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Wednesday, January 22, 2025, 10:59 pm

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भजन सरकार का अजब तमाशा : ना रिपोर्ट आई, ना ही जांच की गई, दिलीप कच्छवाह और विकास राजपुरोहित बहाल, लापरवाही से युवक की मौत मामले में किसी भी जिम्मेदार को सजा नहीं मिली

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-एमडीएमएच ट्रोमा के रेड जोन में वेंटिलेटर पर अस्पताल के जिम्मेदारों की लापरवाही से जान गंवाने वाले गोपाल सेन काे न्याय नहीं मिला। 12 जनवरी 2024 को सुबह 4 बजे के आसपास अस्पताल की लापरवाही से उसकी मौत हुई थी। जिम्मेदारों को सजा मिलने की बजाय उन्हें बहाल कर दिया गया है। 

अभी तक न ही कमेटी की रिपोर्ट आई। ना ही तथ्यों की पड़ताल की गई। किसी ने जांच तक शुरू नहीं की। कहीं कोई कार्रवाई के स्वर नहीं सुनाई दिए। किस के बयान हुए? किससे पूछताछ हुई? किन परिस्थतियों का आकलन किया गया? कितने लोगों को गवाह बनाया गया? मरीजों के परिजनों से क्या बात हुई? उस दिन की पूरी स्थितियों का आकलन भी नहीं किया गया। आनन फानन में राज्य सरकार फरमान जारी करती है और एसएन मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल डॉ. दिलीप कच्छवाह और मथुरादास माथुर अस्पताल के तत्कालीन अधीक्षक विकास राजपुरोहित जो एपीओ थे उन्हें बहाल कर फिर से अपनी-अपनी जगह काम करने का कहा जाता है। यही है भजनलाल सरकार का न्याय। सुंदरकांड पाठ करने वाली भजनलाल सरकार के स्वर ऐसे ही रहे तो लोकतंत्र से जनता का विश्वास ही उठ जाएगा। बताया तो यही जा रहा है कि पूरे मामले में केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत के दबाव में चिकित्सा विभाग के अधिकारियों ने यह कार्रवाई की। अगर दिलीप कच्छवाह और विकास राजपुरोहित दोषी नहीं थे तो उन्हें एपीओ किया ही क्यों? अगर एपीओ किया तो ऐसी क्या परिस्थितियां पैदा हो गई कि बिना जांच कमेटी की रिपोर्ट आए और बिना पड़ताल किए उन्हें बहाल कर दिया गया। जबकि इस मामले में जो सीधे-सीधे स्टाफ दोषी रहा उन्हें भी कानून अभी तक कोई सजा नहीं हुई। कुल मिलाकर यह युवक की मौत नहीं एक तरह से मर्डर था और दोषियों को अभी तक सजा नहीं मिली है।

डीके पुरोहित की जोधपुर से विशेष रिपोर्ट

पश्चिमी राजस्थान के सबसे बड़े अस्पताल मथुरादास माथुर अस्पताल में डॉक्टरों, अधिकारियों और स्टाफ की लापरवाही के चलते एक युवक की जान चली गई थी। इस मामले में भजनलाल सरकार की नौटंकी सामने आ गई है। राजनीतिक प्रेशर के चलते एसएन मेडिकल कॉलेज के एपीओ किए गए प्रिंसिपल दिलीप कच्छवाह और मथुरादास माथुर अस्पताल के एपीओ किए अधीक्षक विकास राजपुरोहित की सेवाएं बहाल कर दी गई है। वे फिर से अपने-अपने स्थान पर काम कर सकेंगे। युवक की मौत के बाद राजनीतिक नौटंकी हुई। अखबारों में मामलों उछला तो राजनेताओं ने भी आनन-फानन में जिम्मेदारों को एपीओ कर इतिश्री कर ली। जांच कमेटी बिठा दी। जांच कमेटी की क्या रिपोर्ट आई? किन को दोषी माना? क्या-क्या फैक्टर रहे जिसकी वजह से मरीज की मौत हुई ऐसे कई सवाल आज भी अनुत्तरित ही हैं और दोनों जिम्मेदारों की सेवाएं बहाल कर दी गई है। भजनलाल सरकार की इस नौटकी से भाजपा सरकार से भी न्याय की उम्मीद खत्म हो गई है।

क्या कहता है कानून  

सवाल: पेशेंट के इलाज में लापरवाही होने पर क्या कानून है?
जवाब: 
भारत में मेडिकल नेग्लिजेंस एक तरह का अपराध है। लापरवाही करने पर डॉक्टर के खिलाफ क्रिमिनल या सिविल केस दर्ज कर सकते हैं। क्रिमिनल केस में दोषियों को जेल की सजा हो सकती है, जबकि सिविल केस में पीड़ित नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजे की मांग कर सकता है। मेडिकल नेग्लिजेंस से पीड़ित व्यक्ति नीचे दिए कानून का सहारा ले सकता है।

मरीज की मौत होने पर- IPC की धारा 304A के तहत केस कर सकते हैं। दोषी पाए जाने पर डॉक्टर को 2 साल की जेल हो सकती है। इसके साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

लापरवाही के मामले- IPC की धारा 337 और 338 के तहत केस कर सकते हैं। इसमें दोषी पाए जाने पर 6 महीने से लेकर 2 साल तक की जेल और जुर्माने की सजा दी जा सकती है।

सवाल: मेडिकल नेग्लिजेंस होने पर इसकी शिकायत कहां कर सकते हैं?
जवाब: 
नीचे दिए तरीकों से इसकी शिकायत कर सकते हैं।

  • अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट को लिखित शिकायत कर सकते हैं। फिर इसकी कॉपी CMO को देनी होती है।
  • राज्य की स्टेट मेडिकल काउंसिल में शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
  • इंडियन मेडिकल काउंसिल में शिकायत कर सकते हैं।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत डॉक्टर के खिलाफ कंज्यूमर कोर्ट में भी मुकदमा किया जा सकता है।

नोट– डॉक्टर इलाज में लापरवाही करता है तो उस पर क्रिमिनल और सिविल दोनों तरह की लायबिलिटी बनती है।

सवाल: डॉक्टर को कब जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है?
जवाब:
 अगर डॉक्टर इलाज में अपनी तरफ से पूरी कोशिश करे, लेकिन मशीनों का न होना, सुविधाओं की कमी या किसी प्राकृतिक आपदा के कारण मरीज को कुछ हो जाता है तो इसमें डॉक्टर जिम्मेदार नहीं माना जाता है।

फ्लैश बैक : अब आते हैं पूरे प्रकरण पर, वही करेगा दूध का दूध और पानी का पानी 

एमडीएमएच ट्रोमा के रेड जोन में गोपाल सेन वेंटिलेटर पर था। 12 जनवरी 2024 को सुबह 4 बजे के आसपास अचानक लाइट चली गई और गोपाल का वेंटिलेटर बंद हो गया। वह जोर जोर से सांसे लेने लगा। लेकिन ट्रोमा के सीएमओ कुलदीप सिंह ड्यूटी से नदारद थे। वहीं नर्सिंग स्टॉफ मनीषा मौके पर मौजूद थीं और नर्सिंग कर्मी ओमाराम सो रहा था। मनीषा के उठाने पर भी ओमाराम नहीं आया। गोपाल की हालत बिगड़ते देख मनीषा घबरा गई। लाइट जाने के बाद जनरेटर भी नहीं चला। मनीषा ने ऑक्सीजन सिलेंडर से लगाने की काेशिश की तो एक सिलेंडर खाली था और दूसरा लॉक था, जिसकी चाबी नहीं होने के कारण उसे लगाया नहीं जा सका और गोपाल की मौत हो गई। करीब 4:40 पर लाइट आई, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।

तथ्य क्या बताते हैं : यह प्राकृतिक आपदा नहीं मानवीय लापरवाही और अक्षम्य अपराध है 

इसमें प्राकृतिक आपदा नहीं थी। सब मानवीय लापरवाही थी। मशीनों का न होना जैसी बात भी नहीं थी, मशीनें थी, मगर उन्हें अपडेट नहीं रखा गया। लाइट जाना स्वाभाविक प्रक्रिया हो सकती है, मगर जनरेटर भी तो विकल्प होता है, वह भी नहीं चला। पहली बात तो अस्पताल जैसे संस्थान में लाइट जाना ही अपराध है। चलो मान लिया किसी वजह से लाइट चली भी गई तो उसके लिए स्टाफ को तैयारी रखनी चाहिए। जनरेटर जैसी चीज भी होती है। सबसे बड़ा सवाल मरीज की जिंदगी का है। हर व्यक्ति को कानून और संविधान ने जीने का अधिकार दिया है। अस्पताल जैसे संस्थानों में इस प्रकार की लापरवाही का कोई स्थान नहीं है। किसी को एपीओ कर देना और जिम्मेदारों को निलंबित कर देना सजा नहीं है। असली सजा तो कानून सम्मत मिले तब नैसर्गिक न्याय होता है। जिम्मेदारों को कानूनन दो साल की जेल और जुर्माना लगाया जाना चाहिए था। मगर भजनलाल सरकार ने अपना कर्तव्य नहीं निभाया और जिम्मेदारों को जिस स्तर पर भी एपीओ से मुक्त कर बहाल किया गया, वह अक्षम्य अपराध है। देखने वाली बात यह है कि मरीज का इलाज कौन डॉक्टर कर रहा था और इस पूरे मामले में कौन-कौन सीधे तौर पर दोषी है, उन्हें जब तक कानून से सजा नहीं मिलेगी, मृत्तक के साथ न्याय नहीं होगा।

सूत्र : गजेंद्रसिंह शेखावत के दबाव में हुई कार्रवाई

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत के दबाव में दिलीप कच्छवाह और विकास राजपुरोहित को बहाल किया गया है। बताया जा रहा है कि उन्होंने चिकित्सा विभाग के आला अफसरों पर दबाव बनाकर दोनों जिम्मेदारों को बहाल करवाया। इसमें भजनलाल सरकार भी दोषी है। सारे तथ्य सामने होने के बावजूद बिना कमेटी की रिपोर्ट आए, बिना दोषियों की पड़ताल किए, आनन-फानन में दोनों जिम्मेदारों को बहाल करना राजनीतिक न्याय पर सवाल खड़े करता है।

कहां गए मानवाधिकार आयोग के रखवाले? कहां गया हाईकोर्ट?

दो महीने हो गए युवक की मौत के मामले को। इस मामले में मानवाधिकार आयोग को प्रसंगज्ञान लेना था। हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की जानी थी। उपभोक्ता संरक्षण आयोग में मामला दर्ज करवाया जाना था। कहीं कुछ नहीं हुआ। मानवाधिकार आयोग के जस्टिस गोपालकृष्ण व्यास तक ने कोई कार्रवाई नहीं की। जबकि वे बड़े ही एक्टिव हैं। इस रिपोर्टर ने जब एयु बैंक घोटाले की खबर ब्रेक की थी तो उनका फोन आया था कि उनके पैसे एयु बैंक में जमा है, क्या निकाल लूं। तब इस रिपोर्टर ने कहा था निकाल लो। अब यह रिपोर्टर फिर मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस गोपालकृष्ण व्यास से आग्रह करता है कि मृतक युवक को न्याय मिलना चाहिए। चाहे राजनीतिज्ञ नौटंकी करे, नेता नमकहराम निकल जाए मगर न्याय के रास्ते बंद नहीं होने चाहिए। जस्टिस गोपालकृष्ण व्यास को चाहे कितना ही बड़ा नुकसान उठाना पड़े मगर मृतक युवक के साथ न्याय होना ही चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए इस मामले में दोषियों के खिलाफ आयोग के साथ-साथ  कोर्ट भी प्रसंगज्ञान लेगा और कोर्ट अपने नियंत्रण में पूरा मामला लेकर नए सिरे से पूरे मामले की जांच करवाएगा और दोषियों को सजा मिलने तक सबको नौकरी से संस्पेंड किया जाना चाहिए। अस्पताल जैसे संस्थान में लापरवाही से इंसान मर जाए और कहीं कोई आवाज नहीं उठे। बड़े-बड़े अखबारों के बड़े-बड़े रिपोर्टरों की कलम कुंद हो गई है। बड़े-बड़े संपादकों की क्रांतिकारी कलम खामोश हो गई। इस मुद्दे पर दो शब्द तक नहीं लिखे गए। फिर जब मीडिया ही आवाज नहीं उठाएगा तो न्याय की आस किससे की जाएगी?

और इस नौटंकी का क्या होगा? 

हादसे के अगले दिन चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर जोधपुर आने वाले थे। तत्कालीन अधीक्षक ने इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई और संभागीय आयुक्त बीएल मेहरा ने भी एडीएम द्वितीय को जांच सौंपी। इसके साथ ही तत्कालीन अस्पताल अधीक्षक डॉ. राजपुरोहित ने उस रात के सीएमओ कुलदीप सिंह, नर्सिंग कर्मी ओमाराम व मनीषा को निलंबित कर दिया। हादसे के अगले दिन 13 जनवरी को चिकित्सा मंत्री ने मामले काे गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारियों से पूछताछ भी की और जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया। मेडिकल एजुकेशन ग्रुप 1 के सीएस इकबाल खान ने 18 जनवरी को प्रिंसिपल डॉ. दिलीप कच्छवाह व अधीक्षक डॉ. विकास राजपुरोहित को एपीओ करने के आदेश जारी कर दिए। उनकी जगह एसएन मेडिकल कॉलेज प्रिंसिपल के पद पर डॉ. रंजना देसाई व एमडीएम अधीक्षक के पद पर डॉ. नवीन किशोरिया को लगाया गया। मामले में APO किए गए तत्कालीन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल और एमडीएम अस्पताल अधीक्षक को बहाल किया गया है। राज्य सरकार की ओर से एक आदेश जारी कर मेडिकल कॉलेज पूर्व प्राचार्य डॉ. दिलीप कच्छवाह व एमडीएमएच के पूर्व अधीक्षक डॉ. विकास राजपुरोहित की सेवाओं को डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज में बहाल कर दिया है। और इस तरह जनवरी में जिस युवक की लापरवाही के चलते मौत या कहें मर्डर हुआ उसका पटाक्षेप हो गया। वाह रे सिस्टम। वाह रे न्यायिक प्रक्रिया। वाह रे लोकतंत्र। यहां इंसान की मौत की कोई कीमत नहीं।

 

 

 

 

 

 

 

 

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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