नाविक की पतवार
सागर के दरमियान है मायूस सा नज़ारा,
आओगे कब पलट के छूटा है अब किनारा।
होगा वही सुनो तुम किस्मत से जो अता है,
आगे कहां है क्या है मांझी को न पता है।
मंजिल है कितनी दूर इसका पता नहीं है,
गमगीन है या खुश है इसका पता नहीं है।
परिंदे पलट के आए कि रात बिताने हैं,
लगता है जाना तेरा बस उसको सताना है।
अरमान दिल में जो हैं वो न संभल रहे हैं,
आंखों में अश्क उसके यूं ही मचल रहे हैं।
शाहीन करम खुदा से वो लौट के आयेगा,
मायूसी एक गुनाह है ऐसा वो बताएगा।
-डॉ संजीदा खानम शाहीन