स्वर्गीय एल.पी.टैस्सीटोरी की 105वीं पुण्यतिथि पर दो दिवसीय ‘ओळू समारोह’ का आगाज हुआ
राखी पुरोहित. बीकानेर
प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा राजस्थानी भाषा साहित्य संस्कृति एवं पुरातत्व के महान् विद्वान डॉ. लुईजि पिओ टैस्सीटोरी की 105वीं पुण्यतिथि के अवसर पर दो दिवसीय ‘ओळू समारोह’ का आगाज आज प्रातः उनकी समाधि स्थल पर गत साढे चार दशकों की परंपरा में पुष्पांजलि-विचारांजलि के माध्यम से उन्हें नमन-स्मरण करने के साथ हुआ।
समारोह के पहले दिन की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ राजस्थानी साहित्यकार एवं राजस्थानी मान्यता आंदोलन के प्रवर्तक कमल रंगा ने कहा कि टैस्सीटोरी सांस्कृतिक पुरोधा एवं भारतीय आत्मा थे। उन्होंने राजस्थानी मान्यता का बीजारोपण 1914 में ही कर दिया था, परन्तु दुखद पहलू यह है कि आज भी इतनी समृद्ध एवं प्राचीन भाषा को संवैधानिक मान्यता न मिलना साथ ही प्रदेश की दूसरी राजभाषा न बनना करोड़ो लोगों कि जनभावना को आहत करना है। ऐसे में राजस्थानी को दोनों तरह की मान्यताएं शीघ्र मिलनी चाहिए।
रंगा ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी राजस्थानी भाषा साहित्य-संस्कृति कला आदि को सच्चे अर्थों में जीते थे। वे अपनी मातृभाषा इटालियन से अधिक प्यार राजस्थानी को देते थे। समारोह के मुख्य अतिथि वरिष्ठ इतिहासविद् डॉ. फारूक चौहान ने अपनी विचारांजलि व्यक्त करते हुए कहा कि स्वर्गीय एल.पी. टैस्सीटोरी जनमानस में राजस्थानी भाषा की अलख जगाने वाले महान साहित्यिक सेनानी थे, जिन्होंने साहित्य, शिक्षा, शोध एवं पुरातत्व के क्षेत्र में अति महत्वपूर्ण कार्य करके हमारी संस्कृति एवं विरासत को पूरे विश्व में मशहूर कर दिया।
समारोह के विशिष्ठ अतिथि वरिष्ठ व्यंग्यकार आत्माराम भाटी ने उनके द्वारा किए गए कार्यों पर रोशनी डालते हुए कहा कि वे बहुत बड़े भाषा वैज्ञानिक भी थे वे राजस्थानी आत्मा थे ये हमारी भाषा के लिए गौरव की बात है कि इटली से आकर एक विद्वान साहित्यकार ने हमारी भाषा के लिए महत्वपूर्ण काम किया। इस अवसर पर अपने विचारांजलि व्यक्त करते हुए कवि जुगलकिशोर पुरोहित, कवि गिरिराज पारीक ने कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी की सेवाओं को जन-जन तक पहुंचाने में ऐसे आयोजन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जिसके लिए आयोजक संस्था एवं आयोजक साधुवाद के पात्र है। विचारांजलि कार्यक्रम में भैरूरतन रंगा ‘शन्नू’ अशोक शर्मा, कार्तिक मोदी, अख्तर, किशन सांखला, कन्हैयालाल, राजपाल, तोलाराम सारण, घनश्याम आचार्य, सुनील व्यास ने भी अपने विचार व्यक्त रखते हुए टैस्सीटोरी को नमन-स्मरण किया।
कार्यक्रम में श्रीमती वीणा बजाज, श्रीमती इन्द्रा बेनीवाल, रामकिशन, मोहित गाबा, सुन्दर मामवाणी आदि गणमान्यों के साथ अनेक राजविलास मौहल्ला विकास समिति पदाधिकारी एवं सदस्यगणों ने भी डॉ. टैस्सीटोरी की समाधि स्थल पर पुष्पांजलि अर्पित की। इस अवसर पर 1980 से राजस्थानी युवा लेखक संघ एवं प्रज्ञालय संस्थान के प्रयासों एवं प्रेरणा से जो सतत् विकास समाधि स्थल का हुआ है। उसमें वर्तमान उसकी भव्यता और सुन्दरता में राजविला मौहल्ला विकास समिति रथखाना के पदाधिकारी एवं सदस्यगणों का योगदान रहा है। जिसके लिए वो साधुवाद के पात्र है। ओळू समारोह के पहले दिन का सफल संचालन शिक्षाविद् भवानी सिंह ने किया एवं सभी का आभार युवा संस्कृतिकर्मी आशीष रंगा ने ज्ञापित किया।