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प्रज्ञालय संस्थान द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस के अवसर पर प्रातः ‘लक्ष्मीनारायण रंगा सृजन सदन’ में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए अनुवाद के राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस की सार्थकता महत्वपूर्ण है, क्योंकि अनुवाद के माध्यम से वैश्विक स्तर पर और भारतीय संदर्भ में अनुवाद ज्ञान का प्रसार एवं संस्कृति का संवाहक है तथा राष्ट्रों के मध्य परस्पर अवगमन और सद्भाव की वृद्धि में योगदान करता है। साथ ही भाषाओं और संस्कृतियों की समृद्धि को संरक्षित और सम्मानित भी करता है। अनुवाद साहित्य, विज्ञान और दर्शन तकनीक और सूचना तक पहुंच का सक्षम साधन है। जिससे लक्ष्य भाषा और भाषा संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
रंगा ने आगे कहा कि भारतीय संदर्भ में अनुवाद की लंबी परंपरा है, करीब ढाई शताब्दियों पहले भगवत गीता का अंग्रेजी में अनुवाद हुआ था। इसी तरह बौद्ध भिक्षुवों ने प्राचीन काल में भारतीय ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया था। तभी हम कह सकते है अनुवाद कला भाषा अवरोधों के पार एक सकारात्मक संवाद करती है।
अपने विचार रखते हुए संस्कृतिकर्मी भवानी सिंह ने कहा कि 30 सितम्बर, 2024 अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस मनाने के पीछे भाषायी स्तर पर साहित्य को समझने और समृद्ध करने हेतु संकल्प लेने का अवसर है। इसी क्रम में युवा कवि, नाटककार पुनीत रंगा ने कहा कि वैसे तो प्राचीन मिस्र में पन्द्रहवीं शताब्दी में अनुवाद के लिखित प्रमाण मिलते हैं और उसके बाद में विश्व स्तरीय पर अनुवाद का कार्य साहित्य व अन्य विषयों की पहुंच विश्व स्तरीय पर पहुचाने में अनुवाद कला बहुत उपयोगी रही है।
युवा कवि गिरिराज पारीक ने कहा कि अनुवाद एक कला ही नहीं अपितु विज्ञान भी है, जो दो भाषाओं के बीच एक सेतु का काम करती है। वरिष्ठ शिक्षाविद् राजेश रंगा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि भाषाएं केवल संवाद का साधन नहीं है, अपितु वे अनुवाद के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान भी करती है।
इस अवसर पर करूणा क्लब के हरिनारायण आचार्य ने कहा कि 30 सितम्बर का मनाए जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस अनुवाद के योगदान को मान्यता देने के लिए समर्पित है। जिसका प्रमुख उद्देश्य भाषा और संस्कृति की विविधता को बढावा देना है।
इस अवसर पर अनेक सहभागियों ने अपने विचार रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस की सार्थकता को स्वीकारा। साथ ही अनेक अध्ययनशील बालक-बालिकाओं ने अनुवाद के महत्व को लेकर अपनी जिज्ञासाएं रखीं, जिसका उत्तर सरल एवं सहज रूप से गोष्ठी अध्यक्ष ने दिया। कार्यक्रम का सफल संचालन युवा संस्कृतिकर्मी इंजि. आशिष रंगा ने किया।