आलेख : दिलीप केसानी, प्रख्यात लेखक-शाइर-गीतकार
रावण दहन की परंपरा पर दोबारा विचार करना एक गंभीर विषय है। रावण एक विद्वान, तपस्वी और शिव भक्त था, लेकिन उसके कर्मों की वजह से उसे दंड मिला। परंपराओं का सम्मान ज़रूरी है, लेकिन क्या इन्हें हर हाल में निभाना भी ज़रूरी है?
आज के समय में जब नैतिकता लगातार गिर रही है, तो क्या हम सच में रावण से बेहतर हैं? क्या केवल प्रतीकात्मक दंड से समाज की बुराइयां खत्म हो सकती हैं? यह एक ऐसा विषय है, जिसे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से गहराई से समझने की ज़रूरत है। अगर न्याय व्यवस्था अपराधियों को सुधारने का मौका देती है, तो क्या रावण के चरित्र पर भी निष्पक्षता से दोबारा विचार नहीं किया जा सकता?
आज के समाज में वास्तविक रावण कौन है? हाल ही में जोधपुर में एक व्यक्ति ने अपनी रिश्ते में लगने वाली मासूम 8 महीने की बच्ची के साथ दुष्कर्म किया। इससे पहले, एक कचरा बीनने वाली 18 महीने की मासूम बच्ची के साथ भी ऐसी ही घिनौनी हरकत हुई। क्या ये अपराध रावण के पापों से कम हैं? रावण ने सीता का अपहरण किया था, परंतु उसने उन्हें स्पर्श तक नहीं किया। आज के समाज में ऐसे दानव मौजूद हैं, जो मासूम बच्चियों की अस्मिता को रौंद रहे हैं। हमें विचार करना होगा कि असली रावण कौन है और उसका दहन कहां किया जाना चाहिए—किसी पुतले में या हमारे समाज में फैले इन राक्षसों के रूप में?
न्यायालय ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों पर सुनवाई कर सकते हैं, लेकिन इस मुद्दे को केवल परंपरा और आधुनिकता के टकराव के रूप में देखने के बजाय, इस पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए। रावण दहन की परंपरा को बनाए रखना या उसमें बदलाव लाना समाज की सामूहिक सोच और निर्णय पर निर्भर करता है।
इसका मतलब यह हरगिज़ नहीं कि हम रावण के किए को सही ठहरा रहे हैं। उसने जो किया, उसकी सज़ा भी उसे मिल चुकी है। लेकिन रावण जितना बड़ा विद्वान आज तक कोई नहीं हुआ। शिव तांडव स्तोत्र की रचना भी उसी की देन थी।
अगर रावण और कंस की तुलना करें, तो कंस के अपराध रावण से लाख गुना बड़े थे। उसने अपनी सगी बहन और जीजा को जेल में क़ैद रखा और अपने सात भांजे-भांजियों की हत्या भी कर दी। लेकिन आज कोई कंस को याद नहीं करता।
क्या हमें केवल प्रतीकात्मक रावण का दहन करना चाहिए, या समाज में मौजूद असली रावणों को पहचानकर उनके खिलाफ कठोर कदम उठाने चाहिए? यह प्रश्न हर सोचने वाले इंसान के लिए विचारणीय है।
