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Sunday, February 16, 2025, 5:29 pm

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सुब्रमण्यम के शुभ विचार : हफ्ते में 90 घंटे काम करके ही हम देश को दुनिया की शक्ति बना सकेंगे

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एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रण्यम के विचारों का देश में स्वागत होना चाहिए

डी.के. पुरोहित. जोधपुर

वर्क-लाइफ बैलेंस को लेकर लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के चेयरमैन एसएन सुब्रमण्यम के बयान ने बताया दिया है कि कर्म ही पूजा है। सुब्रण्यम का बयान ऐसे समय आया है जब युवा पीढ़ी काम से जी चुरा रही है। युवा पीढ़ी रातों रात अमीर बनना चाहती है। इतिहास गवाह है कि जो लगन-मेहनत और जज्बे के साथ काम करता है, सफलता एकदम उसके कदम अवश्य चूमती है। हमें गधे की तरह काम नहीं करना है। गधा एक घोड़े से अधिक काम करता है और बदले में उसकी लोग इज्जत करने की बजाय मजाक उड़ाते हैं। मगर सच तो यह भी है कि हर आदमी को पेट पालने के लिए काम करना ही पड़ता है। फिर चाहे गधा ही क्यों न हो? आज बड़ी से बड़ी कंपनियां ध्वस्त हो रही है। क्योंकि उनके कर्मचारी कम समय में कामयाब होना चाहते हैं। आइडिया दुनिया जरूर बदल सकती है, मगर जब तक समर्पण और जज्बा ना हो कोई आइडिया सफल नहीं हो सकता। वो हवा-हवाई बनकर रह जाता है।

आज हर क्षेत्र में चमचागिरी हावी है। भ्रष्टाचार हावी है। बड़ी से बड़ी कंपनियां और छोटे से छोटे कार्यालयों में कामयाबी उन्हीं लोगों को नसीब होती है जो मालिकों की चमचागिरी करते हैं। जिनके खून में भ्रष्टाचार और कोयले की दलाली होती है वो ही सफल होते हैं। कोयले के दलाल ही अपना घर भरते हैं और मालिकों का घर भरते हैं। आज कोयले की दलाली से निकल कर युवा पीढ़ी अनैतिक कार्यों के काराेबार में जुट गई है। सुब्रमण्यम का बयान कि पत्नी को कितना घूरेंगे, हफ्ते में 90 घंटे काम करिए…। यह एक बयान मात्र नहीं है। ना ही नसीहत है। यह तो हकीकत है। आज कोई भी समझदार पत्नी अपने पति को आराम करने नहीं देगी और यही कहेगी जी-जान से काम करो। एक सुलझी हुई औरत कभी भी अपने पति को कामयाब होने के लिए गलत रास्ता अपनाने को नहीं कहेगी। ईमानदारी अपने पेशे के प्रति बहुत जरूरी है। मगर आज ईमानदारी का पतन हो गया है। मूल्यों की बातें हवा-हवाई हो गई है। कर्मचारी रातो-रात अमीर बनने के लिए कोई भी रास्ता अपनाने से नहीं चूकते। मैं चूंकि पत्रकार के पेशे में हूं तो मैं ऐसे लोगों को भी जानता हूं जो पत्रकारिता के पेशे में आए तब उनके पास अपने बेटे की फीस भरने के पैसे नहीं होते थे और आज वे दूसरों के बेटों की फीस भरने की बड़ाबोली बाते करते हैं। जिन्होंने कलम को कोयला बनाकर कोयले की दलाली शुरू कर दी है। धन्य हैं ऐसे पत्रकार जिन्होंने अखबारों को बेच खाया। इसके दोषी ये नए पत्रकार ही नहीं है बल्कि ऐसे अखबारों के मालिक भी है जिन्होंने भ्रष्ट पत्रकारों को पनाह दे रखी है।

दरअसल सुब्रमण्यम के वायरल वीडियो की ही चर्चा हो रही है। जिसमें वो कर्मचारियों को सप्ताह में 90 घंटे काम करने का सुझाव दे रहे हैं। बीते साल इंफोसिस के सह संस्थापक नारायणमूर्ति ने राष्ट्र निर्माण के लिए युवाओं से हफ्ते में 70 घंटे काम करने को कहा था। इसके बाद नया विवाद खड़ा हो गया था। हालांकि सुब्रमण्यम के बयान पर एलएंडटी ने सफाई में कहा है कि भारत का दशक है। विकसित राष्ट्र बनने के हमारे साझा दृष्टिकोण को साकार करने के लिए यह समय सामूहिक समर्पण वालाहै। चेयरमैन का बयान इसी बड़ी महत्वाकांक्षा को बताता है। असाधारणा रिजल्ट के लिए असाधारण प्रयास की जरूरत होती है।

सुब्रमण्यम का यह वीडियो हाल में उनकी कर्मचारियों के साथ हुई ऑनलाइन बातचीत का बताया जा रहा है। इसमें एक कर्मचारी ने उनसे पूछा कि बिलियन डॉलर वाली कंपनी अपने कर्मियों को शनिवार को भी क्यों बुलाती है? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि मुझे खेद है कि मैं आपसे रविवार को भी काम नहीं करवा पा रहा। वैसे आप घर बैठकर क्या करते हैं? आप घर पर पत्नी को कब तक घूर सकते हैं और आपको कब तक घूरेगी? सुब्रमण्यम के बयान पर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने भी प्रतिक्रिया दी। कहा- इतनी ऊंची पॉजिशन पर बैठे लोगों को ऐसे बयान देते देखना चौंकाना वाला है। मेंटल हेल्थ मायने रखती है।

दीपिकाजी मेहनत बगैर मुकाम नहीं मिलता, अमिताभ सफल है तो मेहनत की वजह से

दीपिका पादुकोण ने सुब्रमण्यम के बयान की आलोचना की है। मगर दीपिका भूल जाती है कि आज फिल्म इंडस्ट्री में जिस्म की नुमाइश कर अभिनेत्रियां थोड़े समय में सफल हो जाती है और फिर उतनी तेजी से गायब भी हो जाती है। अगर आपमें मेहनत और समर्पण भाव नहीं है। आप अपने पेशे के प्रति गंभीर नहीं है तो सफलता नहीं मिल सकती। कुछ लोगों के लिए सफलता के मायने अलग हो सकते हैं। एक परिवार में भी कई तरह की विचारधारा होती है। समाज में कुछ लोग ऐसे भी हाेते हैं जिनके लिए रुपए ज्यादा मायने नहीं रखते और संतोषी जीव होते हैं। उनके लिए 90 घंटे काम करना जरूरी नहीं है। मेरे एक मित्र हैं वो अक्सर भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उनको दो टाइम की रोटी और अच्छी नींद दे दे। मगर दो राेटी और नींद तो भिखारियों और पशुओं को भी नसीब हो जाती है। अगर उतना महान बनना है कि दुनिया जिसे याद करें। दुनिया याद ना भी करे मगर दुनिया की नजरों को झुकाने वाला सिकंदर केवल हौसलो और मेहनत से ही दुनिया जीत सकता है। केवल कल्पनाओं और सपनों में जीने वाला दुनिया नहीं जीत सकता। इसलिए सुब्रमण्यम के विचारों को आज के युवाओं को जीने की जरूरत है। सुब्रमण्यम के विचारों से और कोई सहमत हो या नहीं मगर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अवश्य सहमत हाेंगे और खुद मैं सहमत हूं। मोदी जी दिन में 18-20 घंटे काम करते हैं। जिसके लिए सफलता जुनून के हद तक रगों में दौड़ती है। जिसे उसके सपने सोने नहीं देते, उनके लिए कोई बाधा मुश्किल नहीं होती। कभी कभी आदमी को समझौते करने पड़ते हैं। कदम पीछे करने पड़ते हैं। जीतने के लिए कभी कभी हारना भी पड़ता है। यहां तो भगवान श्रीकृष्ण को भी युद्ध भूमि से भागना पड़ा और वे रणछोड़दास कहलाए। लेकिन जीतने के लिए हर दांव खेलने पड़े तो खेलें। गिरते हैं शेरे सवार मैदान ए जंग में…वो क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलें…। सुब्रण्यम के विचार शुभ है। भारत को दुनिया की नंबर वन इकोनॉमी बनाने और हर क्षेत्र में समर्थ बनाने के लिए इस देश के युवा को सप्ताह में 90 दिन काम करना ही होगा।

जैसा टीम लीडर होगा, वैसे ही एम्पलॉई होंगे 

दरअसल जैसा टीम लीडर होता है, कंपनी के कर्मचारी भी वैसा ही व्यवहार करते हैं। अगर टीम लीडर ऊर्जावान होता है तो वह अपने कर्मचारियों को ऊर्जा के साथ काम करने को प्रोत्साहित करता है। कई बार कड़े निर्णय लेने पड़ते हैं। एलएंडटी के चेयरमैन ने कुछ भी गलत नहीं कहा। परिवार को समय देना पड़ता है। देते ही हैं। बीमारी, हारी, शादी, ब्याह, बच्चों की पढ़ाई, सामाजिक जिम्मेदारी, गमी, मौत, लाेकाचार, पत्नी और बच्चों के साथ एकांत के खुशी के पल और मनोरंजन…एक सफल गृहस्थी में ये सब भी जरूरी है। मगर क्या सप्ताह में 90 घंटे काम करते हुए इन पर फोकस नहीं किया जा सकता? सवाल यह नहीं है। सवाल युवा पीढ़ी का यह है कि उनको पैकेज क्या मिलेगा? आज का युवा छह महीने काम करता है और छह महीने आराम करता है। आज बड़ी बड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों से कहती है कि वे छह महीने काम करें और छह महीने अवकाश पर रहें। भारत भूमि पर जितने भी महापुरुष और संत-महात्मा हुए हैं उन्होंने कर्म को ही पूजा माना। यहां संत-महात्मा ही क्यों राक्षसों ने भी हजारों साल तपस्या कर वरदान अमरता के मांगे और सफल हुए। बगैर कर्म के सफलता प्राप्त करना असंभव है। यहां अगर भगवान राम को 14 साल का वनवास हुआ तो उन्होंने भी 14 साल वन में कर्म किया। कर्म की अगर बात करते हैं तो योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कर्म के नाम पर गीता की रचना कर डाली। श्रीकृष्ण ने कर्म का संदेश देकर अर्जुन के सारे संशय दूर कर दिए। अब ऐसे समय में सुब्रण्यम के विचार बहस का हिस्सा नहीं होना चाहिए। सुब्रण्यम जैसे व्यक्तियों की हिन्दुस्तान को जरूरत है।

बच्चा-बच्चा सुब्रमण्यम बनेगा तभी हम विश्व की ताकत बनेंगे

अब समय आ गया है कि हम आलस छोड़ कर युद्ध की तरह दुनिया के मैदान में उतर जाएं। हमारे सामने चुनौती बड़ी है। अब बच्चे-बच्चे को सुब्रण्यम बनना होगा। सप्ताह में 90 घंटे काम करना होगा। आदमी काम करने से नहीं मरता। आदमी पड़े-पड़े मर सकता है। मरना तो एक दिन तय है तो काम करके ही मरें ना। काम करते करते मौत भी आ जाए तो हम भगवान को मुंह दिखा सकते हैं। वरना सोते-सोते प्राण भी निकल गए तो घर वालों को भी पता नहीं चलेगा। इसलिए सुब्रण्यम की बातों को विवादास्पद बनाने की बजाय हर हिन्दुस्तानी को ऐसे विचारों का स्वागत करना चाहिए। आने वाला समय हिन्दुस्तान का है। संयुक्त राष्ट्र संघ में अभी भारत के पास वीटो पॉवर नहीं है। पांच महाशक्तियां- अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन के पास ही वीटो पॉवर हैं। अब छठी महाशक्ति बनकर भारत को वीटो पॉवर लेना है तो आज से हम सबको तय करना होगा कि हम सप्ताह में 90 घंटे काम करेंगे।

 

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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