-कांग्रेस के पास अभी कोई ऐसा लीडर नहीं है जो जिताऊ हो, ऐसे में रवींद्रसिंह भाटी को कांग्रेस प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित कर दे तो देश में कांग्रेस की सरकार फिर से बन सकती है। रवींद्रसिंह भाटी रातों रात देश के नेता बन सकते हैं। आज सोशल मीडिया का जमाना है। सोशल मीडिया इन दो तीन महीनों में ही रवींद्रसिंह भाटी को मोदी के टक्कर का नेता बना देगा और आने वाले समय मे देश की फिजां बदल जाएगी।
-रवींद्रसिंह भाटी चमत्कारी व्यक्तित्व है। कांग्रेस को बिना समय गंवाए रवींद्रसिंह भाटी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ना चाहिए। फिर मोदी को भी यह चुनाव जीतने में पसीने आएंगे। क्योंकि रवींद्रसिंह भाटी जयप्रकाश नारायण से भी बड़ा आंदोलन खड़ा करने में सक्षम है। रही बात रवींद्र सिंह भाटी की तो उसमें गजब की प्रतिभा है। राजस्थान विधानसभा चुनाव में निर्दलीय जीतने के बाद उनकी पूरे देश में चर्चा हो चुकी है और पूरे देश में उनकी पहचान है। कांग्रेस को इसी पहचान को भुनाना चाहिए। युवा नेता के हाथ में कांग्रेस अपनी बागडौर सौंप दे तो कांग्रेस का भी भला हो जाएगा और इस देश का भी। अब राहुल और प्रियंका में वो मादा नहीं रहा। केवल और केवल रवींद्रसिंह भाटी ही कांग्रेस की वैतरिणी को पार लगा सकता है।
डीके पुरोहित. जोधपुर
2023 के विधानसभा चुनाव की जंग की कोख से रवींद्रसिंह भाटी पैदा हुआ। उसने इतिहास लिख दिया और इतिहास बदल भी दिया। ठीक वैसे ही जैसे 2019 में जयनारायण व्यास विवि में निर्दलीय चुनाव लड़कर 57 साल के इतिहास में पहली बार निर्दलीय छात्रसंघ अध्यक्ष बने। वे एक बोल्ड छात्र नेता रहे हैं। जवानी का जोश उनमें देखा जा सकता है। वे पुलिस से भी भिड़ सकते हैं और बड़े से बड़े अफसरों से। परिणाम की वे चिंता नहीं करते क्योंकि परिणाम वे खुद बदल देते हैं। रवींद्रसिंह भाटी नाम अब किसी पहचान का मोहताज नहीं है। जब विधानसभा चुनाव की रणभेरि बजी और रवींद्र ने निर्दलीय पर्चा भरा तो उनके समाज के लोग और कुछ भाजपा नेताओं ने कहा कि रवींद्र अभी बच्चा है। चुनाव हारेगा। मगर उसी बच्चे ने बता दिया कि वह बच्चा नहीं ऐसा युवा है जिसके पीछे युवाओं का हुजूम उमड़ता है। वह जहां जाता है वहां फिजां बदल जाती है। वह जब बोलता है तो लोग सुनते ही रह जाते हैं। वह जब अफसरों को फटकारता है तो अफसरों से जवाब देते नहीं बनता। हमने उनके कई वीडियो देखे हैं। वे निडर लीडर है। आत्मविश्वास उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ है।
अब लोकसभा चुनाव की चर्चा हो रही है। फिर कहा जा रहा है कि रवींद्रसिंह भाटी बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहिए। हमारा भी यह मानना है कि रवींद्र को चुनाव जरूर लड़ना चाहिए। रवींद्र को अभी अपनी अलग पहचान बनानी है। एक ऐसे युवा नेता कि जो हमेशा जीतता है। जनता जिसके साथ है। युवा जिसके साथ है। शिव एक छोटा विधानसभा क्षेत्र है। अगर रवींद्र बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र से जीतते हैं तो वे शिव की जनता के लिए वे सबकुछ कर सकते हैं जो विधायक बन कर रहे हैं या कर सकते हैं। लेकिन लोकसभा सदस्य बनकर उनका कद बढ़ेगा। उनका दायरा बढ़ेगा। नए रास्ते उनका इंतजार कर रहे हैं। नया युग उनका इंतजार कर रहा है। आने वाला समय रवींद्रसिंह भाटी का है।
रवींद्रसिंह भाटी का जन्म 3 दिसंबर 1997 को शिव विधानसभा क्षेत्र के दुधोड़ा गांव में हुआ। उनके पिता शैतानसिंह शिक्षक हैं और माता अशोक कंवर गृहिणी है। उन्होंने जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय से बीए और एलएलबी किया। वे 2019 से 2022 तक जयनारायण व्यास विवि में छात्रसंघ अध्यक्ष भी रहे। अभी वे राजस्थान विधानसभा के सदस्य हैं। उन्होंने 3 दिसंबर को अपने 26वें जन्म दिन पर राजस्थान विधानसभा चुनाव में अंशुमानसिंह भाटी के साथ सबसे कम उम्र के विधायक बनने का गौरव प्राप्त किया। वे छात्र राजनीति से ही हमेशा क्रांतिकारी रहे हैं। अफसरों से वे सीधे भिड़ जाते हैं। जब बात युवाओं के हक की आती है तो वे जेल जाने से भी नहीं डरते और डंडे खाने से भी नहीं डरते। पुलिस अफसरों को वे ऐसे जवाब देते हैं कि उनकी बोलती बंद हो जाती है। उनकी अपनी अदा है। ठेठ राजस्थानी में वे जो कुछ बोलते हैं इतना साफ-साफ बोलते हैं कि हिंदी के लोगों को भी साफ-साफ समझ में आ जाता है। राजस्थानी में भाषण देना ही उनकी अपनी अदा है। रवींद्रसिंह भाटी को सफलता एक ही रात में नहीं मिली। इसके पीछे उनका संघर्ष छिपा है। वे बात-बात में कहते हैं- मां भगवती की कृपा रही तो हम अवश्य जीतेंगे। अब आप लाठां रह्या। ऐसे कई जुमले हैं जो रवीेंद्रसिंह भाटी के व्यक्तित्व की पहचान बन गई है। उनकी अदा एक ऐसे युवा नेता की है जिसकी जनता दीवानी है। युवाओं के बीच रवींद्रसिंह भाटी खूब पॉपुलर है। हम तो यहां तक कहेंगे जयप्रकाश नारायण से बड़ा आंदोलन आज की तारीख में कोई करने का मादा रखता है तो वह है रवींद्रसिंह भाटी। रवींद्रसिंह भाटी के सामने खुला मैदान है। अभी वे बेलगाम घोड़े हैं। उनके पास युवाओं की फौज है। तय उन्हें करना है कि उन्हें राजनीति में आखिर करना क्या है? उनका लक्ष्य क्या है? क्या वे केवल कौतक करना चाहते हैं या वाकई अपने भविष्य को लेकर गंभीर है? क्योंकि राजनीति में जब तक लक्ष्य तय नहीं कर लेते तब तक हवा में लठ चलाने से कुछ नहीं। जीवन के कुछ लक्ष्य तय करने जरूरी है।
वैसे ही राजनीति में यह तय करना जरूरी है कि हमें बनना क्या है? क्या राजस्थान का मुख्यमंत्री, या देश का प्रधानमंत्री। लक्ष्य कोई भी असंभव नहीं होता। आदमी ठान ले तो वह प्राप्त कर ही लेता है। राजस्थान में मुख्यमंत्री की बात की जाए ताे रवींद्रसिंह भाटी जैसा कोई नेता ही सही मायने में राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने लायक है। आज वे निर्दलीय विधायक जरूर है, लेकिन कल रवींद्रसिंह भाटी का ही है। वे एक दिन राजस्थान की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हाे सकते हैं। यही नहीं अगर रवींद्रसिंह भाटी ठान ले कि नहीं उन्हें तो देश का प्रधानमंत्री बनना है तो यह कार्य भी मुश्किल नहीं। क्योंकि युवा चाहे तो क्या नहीं कर सकते। पत्थरों का सीना तोड़ने का मादा केवल युवा रखता है। रवींद्र तो अभी 26 साल का है। सारा भविष्य उसके सामने है। अभी से उन्हें अपने भविष्य की दिशा तय करनी होगी और उसके लिए माहौल बनाना होगा। राजनीति में कुछ भी आसान नहीं है और कुछ भी मुश्किल भी नहीं। हो सकता है कल नरेंद्र मोदी अपना उत्तराधिकारी रवींद्रसिंह भाटी को बना दे। लेकिन इसके लिए उसे अपने आप को साबित करना होगा। यह बचपना छोड़ना होगा। जीतना हमारा लक्ष्य होना चाहिए मगर सिद्धांत भी हमारे सीने में होने चाहिए। देश के लिए और देश की जनता के लिए करना जरूरी है, मगर संस्कार भी जरूरी है। मौजूदा परिस्थितियों में रवींद्रसिंह भाटी ने जो किया उसे हम गलत नहीं मानते। ऐसा उन्हें करना चाहिए था, क्योंकि भाजपा को यह अहसास करवाना जरूरी था कि उन्होंने एक योग्य और कर्मठ छात्र नेता को टिकट नहीं देकर उसके साथ अन्याय किया है। लेकिन राजनीति अल्पकालीन नहीं होती। जीवन में कई बार कड़वे घूंट पीने पड़ते हैं। ऐसे मोड़ भी आते हैं जब आप हाशिए पर आ जाते हैं। तब भी संयम ही सबसे बड़ा हथियार होता है। आज भाजपा में वसुंधरा राजे जिस तरह हाशिए पर आ गई है, वैसे ही किसी भी नेता के साथ कुछ भी हो सकता है। मगर जीतने के बाद भी पार्टी के निर्णय कई बार निराश कर देते हैं। लेकिन सही मायने में नेता की पहचान तभी होती है जब वह विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य नहीं खोए और जब मौका आए तो ऐसी चोट करे कि दुश्मन भी संभल न पाए। वसुंधरा राजे का उदाहरण अभी हमारे सामने है। उन्हीं के हाथों से भजनलाल शर्मा के नाम की पर्ची निकलती है और वे मुख्यमंत्री बन जाते हैं। वसुंधरा देखती रह जाती है। स्तब्ध रह जाती है। जिस वसुंधरा ने राजस्थान के लिए इतना कुछ किया उसके लिए यह चोट काफी गहरी थी। मगर वसुंधरा ने खून का घूंट पिया। अब वक्त आने पर वह अपनी चालें चलेंगी। वक्त कब करवट बदल दे कोई कुछ नहीं कह सकता। भजनलाल की पर्ची सरकार कब तक चलती है यह तो समय ही बताएगा। लेकिन वसुंधरा ऐसी लेडी है जो कोई चमत्कार किए बिना नहीं रहेगी।
यह सब बात बताने का हमारा मकसद यही है कि रवींद्रसिंह भाटी ने अभी केवल सफलता का स्वाद चखा है। किस्मत छात्र राजनीति में भी उनके साथ थी और विधानसभा चुनाव में भी। मगर किस्मत बार-बार साथ नहीं देती। राजनीति में कब किसका कब किस मुद्दे पर चरित्र हनन कर दिया जाए। कब किस तरह मुद्दे बनाकर अनावश्यक बखेड़ा खड़ा कर दिया जाए। एक साफ-सुथरे छवि वाले नेता के मुंह पर साजिशन कब कालिख पोत दी जाए राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं। इसलिए रवींद्रसिंह भाटी को संभलकर चलने की जरूरत है। जो छवि उन्होंने युवाओं के बीच बनाई है उसे मरते दम तक बनाए रखने की जरूरत है। आने वाला समय निसंदेह रवींद्रसिंह भाटी का है। अब तय उसे करना है कि वह राजस्थान की राजनीति में आगे बढ़ना चाहता है या देश की। हालांकि लोकसभा चुनाव में जीतकर भी वह राजस्थान की राजनीति में अपनी दखलअंदाजी गजेंद्रसिंह शेखावत की तरह कर सकता है। हो सकता है कल उन्हें पतली गली से मुख्यमंत्री भी बना दिया जाए। मगर सब कुछ इतना आसान नहीं है। राजनीति में गंभीरता बहुत जरूरी है। भविष्य के लाभ के लिए कई बार तात्कालीक लाभ छोड़ने पड़ने पड़ते हैं। कई बार आपको टिकट नहीं मिलता है तो यह नहीं कि बात-बात में निर्दलीय ताल ठोंक दें। पार्टी का अनुशासन भी कोई चीज होती है। निर्णय गलत या सही हो सकते हैं, मगर निर्णय पार्टी करती है। उसे मानने ही पड़ते हैं। पार्टी ने निर्णय किया और पर्ची भजनलाल के नाम निकल पड़ी। हालांकि यह लोकतंत्र की हत्या कर दी गई है। लेकिन जब बहुमत निरंकुश लोगों के हाथ में हो तो ऐसा ही होता है। अटलबिहारी वाजपेयी कहा करते थे लोकतंत्र संख्या का खेल है। आज मोदी के पास इतनी बड़ी संख्या में सीटें हैं कि वे जो चाहे जिसके नाम की पर्ची निकाल सकते हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भगवान भी किसी न किसी के नाम की पर्ची निकालना पहले से तय कर चुका होता है। जनता की अदालत में तो झूठ-सच सब बिकता है, मगर भगवान हर सच-झूठ का हिसाब रखता है। उसकी कहानी को कोई समझ नहीं पाता। इसलिए किसी नरेंद्र मोदी को पर्ची निकालते से पहले सोच लेना चाहिए कि क्या वह पर्ची नरेंद्र मोदी ने निकाली है या जनता ने निकाली है। क्या वाकई में पर्ची सरकार को जनता ने बहुमत दिया है। क्या उसके चेहरे पर जनता ने वोट दिया था।
हम अपने रास्ते से भटक नहीं रहे हैँ। रवींद्रसिंह भाटी को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि राजनीति में कुछ भी कब भी हो सकता है। जनता के भरोसे उन्होंने 2023 को चुनाव तो जीत लिया, मगर जरूरी नहीं कि अगला विधानसभा चुनाव रवींद्रसिंह भाटी ही जीते। क्योंकि तब कोई और रवींद्रसिंह भाटी भी पैदा हो सकता है। हमारे यहां रत्नों की कमी नहीं है। जब राजनीति की कोख में रवींद्रसिंह भाटी पैदा हो सकता है तो कोई और रवींद्रसिंह भाटी से भी तेज तर्रार नेता क्यों नहीं आ सकता। इसलिए अपनी सफलता को पचाने का संयम होना चाहिए। अपनी जमीन को कभी नहीं भूलना चाहिए। अपने लक्ष्य से कभी नहीं भटकना चाहिए। परिस्थितियों को बदलने की कूबत रखनी चाहिए। जब परिस्थितियां अनुकूल नहीं तो शांत ही और संयम ही सबसे बडा हथियार होता है। बात-बात में राजपूतशाही दिखाना और मर्दानगी दिखाना भी कभी-कभी बेवकूफी हो सकती है। राजनीति का जो अध्याय नरेंद्र मोदी ने लिखा है उस तक पहुंचने के लिए शेर का कलेजा चाहिए। रवींद्रसिंह भाटी अभी तुम्हें बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। सफलता तुम्हारें चरण स्पर्श कर चुकी है, मगर जब तक तुम्हारा लक्ष्य स्पष्ट नहीं होगा, तब तक लुढ़क-लुढ़क कर जीतकर भी क्या हासिल होगा। एक विचारधारा के साथ तो आना पड़ेगा। एक पार्टी के साथ तो आना पड़ेगा। अगर मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनना लक्ष्य है तो किसी न किसी पार्टी से जुड़ना होगा। न केवल जुड़ना होगा वरना पार्टी की नीतियों-रीतियों को मानना पड़ेगा। फिर चाहे पार्टी तुम्हारे साथ अन्याय करे या न्याय करे, उसके निर्णयों को मानना पड़ेगा। बगावत करने का परिणाम हमेशा पक्ष में ही आए यह जरूरी नहीं। कभी कभी आत्मविश्वास ले डूबता है। इसलिए लोकसभा चुनाव में बाड़मेर-जैसलमेर क्षेत्र से चुनाव लड़ने से पहले यह जरूर सोच लेना कि भविष्य में तुम्हारा लक्ष्य क्या है? राजस्थान की राजनीति में आगे बढ़कर मुख्यमंत्री की सीट तक पहुंचना है या केंद्रीय राजनीति में कदम रखना है। हालांकि अशोक गहलोत भी कई बार सांसद बने और कई बार विधायक बने और अंतत: राजस्थान के मुख्यमंत्री बने, लेकिन वे एक पार्टी की विचारधारा से आजीवन बंधे रहे। हर हाल में उन्होंने पार्टी के साथ अपने को जीया। तुमने तो टिकट नहीं मिला तो पार्टी के निर्णय के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ लिया। यह बात ठीक है कि तुम जीत गए। जीतना तुम्हारा तय था। इसके लिए तुम्हारी मेहनता भी थी। युवा तुम्हारे साथ थे। लेकिन अपनी सफलता पर इतराने की भी जरूरत नहीं है, क्योंकि सफलता कभी स्थाई नहीं होती। सफलता क्षणिक भी नहीं होती। यह हमारा व्यक्तित्व, हमारी समझदारी, हमारी नीतियां, हमारी कार्यशैली, हमारा जनता से जुड़ाव, हमारा शत प्रतिशत समर्पण…ऐसे कई फैक्टर होते हैं जो भविष्य की दिशा तय करते हैं, ऐसे में रवींद्रसिंह भाटी को आज ही तय करना होगा कि उसका लक्ष्य क्या है? क्या वह राजस्थान की पॉलिटिक्स में केवल संयोग से आया या कोई गंभीर उद्देश्य लेकर। अगर गंभीर उद्देश्य है तो उसे उसी गंभीरता के साथ लोकसभा चुनाव में भी लड़ना चाहिए। मगर इस बार निर्दलीय नहीं किसी पार्टी से। जरूरी नहीं कि वह भाजपा से ही चुनाव लड़े। रवींद्रसिंह भाटी को अपनी ताकत पर भरोसा है तो वह कांग्रेस की टिकट पर भी चुनाव लड़कर जीत सकता है। कोशिश तो यही करनी चाहिए कि रवींद्रसिंह भाटी को कांग्रेस प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित कर दे।
और अब बात शुरू करते हैं कांग्रेस और रवींद्रसिंह भाटी की
असली बात अब शुरू करते हैं। कांग्रेस इस समय संक्रमण काल से ग्रस्त है। कांग्रेस के पास ऐसा कोई जिताऊ नेता नहीं है जो कांग्रेस का उद्धार कर सके। ऐसे में कांग्रेस के धनकुबेरों को गेम खेलना चाहिए। जिस तरह मीडिया ने रातों रात मोदी को नया प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया, ठीक वैसे ही कांग्रेस को जल्दी ही रवींद्रसिंह भाटी को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कर देना चाहिए। अभी दो तीन महीने चुनाव में है। तब तक रवींद्रसिंह भाटी की देशभर में सभाए हों। राजस्थान की फिजां बदलने में तो अकेले रविंद्रसिंह भाटी ही काफी है। जो 25 सीटें भाजपा की झोली में जाती हुई दिख रही है वे 25 सीटें रवींद्रसिंह अकेले अपने दम पर कांग्रेस की झोली में लाकर रहेंगे। रवींद्रसिंह भाटी मजबूत खिलाड़ी है। उसे सही दिशा की जरूरत है। अभी उसके सिर पर किसी पार्टी ने पूरी ताकत के साथ हाथ नहीं रखा है। मोदी तो अपनी महत्वाकांक्षा के चलते उन्हें मौका देने से रहे और मोदी के चलते रवींद्रसिंह भाटी का प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा होने से रहा, ऐसे में कांग्रेस को बिना देर किए रवींद्रसिंह भाटी को अपना प्रधानमंत्री का चेहरा बनाकर देशभर में उनकी सभाएं करवानी चाहिए। अभी भी मौका है कांग्रेस के पास वापसी का। अगर जीवन भर राहुल गांधी और सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी की जय जयकार करते रहे तो कांग्रेस को जीत का सपना भी नहीं आएगा। मल्लिकार्जुन खरगे की बूढ़ी हड़डियों में वो ताकत नहीं रही कि वो कांग्रेस का भला कर सके। इसलिए देश को और कांग्रेस को रवींद्रसिंह भाटी की जरूरत है। कांग्रेस को अब मिशन 2024 पर निकलना है तो रवींद्रसिंह भाटी को देश का प्रधानमंत्री घोषित कर व्यवस्थित रूप से चुनाव लड़ना चाहिए। इधर रवींद्रसिंह भाटी जोड़ तोड़ में खुद ही मोदी से कम माहिर नहीं है। मोदी से भी ज्यादा मादा रवींद्रसिंह भाटी अकेले में है। मोदी की अब उम्र हो चुकी है, जबकि रवींद्रसिंह भाटी जवान है। हम आने वाले सशक्त भारत की तस्वीर तो रवींद्रसिंह भाटी में देखते हैं। जिस तरह देश के पूंजीपति घरानों और मीडिया ने मोदी नाम के जीव को प्रधानमंत्री बनाकर चैन लिया वैसे ही अब देश की मीडिया, देश के पूंजीपति घरानों और सोशल मीडिया को चाहिए कि रवींद्रसिंह भाटी का प्रचार प्रधानमंत्री के रूप में घर-घर में करे और उसे देश का प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करेे। कांग्रेस के पास यही अंतिम हथियार है अगले चुनाव में वापसी करने का।