चुप बैठी हो
बहुत बोलती हैं ये आंखें,इसीलिए तुम चुप बैठी हो।
मन टटोलती हैं ये आंखें इसीलिए तुम चुप बैठी हो।
तुम कितना भी रोको इनको
अनजाने ही झुक जाती हैं।
इनसे मत अब प्यार छुपाओ
ये चुपके से कह जाती हैं।
राज खोलती है ये आंखें इसीलिए तुम चुप बैठी हो।
बहुत बोलती हैं ये आंखें,इसीलिए तुम चुप बैठी हो।
कह जातीं नजरों नजरों में
तन्हाई के गम की बातें,
मेरा हृदय रुला जाती हैं
तेरी पलकों की बरसातें।
प्यार तौलती हैं ये आंखें इसीलिए तुम चुप बैठी हो।
बहुत बोलती हैं ये आंखें,इसीलिए तुम चुप बैठी हो।
इनकी चमक खिला जाती है
पल भर में मुरझाया चेहरा,
होठों की मुस्कानों से भी
छट जाता बिछुड़न का कोहरा।
स्नेह घोलती है ये आंखें इसीलिए तुम चुप बैठी हो।
बहुत बोलती हैं ये आंखें,इसीलिए तुम चुप बैठी हो।
गीतकार- अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर
