(त्योहार हमारी आस्था के साथ लोक संस्कृति की मिठास और परंपरा के वाहक होते हैं। ये जीवन में उल्लास भर देते हैं। कजली तीज पर एक महिला के मन के भावों को पूर्व जस्टिस गोपालकृष्ण व्यास ने शब्द दिए हैं। प्रस्तुत है उनकी कविता।)
मन की आशा
तीज के इस त्योहार पर
झूलूंगी झूला आंगन में
सखियों के संग गाऊंगी
मैं गीत सुरीले सावन में
मेहंदी रचाकर हाथों में
पहनूंगी कंगन हाथों में,
देखूंगी चेहरा साजन का
जब चांद उगेगा बादल में,
प्रेम उमंग उल्लास मिलकर
मुझसे अठखेली करते हैं,
चेहरा खिला खिला देखकर
कुछ मुझे कहने को आतुर है,
त्योहारों की लम्बी फेहरिस्त में
सावन का भी बड़ा महत्व है,
घर के आंगन और बगिया में
खुशबू और नजारे दिखते हैं,
सावन महीने में बिजली की
चमक भी सुहानी लगती है,
कोयल की मीठी आवाज से
स्वर लहरी प्रेम की बजती है,
मरुभूमि की निर्मल छाया में
चांदी सी नदियां दिखती है,
सावन भादो की ठंडी हवा
हर प्राणी को ख़ुशियां देती है।
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