हरियाली से भारत के माथे पर तिलक लगाएं
गमले, क्यारी, जंगल में आओ हम पेड़ लगाएं,
हरियाली से भारत के माथे पर तिलक लगाएं।
हरे भरे मधुवन लालच की
आरी से कटवाए,
कर षड़यंत्र कुल्हाड़ी से
वृक्षों के कत्ल कराए।
चलो परकटे से उपवन के घावों को सहलाएं,
निधिबन नंदनवन के माथे पर फिर तिलक लगाएं।
फसलों की प्यास को
नलकूपों को सौंप रहे हैं।
धरती की छाती में गहरे
खंजर घोंप रहे हैं।
पहले नदी झील तालाब प्रदूषण मुक्त कराएं,
गंगा जमुना सरस्वती को फिर हम तिलक लगाएं।
पौधों मानव सब जीवों में
जान एक सी होती,
अंग किसी का कटे प्रकृति के
मन को पीड़ा होती।
गांव शहर फिर राष्ट्र को हम हरा भरा बनाएं,
पर्यावरण के माथे पर फिर हम तिलक लगाएं।
गमले, क्यारी, जंगल में आओ हम पेड़ लगाएं,
हरियाली से भारत के माथे पर तिलक लगाएं।
गीतकार : अनिल भारद्वाज,
एडवोकेट, उच्च न्यायालय, ग्वालियर
