजीयन 30 अप्रैल 1984) जिसको तत्कालीन जैसलमेर जिला कलेक्टर अजीत कुमार सिंह ने 25 बीघा भूमि खैरात में बांटी थी। (जांच का विषय है कि इस आंवटन की आड़ में कलेक्टर ने निजी फायदा क्या उठाया। ) जब जमीन दी गई तब कलेक्टर की धर्मपत्नी श्रीमती किरण सिंह महर्षि विद्या मंदिर की प्रिंसिपल थीं। बाद में कलेक्टर के स्थानांतरण पर वह भी यहां से चली गई।
बहरहाल इसी संस्था से जुड़ा होने की वजह से यादराम बच रहा है। अपनी पूर्व धर्मपत्नी को बगैर तलाक दिए दूसरी से राठौड़ी से शादी करने के बाद गांव से तिरस्कृत यह व्यक्ति इस शहर में कैसे आया कोई नहीं जानता। जैसलमेर में गांधी बाल मंदिर विद्यालय में अध्यापक की नौकरी की। जिस अवधि में वह वहां कार्यरत था उसी समय से यहां महर्षि विद्या मंदिर विद्या मंदिर में सेवारत होने का फर्जी अनुभव प्रमाण-पत्र श्रीमती नंदा शर्मा की हस्तलिपि में तैयार करवा कर उनके हस्ताक्षर भी करवा लिए। झूठा शपथ-पत्र तैयार किया। फर्जी राशन कार्ड बनाया, जिसमें प्रद्युम्न सिंह नामक जिस युवक का नाम उल्लेखित है वह जयपुर में विश्वकर्मा ऑटोलोइट में काम करता है। इसके अतिरिक्त लॉयंस क्लब के झूठे प्रमाण-पत्र का जुगाड़ किया। इन प्रपत्रों को सूचना एंव जनसंपर्क अधिकारी से प्रमाणित करवाया। उल्लेखनीय है कि सूचना एंव जनंसपर्क विभाग में कार्यरत क्लर्क का एक भाई विद्यालय में चपरासी है जिसकी आड़ में यह छोटे-मोटे कार्य करवाता रहा है। इन फर्जी प्रपत्रों के जरिए फर्जी मूल निवासी प्रमाण-पत्र का जुगाड़ करने का प्रयास किया गया। मगर विभागीय अधिकारियों की सजगता से ऐसा नहीं हो पाया। इस बीच छत्तीसगढ़ नामक कंपनी का एजेंट भी बना और यहां भी रुपयों का गोलमाल हुआ तो नगरपालिका में राजस्व निरीक्षक श्री अरुण शर्मा ने महीनों चक्कर काटे। इस बीच इसने हाल ही में जिला कलेक्टर निरंजन आर्य से भी दोस्ती कर ली और एक समारोह में बुलवा लिया और पीआरओ से मनमाने प्रेस नोट भी निकलवा लिए।
इसके पुराने मामलों में सहकर्मी की दराज तोड़कर रुपए निकालने का किस्सा भी काफी रोचक है। मजेदार बात यह है कि इसने अध्यापिका श्रीमती नंदा शर्मा और प्रिंसिपल के मथे अपराध मढ़ दिया। फिर भी बात नहीं बनी तो यादराम ने सहकर्मी को पत्र लिखकर माफी मांगी। पत्र में अपनी बीवी और बच्चों के भरण पोषण का वास्ता देकर सहकर्मी से मार्मिक क्षमा याचना की। अत: सहकर्मी ने मामला पुलिस में दर्ज नहीं करवाया। इसके अलावा मई-जून 94 में दो महीने गांव में मौज मनाया और जुलाई में जैसलमेर आकर पूरा वेतन उठाया जबकि संस्था के नियमानुसार गर्मी की न तो छुटि्टयां मिलती है और न ही वेतन।
ऐसा इसने पूर्व में भी किया बताते हैं। मगर उक्त अवधि के दस्तावेज तो कम से कम इस बात की पुष्टि करते ही हैं। यही नहीं यादराम नामक इस नटवरलाल ने संस्था के कुछ कर्मचारियों के त्याग-पत्र तक लिखवा लिए और उन्हें पता ही नहीं चलने दिया। इसी शृंखला में प्राचार्या महाेदया के पुत्र मास्टर रोनक सांखला की फर्जी टीसी भी काट दी। जो टीसी काटी गई उसका पुस्तक संख्या 30, रजिस्ट्रेशन संख्या 31, प्रवेश संख्या 31 है। आवेदन तिथि 22-12-95 तथा प्रमाण-पत्र जारी करने की तिथि 23-12-95 बताई गई है। इस टीसी पर जांचकर्ता के स्थान पर श्रीमती संतोष सिंघवी, कक्षा अध्यापिका के रूप में श्रीमती राजेंद्र गिल के हस्ताक्षर हैं। मजे की बात है कि प्रिंसिपल की जगह खुद यादराम ने अपने हस्ताक्षर कर दिए। कैसी धाेखाधड़ी है कि एक प्रिंसिपल की मौजूदगी में एक अध्यापक उसी के पुत्र की अपने हस्ताक्षर से टीसी काट देता है और प्रिंसिपल को पता ही नहीं चलता। टीसी काटने के बाद यह शख्स तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी के पास काउंटर साइन कराने भी पहुंच गया। किसी तरह प्राचार्य को पता चला तो काफी बवाल मचा। इस नटवर भाई ने पुन: प्रवेश के रुपए भी हड़प लिए और पुन: प्रवेश किया ही नहीं। बाद में रोनक सांखला पूरे साल पढ़ा और वार्षिक परीक्षा भी दी मगर मामला रहस्मय बना रहा।
इसी तरह इस किरदार ने बताते हैं कि कुछ व्यक्तियों के फर्जी अनुभव प्रमाण-पत्र भी जारी कर दिए। जिन व्यक्तियों के अनुभव प्रमाण-पत्र जारी किए गए हैं ज्ञात हुआ है कि उन्हें इस शहर में कभी नहीं देखा गया। यही नहीं ऐसे ही अपने नाते रिश्तेदारों के बच्चों के नाम अपने संस्था के प्रवेश रजिस्टर में चढ़ा दिए जिनकी संख्या एक दर्जन से भी अधिक है। इस काम में उसने एक अध्यापिका की भी मदद ली।
इस नटु भाई की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी कि इसने एक खुफिया अधिकारी मेजर अजय सिन्हा की धर्मपत्नी सीमा सिन्हा के तीन महीनों का वेतन भी हाल ही में ऑडिटर के साथ मिलकर हड़प लिया और किसी को पता ही नहीं चला। गौरतलब है कि श्रीमती सिन्हा के तीन महीनों का वेतन रुपए 3600 प्राचार्या ने बायोडाटा नहीं होने की वजह से रोक रखा था। मगर पिछले दिनों इस धनराशि को भी यादराम हड़प गया। इतना ही नहीं रेडक्रॉस सोसायटी के गेरेज में रखा इसने सामान बेचकर धूड़चंद सोनी और शांतिलाल सोनी से गहने गढ़वाए और रेडक्रॉस के पदाधिकारियों को शामिल करते हुए कुछ अध्यापकों अध्यापिकाओं को वार्षिक सदस्य बनाते हुए सात सदस्यी कमेटी बनाकर सामान को अपलिखित कर दिया। जहां सामान बेचा गया वहां भी बाद में अपलिखित कर दिया गया। इस तरह यादराम नामक इस नटवरलाल के कुछ अन्य भी कारनामे हैं। मगर अभी तक इस व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।