ये चिट्ठी लिखने वाले ने अपनी जान का खतरा बताया है और ओपन नहीं करने का आग्रह किया है इसिलए हम चिट्ठी प्रकाशित नहीं कर रहे हैं। हम सुप्रीम कोर्ट से गुजरात दंगों की फाइल फिर से री ओपन करने की मांग करते हैं। राइजिंग भास्कर देश भर की मीडिया रिपोर्ट का विश्लेषण कर आने वाले दिनों में फिर से एक व्यापक बहस छेड़ेगा। इस संबंध में सभी पत्रकारों से आलेख आमंत्रित है।
डीके पुरोहित. जोधपुर
इस चिट्टी में किसी का नाम नहीं है, मगर देश की सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि 2002 में गुजरात दंगों में जिस कदर मुसलमानों का कत्लेआम हुआ, उसकी निपष्पक्ष जांच की जानी चाहिए। इस मामले को रीओपन करना चाहिए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनके साथ उद्योगपति गौतम अडाणी और अन्य पूंजीपतियों की साजिश की जांच की जानी चाहिए। इस चिट्ठी के बाद देश में फिर एक बार बहस छिड़ गई है कि क्या मोदी के आंचल पर मुसलमानों के खून का दाग है? क्या देश का प्रधानमंत्री क्रूर है? इन सभी सवालों के जवाब के लिए सुप्रीम कोर्ट से इस फाइल को रीओपन करने की मांग की गई है।
गौरतलब है कि 2002 में सांप्रदायिक हिंसा ने गुजरात राज्य और अहमदाबाद शहर को तबाह कर दिया था। जिसमें लगभग 2,000 लोग मारे गए। क्योंकि सत्तारूढ़ भाजपा पार्टी ने गुजरात को ‘हिंदुत्व की प्रयोगशाला’ घोषित किया था, पूरे भारत के विश्लेषकों ने हिंसा को भाजपा की नीति के रूप में देखा और इसके अन्यत्र संभावित प्रभावों पर बहस की। पहले से ही तनावपूर्ण आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन और राजनीतिक अनिश्चितता के दौर में, कुछ भाजपा नेताओं ने जुआ खेला कि गुजरात के मुसलमानों और सामान्य रूप से कानून के शासन पर हमला, अनुयायियों और मतदाताओं को आकर्षित करेगा। उनका जुआ कम से कम अल्पावधि में सही साबित हुआ। इस चिट्ठी के माध्यम से कानूनी और अवैध संघर्षों के माध्यम से होने वाले सांस्कृतिक, सामाजिक, भौगोलिक और शैक्षिक पुनर्गठन और इन प्रक्रियाओं पर हिंसा के प्रभाव की जांच की मांग की गई है। पत्र में मुसलमानों के खिलाफ लगातार प्रचार के परिणामस्वरूप उनकी गिरती स्थिति की जांच की मांग की गई है। हिंसा के परिणामस्वरूप राज्य को किस हद तक नुकसान हुआ है मानवाधिकारों का हनन हुआ, इस संबंध में मोदी सरकार का चेहरा दुनिया के सामने लाने की इस चिट्ठी में मांग की गई है।