डॉ. कैलाश कौशल के अलौकिक अनुभव यहां पेश है उनकी रचना ‘कुंभ चालीसा’ के साथ
राइजिंग भास्कर डॉट कॉम. जोधपुर
शहर की वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. कैलाश कौशल अपने परिवार के साथ प्रयागराज कुंभ की तीर्थयात्रा कर हाल ही में जोधपुर लौटीं हैं। डॉ. कौशल का कहना है कि उन्हें कुंभ में अलौकिक दर्शन हुए। वास्तव में यह संगम मात्र नहीं है और ज्ञान, कर्म और अध्यात्म की त्रिवेणी है। कुंभ पहुंचकर उन्हें अलौकिक आनंद की अनुभूति हुई। 144 साल बाद यह संयोग बना तो देश-विदेश के 55 करोड़ से अधिक लोगों ने प्रयागराज में स्नान कर पुण्य अर्जित किया। डॉ. कौशल ने कहा कि असली भारत की झलक कुंभ में देखने को मिली। छोटे-मोटे अपवादों को छोड़ दें तो इतना बड़ा आयोजन हमारी लोकआस्था के साथ किसी चमत्कार से कम नहीं है। खुद भगवान हमारे साथ रहते हैं और यहां आकर छोटे-बड़े, अमीर-गरीब एक हो जाते हैं और कुंभ में सबको समदर्शी के रूप में सम्मान मिलता है। संगम का निर्मल जल मानव मात्र के लिए हैं। यह किसी के साथ भेदभाव नहीं करता।
डॉ. कौशल ने कहा कि उन्होंने 2017 में उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर भी स्नान किया था। मगर इस बार जो अलौकिक आनंद मिला इसका वर्णन नहीं किया जा सकता। उनके साथ 16-17 लोगों का दल था। उन्होंने कहा कि कुंभ में नई पीढ़ी का पूरा इन्वोलमेंट देखने को मिला। हमारे लिए सुकून की बात है कि नई पीढ़ी आज भी संस्कार और संस्कृति से विलग नहीं हुई। ऐसे आयोजन हमारी समृद्ध परंपरा के पोषक होते हैं। डॉ. कौशल ने बताया कि कुंभ के दौरान उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर कुंभ चालीसा का सृजन किया। इसकी कुछ पंक्तियां कुंभ में ही तैयार हो गई थी और पूरी रचना जोधपुर आकर तैयार की। यहां राइजिंग भास्कर के पाठकों के लिए कुंभ चालीसा पेश है-
कुंभ चालीसा
तीरथराज प्रयाग की महिमा अपरंपार।
संगम में अवगाहन से हो जाता उद्धार।
जय जय हे तीरथ के राजा, महाकुंभ है अद्भुत साजा
अमृत बूंदों की है महिमा, बढ़ती जाए तिहारी गरिमा
देव हस्त से कलश जो छलका, धरा हो गई ज्यों पुरी अलका
भगीरथ तप से गंगा आई, शिव जटाओं में उरझाई
गंगा की लहरों का नर्तन, शिव ने किया दंभ का मर्दन
गंगा यमुना का हुआ मिलन, सरस्वती से पूरा है संगम
त्रिवेणी महिमा न जाए बखानी, धाराओं की अकथ कहानी
अद्वैत आनंद की अविरल धारा, तप आराधन का विस्तारा
सनातन की समृद्ध परंपरा, शक्तियाँ यहाँ हैं परा, अपरा
तपस्वी जन सब अलख जगाए, संगम के इस तीरे आए
‘ योगी’, जती, मुनि संन्यासी, देव, नाग , किन्नर विश्वासी
शैव, शाक्त, वैष्णव सब साधक, नाथ, सिद्ध, गंधर्व आराधक
देव, अदेव,नक्षत्र, ग्रह सारे, त्रिवेणी जल सबको तारे
छाप तिलक औ झोलाधारी, सब आ रहे हैं शरण तिहारी
राजा रंक सब इष्ट को आराधैं, पुण्य घड़ी का लाभ उठावें
साधु संत, औ यक्ष, अघोरी, डुबकी लगाएँ बहोरि बहोरि
अखाड़ों के हैं शाही स्नान, अलख जगाए करते ध्यान
देह धारे ये विदेही नागा, राम नाम में चित्त है लागा
नागाओं के कौतुक सारे, कुंभ के आकर्षण हैं प्यारे
त्रिवेणी की महिमा को गावें, जन -जन के मन को सरसावें
धन्य धन्य संगम अति पावन, मन, वच, कर्म से हो अवगाहन
स्नान, ध्यान यह अति विशेषी, संगम धारा है समावेशी
भीतर- बाहर द्वार सब खोले, वाचाल हो मूक, मूक पुनि बोले
शत चवालीस सुखद संयोगा, रोग, शोक सब विरत हों भोगा
अंतस चक्षु जब हों उन्मीलित, राग -द्वेष, ईर्ष्या सब कीलित
गंग जमुन की ये निर्मल धारा, निमज्जन से कलुष निस्तारा
घाटों पर छाई अप्रतिम छटा, लहरों की भी सघन घटा
ज्ञान, कर्म, अध्यात्म त्रिवेणी, भक्ति पथ की सुंदर छेनी
विदेशी भी इस संस्कृति में पगे,जन रेला देख रह गए ठगे
उमड़ पड़ा आस्था का ज्वार, सिमट आया ज्यों पूरा संसार
अमृत रसायन जो भी करे, पाप , ताप , शोक दुख सब हरे
त्रिवेणी जल डुबकी लगावैं, इहिं लोक तें तर – तर जावें
जो भी करें कुंभ अवगाहन, ताहि के सब पाप नसावन
भक्तिमय है पावन संगम, आकंठ निमज्जित स्थावर
जंगम कुंभ सूक्ष्म है, कुंभ विराट, महाकुंभ जाती हर बाट
जो यह पढ़े कुंभ चालीसा, होय सिद्धि साखी कैलासा
अहं, दंभ सब नष्ट भ्रष्ट हों, दूर हों शुंभ, निशुंभ
सब विधि होंहि सुखारि सब, अमित फले महाकुंभ
संगम स्नान की पुण्य धरा, कहे ‘कैलास ‘कविराय
निर्मल मन डुबकी लगाए तो जन्म सफल हो जाए
जय जय हे ! तीर्थन के राजा, तीरथराज प्रयाग !
पुण्य फले, हम कुंभ चले, कितना है बड़भाग !!
@ डॉ. कैलाश कौशल
