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Tuesday, March 18, 2025, 12:43 pm

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दलितों को जीने का अधिकार न दे वो साहित्य नहीं कूड़ा है : परिहार

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हंसराज बारासा हंसा की चार पुस्तकों का होटल चंद्रा इन में हुआ लोकार्पण 

डीके पुरोहित. जोधपुर

आकाशवाणी के पूर्व डायरेक्टर और वरिष्ठ चिंतक डॉ. कालूराम परिहार ने कहा कि दलित सदियों से अभिजात्य वर्ग के रहमो करम पर पलता आया है। दलितों का हमेशा से शोषण होता आया है। आरक्षण के नाम पर उन्हें बराबरी पर लाने का कानूनी हक तो मिला मगर फिर भी समाज में प्राकृतिक रूप से बराबरी का अधिकार नहीं मिला। आज भी दलितों के साथ शोषण और अत्याचार होता रहता है। चाहे वो दौर हो चाहे आज का दौर जिस साहित्य में दलितों को जीने का अधिकार ना हो वो साहित्य नहीं कूड़ा है। डॉ. परिहार रविवार को होटल चंद्रा इन में उड़ान संस्थान की ओर से वरिष्ठ साहित्यकार हंसराज बारासा ‘हंसा’ की चार पुस्तकों के लोकार्पण समारोह में बतौर अध्यक्ष उद्बोधन दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि दलितों के साथ प्राचीन काल से अन्याय होता आया है। आज भी चाहे कोई सरकारें रही हो, दलितों को तो अत्याचार सहना ही पड़ रहा है। जब केंद्र से लेकर हाशिये तक एक नहीं होते दलितों के साथ अन्याय जारी रहेगा। यह फर्क केंद्र और हाशिए का है। आज भी केंद्र अलग थलग है और हाशिए पर खड़ा दलित वर्ग अलग-थलग है। इसी वंचित वर्ग की बारासा पैरवी करते हैं। दलित होना आज के दौर में भी अभिशाप ही है। आरक्षण ने जीने का जरिया जरूर दिया है, पर अधिकार नहीं। आरक्षण के नाम पर जीवन स्तर ऊंचा उठाने और आर्थिक स्थिति मजबूत कराने की परिस्थितियां जरूर दी है, पर दलितों के शोषण का सिलसिला नहीं रुका। डॉ. परिहार ने कहा कि बारासा के साहित्य में इसी वंचित और सदियों से शोषित वर्ग की पीड़ा है। इस पीड़ा को दलित साहित्य यदा-कदा उठाता रहा है।

डॉ. परिहार ने कहा कि दलित आज भी नौकरी करने भर में विश्वास रखता है। दलित अपनी मानसिकता से ऊपर नहीं उठ रहा है। आज भी कूड़ा उठाने वाली नौकरी कर जीवन व्यापन से आगे कुछ नहीं सोचता। दलितों को सोचना चाहिए कि कूड़ा करकट उठाने से ऊपर भी कोई दुनिया है। दलितों को समाज में कुछ बनकर आगे बढ़ने की चाह रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा प्राचीन साहित्य मनुवाद से ऊपर नहीं उठ पाया। आज मनुवाद की दुहाई दी जाती है। मनुस्मृति की बात की जाती है। मनुस्मृति से ज्यादा मनु के नाम पर साहित्यकारों ने जो विवाद खड़े किए और राजनेताओं ने जो भेद किए उस पर मनन की जरूरत है। मनु स्मृति से भी ज्यादा मनु के नाम पर साहित्यकारों की सोच घातक है।

कहानी लिखने से ज्यादा कहानी में बने रहना जरूरी : संवितेंद्र  

इस मौके पर 50 से अधिक पुस्तकें लिख चुके और कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार सत्यदेव संवितेंद्र ने कहा कि कहानी लिखने से भी ज्यादा जरूरी कहानी में बने रहना जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज कहानीकार कहानी लिखते जरूर है, मगर उसमें बने रहने की चुनौती है। लिखने से भी ज्यादा जरूरी निरंतर लिखना जरूरी है। उन्होंने कहा कि वे संस्मरण एकत्रित कर रहे हैं और जल्दी ही उनकी संस्मरणों पर आधारित पुस्तक आएगी। इसमें बचपन से लेकर अब तक अनेक संस्मरण शामिल किए जाएंगे। संवितेंद्र ने कहा कि हम बारासा के साहित्य में दलितों के प्रति उनकी संवेदनाओं का दिग्दर्शन करते हैं। दलितों के साथ सदियों से अत्याचार होते आए हैं। दलित साहित्य लिखने वाला ही जानता है कि दलितों के साथ क्या अत्याचार हुआ। उन्होंने कहा कि बारासा कहानी लिखते ही नहीं कहानी जीते हैं। बारसा की गजलों में दलितों की पीड़ा है। वे वंचित वर्ग की ढाल बनते हैं। वे वंचित वर्ग की आवाज बनते हैं। सबसे बड़ी बात वे दलितों के साथ होने वाले अत्याचारों का जीवंत दस्तावेज प्रस्तुत करते प्रतीत होते हैं।

बारासा की कहानियों में मुंशी प्रेमचंद की परंपरा है : राठी

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कथाकार हरिप्रकाश राठी ने कहा कि बारासा की कहानियों में स्मृति तत्व मौजूद है। हमारे सामने तीन हजार साल पुरानी कई कहानियां भी आज स्मृति में है। मुंशी प्रेमचंद की कई कहानियां ऐसी है जिन्हें हम भुला नहीं सकते। चाहे गौदान हो, चाहे नमक का दरोगा हो, चाहे नशा कहानी हो। पर आज कहानी पर गहरा संकट है। हम पिछले तीन चार दशकों में ऐसे कितनी कहानियों को स्मृति पटल पर रख सकते हैं? जब तक कहानी स्मृति पटल पर नहीं रहती। तब तक कहानीकार की सफलता नहीं हो सकती। मगर बारासा की कहानियां हमारे स्मृति पटल पर अमिट छाप छोड़ती है। इस दृष्टि से बारासा कहानी के साथ न्याय करते प्रतीक होते हैं।

दलितों को कमजोर ना समझें, वे इसी समाज के कर्णधार : राठौड़

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कहानीकार मनोहरसिंह राठौड़ ने कहा कि दलितों को कमजोर नहीं समझना चाहिए। वे इसी समाज का अंग है। वे भी समाज के कर्णधार है। राठौड़ ने अपने बचपन के किस्से भी सुनाए और कहा कि उनके जमाने में भी दलितों को आदर के साथ संबोधित करने की परंपरा रही है। अगर कोई उनके साथ अन्याय करता तो हमारे पैरेंट्स हमें टोक देते थे। मगर यह बात भी सही है कि इस वर्ग का सदियों से शोषण हुआ है। हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि सारी दुनिया का कचरा उठाने वाला यह वर्ग नहीं होता तो आज हम भी नहीं होते। राठौड़ ने कहा कि पहले कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था बनी मगर अब हमने उसे जातियों में बांट दिया है। जब से जातियों के आधार पर हमारा मूल्यांकन होने लगा तब से समस्या खड़ी हो गई है।

इन्होंने पत्रवाचन किया

इस मौके पर पूजा अग्रवाल, वरिष्ठ साहित्यकार श्याम गुप्ता शांत, लीला कृपलानी की ओर से हर्षद भाटी और महेश पंवार ने पत्रवाचन किया। हंसराज बारासा ‘हंसा’ के तीन कविता संग्रह एवं एक कहानी संग्रह का लोकार्पण हुआ। विशिष्ट अतिथि पूर्व कॉलेज प्राचार्य व साहित्यकार नेमीचंद बोयत ने अपने संबोधन में अपने दलित साहित्य सृजन की यात्रा का वर्णन किया। जनार्दन नागर की कहानियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आज भी कई दलित जातियों पर लिखने की जरूरत है। आज भी वंचित वर्ग के साथ अन्याय की आवाज उठाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज भी दलित वर्ग के साथ अन्याय होता है। यदा-कदा ऐसी घटनाएं होती रहती है मगर अखबार की सुर्खिचां नहीं बनती। मामले दबा दिए जाते हैं। उन्होंने बाबा नागार्जुन का उदाहरण देते हुए कहा कि बाबा नागार्जुन ने दलितों की पीड़ा कई बार उठाई। पर आज नागार्जुन की तरह लिखने वाले कहां रहे हैं। आज के परिप्रेक्ष में ऐसी ही रचनाओं की महती आवश्यकता है जो समाज में सच्ची जागरूकता पैदा करे और मनुष्य से मनुष्य का भेद मिटाए। वक्ताओं ने हंसराज ‘हंस’ की रचनाओं को बहुत ही वास्तविक और समाज के प्रत्येक तबके को जागरूक करने वाली और आम आदमी को झकझोर देने वाली बताया। लगभग तीन घंटे तक अनवरत चलने वाले कार्यक्रम में मंच संचालन राजेंद्र खींवसरा व मनशाह नायक ने किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार डीके पुरोहित और स्वतंत्र पत्रकार पंकज जांगिड़ को सम्मानित किया गया। इस मौके पर हंसराज बारासा हंस की धर्मपत्नी को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में राइजिंग भास्कर की एडिटर इन चीफ राखी पुरोहित, श्री जागृति संस्थान के सचिव हर्षद भाटी, वरिष्ठ साहित्यकार तृप्ति गोस्वामी काव्यांशी, रविंद माथुर, राजेंद्र खिंवसरा, अशफाक अहमद फौजदार, असरार भाई, उमेश दाधीच सहित शहर के अनेक साहित्यकार मौजूद थे।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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