मैं एक कुटिया का वासी हूं…
पुरस्कार मेरी चाह नहीं
मैं परिवर्तन का अभिलाषी हूं
पेट पालता घर संभालता
मैं एक कुटिया का वासी हूं
राज सिंहासन पलक पांवड़े
मेरी आशाओं से परे
वह मधुकर की प्यारी कलियां
मेरी शाखाओं से परे
सूखी हड्डी ,टूटी खटिया ,
भूखे नंगे का मैं संगी साथी हूं
पुरस्कार मेरी चाह नहीं मैं
परिवर्तन का अभिलाषी हूं
ओढ़ कुहासा रैन बिताई
ठिठुरन मेरी संगी है
हाडमांस को सेका प्रभाती
जीवन मेरा पतंगी है
उठा चिलम का धुआं मेरे
जा शुन्य से टकराता है
धुआं चरण धूलि में समाया
जहां बैठी भारत माता है
धन वैभव से जड़ी धरा से
मेरा कोई ना नाता है
आया और चला गया मैं
नादान आभासी हूं
पुरस्कार मेरी चाह नहीं
में परिवर्तन का अभिलाषी हूं
पेट पालता घर संभालता
में एक कुटिया का वासी हूं
