Explore

Search

Monday, February 17, 2025, 6:42 am

Monday, February 17, 2025, 6:42 am

LATEST NEWS
Lifestyle

राजेश मोहता की कविता

Share This Post

तप

मैं
संघर्षों के काल में
तप करता हूं
हालांकि लोग इसे
आदिकालीन मूर्खता कहेंगे
पर फिर भी यह जरूरी है
कि मैं सच की धूनी रमाऊं
जलती गिरती सभ्यता की राख को भभूत की तरह अपने शरीर पर मलूं। और भी जरूरी है
कि मैं संघर्षों की निरर्थकता से निकल कर
हारा हुआ रणछोड़दास बन जाऊं
या फिर शिकारी की मार से
खुद को बचा कर
जंगलों में भागता कोई योद्धा।
अच्छा होगा
मैं देख लूं
टूटने गिरने का सौंदर्य
और भोग लूं भटकन के
उस पूर्वजीय अनुभव को
जो सभ्यता के सूने गलियारों से
मुझे मिलता है।
बुद्ध की तरह मैं भी कह दूं संसार से
कि क्या भाग रहा है भार देख
तुझको तो मैं निस्सार जान
और चल दूं उचित तपोभूमि कि तलाश में
क्योंकि मैं।
संघर्षों के काल में
तप करता।

000

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


Share This Post

Leave a Comment