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नाचीज बीकानेरी की कविता

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मां मुझे ना मार 

मां मुझे ना मार
मां, मैं भी कुल का मान बढाऊंगी ।
मां, मैं भी रिश्तों के बाग सजाऊंगी।।
मां, मुझे कोख में हरगिज न मारना।
मां, मैं भी तेरी परछाई बन जाऊंगी ।।

मां, क्या मैं कोख में अपनी मर्जी से आई।
तुमसे जुदा करने वालों से तो जरा पूछ ।।
घनघोर- घटा बिन, कब बिजली चमके।
ये कोख से जुदा करने वालों से पूछ।।

मां, मैं जब तेरी कोख में समायी ।
क्या दोष है मेरा, ये तो बता मां।।
सूरज निकले बिन कब होता है सवेरा।
रात होने पर ही अंधेरा होता है, मां।।

मां, मेरी किस्मत तो मैं साथ लेकर आई।
मैं जग में तेरी परछाई बन जी लूंगी।।
ना करना कभी मुझे तूं मारने का पाप।
आने दे जग में, तेरा दूध ना लजाउंगी।।

बेटे-बेटी में ना करो तुम अब अंतर।
भैया के राखी मैं ही आकर बांधूंगी।।
मां, ये बात दादा-दादी को तुम बतलाना।
मां, मैं राष्ट्र-समाज को दिशा दिखाउंगी ।।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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