जैसलमेर में बड़ाबाग की छतरियां, व्यास डूंगरी, दादावाड़िया और जोधपुर में कागा की छतरियां अपने स्थापत्य की निशानी हैं
डीके पुरोहित. जोधपुर
सूर्यनगरी जोधपुर और गोल्डन सिटी जैसलमेर में देशी-विदेशी सैलानियों का आना शुरू हो गया है। यहां सैलानी घूमते-घूमते श्मशानों में पहुंच जाते हैं जहां सौंदर्य की स्थापत्य कला के दिग्दर्शन होते हैं। ऐसे में सैलानी चकित रह जाते हैं और गाइड जब उन्हें बताते हैं कि ये श्मशान स्थल है तो उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रहती।
जोधपुर में कागा की छतरियां श्मशान क्षेत्र में अपनी अमिट सौंदर्य और बेजोड़ स्थापत्य कला की छटा बिखेरती है। कागा की छतरियों का सौंदर्य देखते ही बनता है। सैलानी यहां घटों तक विचरण करते रहते हैं और कागा की छतरियों की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करते हैं। कागा की छतरियों के परिसर में ही शीतला माता का मंदिर अपने सौंदर्य के साथ आस्था की निशानी है। इसी तरह शहर के अन्य श्मशानों में भी सौंदर्य स्थलों के साथ मंदिरों के दिग्दर्शन होते हैं।
बड़ाबाग की छतरियों ने जैसलमेर की कहानी दुनिया के आकाश पर लिख दी
इसी तरह बड़ाबाग की छतरियों ने जैसलमेर की कहानी दुनिया के आकाश पर लिख दी है। सोने जैसे चमकने वाले पत्थरों से बनी यहां की छतरियां अपनी अनूठी आभा के लिए जानी जाती है। यहां राजा-महाराजाओं के काल के श्मशान है। मगर राजाओं के याद में बनी छतरियां अपने सौंदर्य के लिए विख्यात हैं। देशी-विदेशी सैलानियों को यहां का सौंदर्य खूब भाता है। यहां शहरवासी भी आए दिन पिकनिक के लिए पहुंचते हैं। अब यहां पर टिकट व्यवस्था है। देशी-विदेशी सैलानियों के लिए अलग-अलग टिकट निर्धारित हैं। इसी तरह जैसलमेर में व्यास डूंगरी और अन्य श्मशान स्थलों पर भी सौंदर्य के दिग्दर्शन होते हैं। यही नहीं जैन दादावाडियां भी अपनी खूबसूरती के लिए विख्यात हैं।
प्राचीन शिलालेखों से इतिहास की नई जानकारी आ सकती है सामने
गौरतलब है कि इन श्मशान क्षेत्रों में आज भी कई शिलालेख स्थापित है। ये शिलालेख जर्जर हो रहे हैं। लोग अनजान वश इसे ले जा रहे हैं या क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। अगर इन शिलालेखों को एकत्रित किया जाए तो इतिहास की नई जानकारी सामने आ सकती है। इंटक के माध्यम से इस दिशा में पहल की जा सकती है।