(परिचय : मितांशी शर्मा, जन्म तिथि : 16 दिसंबर 1978, शिक्षा : बीए, निवास : गुरुग्राम दिल्ली, शौक लिखना, पेशा : गृहिणी)
मन की बात
ना सुनो तुम तो किसे कहूं मैं
मन की बात मन से कहूं मैं
ना जाना तुमने ये खुशियों का आह्लाद
ना जाना तुमने वो दुखो का विषाद
कैसे कहूं ये सोचती हूं मैं हरपल
किससे कहूं मैं अपने मन की बात
कभी झूमे तो कभी गाए मेरा मन
पर कहां हो ना जाने तुम, ढूंढू कहां
कैसे मिलूं तुम्हें किस छोर खड़े तुम
कैसे बताऊं मैं अपने मन की बात
कभी कभी दूर करती हमें किस्मत
कभी हम खुद ही दूर होते जाते
पर फासला पार कर लो एक बार
जो कह सकूं मैं तुमसे अपने मन की बात।
00
(परिचय : मीनाक्षी शर्मा, पिता का नाम- राधाकृष्णा शर्मा, माता का नाम कमलेश कुमारी शर्मा, शिक्षा-एमए, पेशा-लेखिका, शौक आध्यात्मिक साहित्य पढ़ना, प्रकाशित साहित्य : 8 साझा संग्रह, एक एकल पुस्तक-जिंदगी का एहसास, निवास-गांव दरीणी, तहसील शाहपुर, उप तहसील दरीणी, जिला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश, मोबाइल 7807519589)
मन की बात
मन की बात मन में रह गई,
बिन कहे वो बात रह गई,
समझ ना सका सामने वाला,
अनकही बात जो मन में रह गई।
मन को अशांत वो बात कर गई,
अधूरी जो वो बात रह गई,
मन इंसान को हर पल उलझाता,
बिन कहीं बातों से मन ही मन है लड़ाता।
मन है सभी का भावनाओं का समुद्र,
लहरें बन बातें यूं बह जाती ,
मन की बात जब जुबान में आ जाती,
ना जाने क्यूं मन की बात मन में रह गई।
बिन कहे कोई समझ ना पाए,
जज़्बात मन का था मन में ही रह गया,
मन की बात का विचार मन में ही रह गया,
मन मेरा फिर यूं उलझन में रह गया।
00
