होली और विश्व कविता दिवस के मौके पर वरिष्ठ कवि अनिल भारद्वाज की कलम से निकली दो रचनाएं पाठकों के लिए पेश हैं-
मेरे सरताज ना आएंगे
होली में सब रंग आएंगे,
प्यासे तीर उमड़ आएंगे,
पर ए रंगों की बरसात,
मेरे सरताज ना आएंगे।
सपनों में रंग डाला तुमको
प्यासी अंखियों के काजल से,
भिगो दिया भीगी पलकों ने,
तन के सिंदूरी बादल से ।
इंद्रधनुष कांधों पर रखकर,
रंगों के कहार आएंगे,
पर ए रंगों की बारात,
मेरे सरताज ना आएंगे।
सखियों के अधरों से रह-रह,
मधुर मिलन के चित्र झरेंगे,
विरह वेदना के क्षण प्रतिपल,
विरहिन के आंसू पोंछेंगे।
पूनम की गागर सिर पर रख,
धरती गगन फाग गाएंगे,
पर ए रंगों की सौगात,
मेरे सरताज ना आएंगे।
होली में सब रंग आएंगे,
प्यासे तीर उमड़ आएंगे ,
पर ए रंगों की बरसात,
मेरे सरताज ना आएंगे।
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गीत ये बन पाए हैं
जिगर को चीर के
बाहर ये निकाले मैंने
फिर ये अरमान
आंसुओं में उबाले मैंने
तब कहीं जा के
विरह गीत ये बन पाए हैं ।
इनके सीने में गम
के तीर चुभाये मैंने
दिल पै अपनों के दिये
जख्म दिखाए मैंने
तब कहीं जा के
विरह गीत ये बन पाए हैं।
स्वरों की सेज पै
जी भर ये सजाये मैंने
लय के तारों पै
नंगे पांव चलाए मैंने
तब कहीं जाके
विरह गीत ये बन पाए हैं !
गीतकार- अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर मध्यप्रदेश
