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Tuesday, March 18, 2025, 1:03 pm

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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर दो कविताएं

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डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’

हर किरदार में सफल नारी

खूब निभाई मैने अपनी जिम्मेदारी।
तब जाकर खुश रंग हुई घर की फुलवारी।

मन मंदिर में उस दिन गूंजे ढोल नगाड़े।
जिस दिन मेरे आंगन में गूंजी किलकारी।

एक तमन्ना कब से ही बैठी है जिद्द पर।
घर का घर हो बाहर ऊंची चारदीवारी।

नर नारायण नर बलशाली नर गज काया।
पर नर से कमज़ोर नहीं है कोई नारी।

शाम हंसी है मौसम ने अंगड़ाई ली है।
वो ना आया मैने तो कर ली तैयारी।

तुम तो ठहरे केवल अपने मन के नायक।
तुम क्या जानो क्या होती है दुनियादारी।

जो मेरे उलझे मांझे को सुलझा डाले।
उस पर मैं लुटा दूं अपनी हस्ती सारी।

उस पर क्यूं “शाहीन” भरोसा तुम कर बैठी।
जिसकी रग रग में थी भरी हुई गद्दारी।

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नाचीज बीकानेरी

मैं नारी हूँ

मैं हूँ तो ये दुनियाँ हैं
मैं स्त्री, महिला
मोहतरमा
नारी कहलाती हूँ ।

मैं माँ, बेटी,बहु, बहन, पत्नी
चाची, भाभी, मौसी
नानी, दादी के रिश्तों से
पहचानी जाती हूँ ।

मैं ममता, प्रेम,स्नेह
प्यार-दुलार-करुणा
की मूर्ति बन
अपना कर्तव्य निभाती हूँ ।

मैं घर की शोभा
परिवार की रौनक
महारानी से दासी तक
भूमिका में देखी जाती हूँ ।

अभिनेत्री, कवयित्री, विदुषी
खेत – खलिहानों में
फैक्ट्री – कारखानों की दीवारों में
पंचायत से संसद तक मेरी आवाज गुंजाती हूँ ।
मैं लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा का रूप हूँ
मैं बलात्कार -अगवा की शिकार होती हूँ
मेरी नुमाईशी विज्ञापनों में क्या दशा होती है
मैं पल-पल भोगी जाती हूँ ।

घर से निकल जब बाहर आई
घूंघट की घुटन से आजादी पाई
नारी होकर नारी जाति की दुश्मन हूँ
मैं घर-घर आदमी को नचाती हूँ ।

नारी उत्पीड़न की आवाज उठी
नारी उत्थान -अभिकरण, आयोग बने
बच्चा पैदा करने वाली मशीन नहीं अब
पुरुषों के कंधे से कंधा मिला साथ निभाती हूँ

मैं नारी तो नारी ही रहूँगी
पुरुष की हमसफ़र रहूँगी
कष्ट सहना मेरी आदत है
सृष्टि की रचना कर पोषण कराती हूँ

मैं धैर्य – धीरज की देवी हूँ
धरती जैसी मुझमे सहनशीलता है
मैं प्रेम – प्यार – करना का सागर हूँ
मैं अपने पर आ जाऊँ तो सर्वनाश करवाती हूँ ।

मैं नारी नर की खान
मैं गृहणी-नारी – दासी
क्या मैं भोगविलास का साधन हूँ
मैं नहीं तो दुनियाँ नहीं, ये बात तुम्हें समझाती हूँ ।

मईनुदीन कोहरी “नाचीज बीकानेरी “
मो-9680868028

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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