देखो सुहाना आया बसंत
दिशाओं ने मौन व्रत तोड़ा
हवाओं ने अपना रुख मोड़ा
सूर्य की रश्मि प्रखर हुई
शीत ने दामन कुछ यूं समेटा
धरा ने नव शृंगार किया
घर आई हो जैसे नई दुल्हन
अंगड़ाई लेने लगा नवयौवन
पत्तों पर चमक अनूठी छाई
फूलों पर भवरों ने नज़र दौड़ाई
वाग्ग देवी ने छेड़े वीणा के तार
पीत वस्त्रों का जैसे सज़ा बाजार
देख छटा निराली ये धरा मुस्कुराई
फाल्गुन के स्वागत की अगुवाई
चांद प्रफुल्लित चांदनी मादक हुई
ज्यों चकोर की पूरी हुई मुराद
हरियाली का सुनाई दिया अनहदनाद
मौसम में दिखने लगे रंग अनंत
देखो सुखद सुहाना
आया बसंत।
