करवा चौथ
करवा चौथ व्रत करती मैं, सदा सुहागन रहूं पति देव जी।
देखूं छलनी से मुखड़ा तो, लगे चांद से प्यारे पति देव जी।
सोलह सिंगार सज ख़डी करवा चौथ पूजन हो पतिदेव जी।
जन्मों का नाता हो लेते आशीष चौथ मां से चलो पतिदेव जी।
प्रथम दृष्टि मिली प्रिय से, अंग अंग पुलकन खिले।
नेह की अगन में गौरी के कपोल की लालिमा खिले।
प्रणय की प्रथम अनुभूति से हृदय कमलिनी खिले।
ओ जीवन साथी मैं चेरी तेरी, तन मन समर्पित जीवन खिले।
मन की सगाई हुई जब विवाह की घड़ी निकट आवे।
भांवरें पड़ी,मंगल सूत्र पहनी,मांग सिंदूर सजे।
सात वचन, सात फेरों में जीवन की बगिया खिले।
ओ जीवन साथी, आओ जीवन भर साथ चलें।
दुल्हन आई पी के घर, नेग चार, रीत पुरावे।
मधु यामिनी की बेला में समर्पण से प्रेम पुकारे।
तन मन एक हो जावे जब मधुर स्वर गुंजावे।
ओ जीवन साथी, तेरी दहलीज पे माथा टेकू, मन भावे।
जीवन भर साथ रहने, धर्म संस्कार पूर्ण करें हम दोनों।
कुल देवी के चरणों में, संग गठजोड शीश झुकावें दोनों।
बिंदिया चमके,सिंदूर सोहे ,श्रृंगार सजे कैसी लागू, बोलो।
ओ जीवन साथी, मन से सेवा करूंगी, मनभावन बोलो।
अग्नि के समक्ष, देवी देवताओं की साक्षी में विवाह हुआ।
मेरा कुछ न रहा, जो था वो हम दोनों में मिल रमा हुआ।
पिया का घर ही सुहागन के जीवन का स्वर्ग हुआ।
ओ जीवन साथी, तेरे चरणों में ही जीवन सफल हुआ।
हृदय पटल की खोल किवाड़ी, पियाजी को बैठाया।
प्राण आधार बने आप मैंने सर्वस्व प्रिय पर हैं लुटाया।
जन्म जन्म का पावन रिश्ता ये अरमान सजाया।
ओ जीवन साथी, सदा सुहागन मरने का सपना सजाया।
सुख दुःख, ऊंच नीच, उतार चढ़ाव में साथ निभाना।
मेरी गलती को साजन दिल से माफ कर देना।
जीवन भर साथ निभाना, साथ छोड़ न देना।
ओ जीवन साथी, अब तो संग जीवन भर बिताना।
वैदिक काल की सनातन परम्परा, हमको निभानी।
धर्म, कर्म, दान ओ पुण्य, संग ही रीत निभानी।
विश्वास, अपनेपन, समर्पण से विवाह की कसमें निभानी।
ओ जीवन साथी, मैं परछाई बन रहूंगी अनुगामिनी।
मरते दम तक आपकी सेवा में जीवन बिताना।
रोज आपकी देख कर भव सागर पार करना।
मृत्यु को पाऊ जब सोलह सिंगार सज पी के कांधे पर जाना।
ओ जीवन साथी बस जीवन नैया पार लगा देना।