-कुलपति डॉ अरुण कुमार ने कहा- मारवाड़ की प्रतिष्ठा व कृषक हित में मथानिया मिर्च को जीआई टैग मिलना आवश्यक
कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर ने जी आई टैगिंग प्रोजेक्ट पर आरंभ किया कार्य
गजेंद्र सिंह राजपुरोहित. जोधपुर ग्रामीण
तीखेपन और मन को भाने वाले स्वाद के कारण देश और दुनिया में पसंद की जाने वाली जोधपुर की मथानिया मिर्च अलग पहचान रखती है। मारवाड़ की विशेष आबोहवा में पैदा होने वाली इस मिर्च की खास मांग भी रहती है। गौरतलब है कि इस मिर्च के जीआई टैग के लिए लंबे समय से प्रयास जारी है। कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर ने इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास करते हुए सराहनीय पहल की है। इसके लिए कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिकों के दल ने तिंवरी, मथानिया क्षेत्र में किसानों के खेतों का भ्रमण व वार्तालाप कर ऐतिहासिक साक्ष्यों समेत अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई है।
वैज्ञानिकों का विशेष दल किया गठित
प्रोजेक्ट के समन्वयक व वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ एम एम सुंदरिया के अनुसार मथानिया मिर्च को जी आई टैगिंग दिलवाने के लिए कार्य आरंभ कर दिया गया है। इस प्रोजेक्ट के लिए कृषि विश्वविद्यालय में दस वरिष्ठ वैज्ञानिकों का विशेष दल गठित किया गया है। इन वैज्ञानिकों की टीम ने 18 नवंबर 2024 को मथानिया क्षेत्र के आसपास के खेतों में मिर्च उत्पादक किसानों से मिलकर मिर्च की एतिहासिक जानकारी व अन्य साक्ष्य जुटाए हैं। टीम ने मिर्च के सैंपल लिए और अब विश्वविद्यालय की लैब में इसकी आकारिकी, रंग, स्वाद, तीखापन सहित विभिन्न प्रारूपों में इस पर अध्ययन किया जा रहा है। तत्पश्चात जल्द ही प्रकिया अनुसार जीआई टैगिंग के लिए आवेदन किया जाएगा।
जीआई टैगिंग कई मायनों में महत्वपूर्ण
प्रोजेक्ट के सह समन्वयक, डॉ चंदन राय बताते हैं कि मथानिया की मिर्च को जीआई टैग दिलवाना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। इस मिर्च को जीआई टैग मिलने से न केवल इस मिर्च की मांग विश्व स्तर पर बढ़ेगी बल्कि क्षेत्र के किसानों को भी व्यापारिक रूप से विशेष फायदा होगा। जीआई टैगिंग से उत्पाद को विशेष कानूनी सुरक्षा मिलती है, उत्पाद की बौद्धिक संपदा की रक्षा होती है साथ ही उत्पाद के नाम का दुरुपयोग भी नहीं किया जा सकता। जीआई टैगिंग से प्रमाणिकता सहित उत्पाद को बाजार में उतारने में मदद मिलती है। साथ ही आय व विश्व स्तर पर क्षेत्र की प्रतिष्ठा में भी बढ़ोतरी होती है।
क्या है जीआई टैगिंग
उत्पाद के नाम को ‘भौगोलिक संकेत’ (जीआई) दिया जा सकता है यदि उनका उस स्थान से कोई विशिष्ट संबंध हो जहां वे बने हैं या जहाँ पर पैदा किये जाते हैं । भौगोलिक संकेत, किसी उत्पाद की पहचान किसी खास जगह पर पैदा होने से करता है। यह किसी उत्पाद की विशेषताओं को प्रमाणिकता देता है, जो उसके भौगोलिक मूल के कारण होते हैं। उदाहरण के लिए अल्फ़ांसो आम, पश्मीना शॉल, नागपुर संतरा, बीकानेरी भुजिया जीआई टैग युक्त है।
इन वैज्ञानिकों का दल रिसर्च में शामिल
जीआई टैगिंग प्रोजेक्ट के मुख्य वैज्ञानिक सदस्यों में डॉ मिथिलेश कुमार, डॉ राहुल भारद्वाज, डॉ. हरदयाल चौधरी, डॉ. दिनेश कुमार, डॉ अंकुर त्रिपाठी व डॉ दान सिंह जाखड़ शामिल हैं।
मारवाड़ व कृषक हित में जीआई टैग
मारवाड़ क्षेत्र की मथानिया मिर्च को जीआई टैग मिलना अत्यंत आवश्यक है। कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर में इस प्रोजेक्ट के लिए वरिष्ठ वैज्ञानिकों की टीम गठित की गई है। वैज्ञानिक त्वरित गति से काम कर रहे हैं। मथानिया क्षेत्र व कृषक हित में जल्द ही इसके सुखद परिणाम प्राप्त होंगे।
-डॉ अरुण कुमार, कुलपति, कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर