(जोधपुर में एक स्थान पर पूर्व में पुलिस द्वारा की गई मॉकड्रिल का फाइल फोटो।)
पुलिस-प्रशासन कानून से परे जाकर करता है मॉकड्रिल, ये नौटंकी के अतिरिक्त कुछ नहीं…कभी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है देश को
-क्या मॉकड्रिल कानूनन जायज है? इस सवाल को हमने कई सीनियर एडवोकेट, कई सीनियर आईपीएस, कई जर्नलिस्ट, हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सहित कई प्लेटफॉर्म पर रखा। सबसे बड़ी बात कई पक्षकार इस मुद्दे पर जवाब देने से बचते रहे। हमने इस आलेख के माध्यम से मॉकड्रिल के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया है। इस आलेख के बाद में नए कानून में कुछ धाराएं जोड़नी पड़ेगी, क्योंकि कानून में मॉकड्रिल का कोई उल्लेख ही नहीं है। ऐसे में कानून के पंडितों को अब नए सिरे से सोचना होगा। अगर मॉकड्रिल के बारे में देश को बड़ी क्षति उठानी पड़े और निर्दोष की जानें चली जाए तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? ऐसे ही कुछ सवाल हमने काल्पनिक केस के माध्यम उठाए हैं। हमने इस मुद्दे पर युवा एडवोकेट प्रेमदयाल बोहरा, एडवोकेट गोविंद, एडवोकेट मुकुल सिंघवी, एडवोकेट श्रीगोपाल व्यास, एडवोकेट और पत्रकार दिनेश बोथरा, एसीबी के पूर्व डीजी बीएल सोनी, जोधपुर के पुलिस कमिश्नर राजेंद्रसिंह, जोधपुर के पूर्व पुलिस कमिश्नर रविदत्त गौड़ आदि कई लोगों से भी सवाल किए थे। कुछ ने जवाब दिए, कुछ मौन रहे। हम यहां पर मुख्य पक्षकारों का ही उल्लेख कर रहे हैं। पढिए राइजिंग भास्कर डॉट कॉम के ग्रुप एडिटर डीके पुरोहित की पड़ताल करती यह रिपोर्ट।
काल्पनिक केस वन
जोधपुर ग्रामीण पुलिस की ओर से कंट्रोल रूम में एक पंक्ति में मैसेज आता है- जम्मू तवी एक्सप्रेस में पांच आतंकवादी घुस आए हैं।
-इस मैसेज के बाद सभी सुरक्षा एजेंसियां तत्पर हो जाती है और थोड़ी ही देर में जोधपुर रेलवे स्टेशन छावनी में तब्दील हो जाता है। अचानक पुलिस का एक जांबाज सिपाही पांचों आतंकवादियों को मार गिराता है और खुद उसे भी गोली लगती है और छह मौतें हो जाती है।
काल्पनिक केस टू
हेलो, सान्याल साब, कल दोपहर 3 बजे रेलवे स्टेशन पर मॉकड्रिल होने वाली है। पुलिस कमिश्नर खुद इसको अंजाम देंगे।
-इधर पुलिस कंट्रोल रूम में अगले दिन एक मैसेज पहुंचता है- रेलवे स्टेशन पर बम विस्फोट हो गया है। सारी सुरक्षा एजेंसियां रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई है। इधर अंडरवर्ल्ड डॉन सान्याल जोधपुर सेंट्रल जेल पर हमला कर देता है और जेल से पांच खूंखार आतंकवादियों को छुड़ा कर ले जाता है। सारी सुरक्षा एजेंसियां रेलवे स्टेशन पर है और मौके का फायदा उठाकर सेंट्रल जेल से पांच आतंकवादियों को छुड़ा लिया जाता है। (यह कल्पना है हकीकत नहीं, केवल आलेख को समझाने के लिए)
1- और मॉकड्रिल को जायज ठहराते पूर्व रूरल एसपी धर्मेंद्रसिंह यादव
हमने 16 सितंबर को जोधपुर ग्रामीण एसपी रह चुके धर्मेंद्रसिंह यादव से सवाल किया था- पुलिस और कई विभाग समय-समय पर मॉक ड्रिल करते हैं। इसको लेकर मैं एक आलेख लिखने जा रहा हूं। कृपया आपको जब भी मौका मिले इसके फायदे नुकसान बताते हुए 200 शब्दों में अपनी राय बताएं प्लीज। क्या पत्रकार भी ऐसे ही मॉक ड्रिल करें तो पुलिस उसे क्राइम समझेगी?
धर्मेंद्रसिंह यादव का जवाब : पुलिस मॉकड्रिल्स कई फायदे प्रदान करती हैं और वास्तविक आपात स्थितियों के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसका एक मुख्य लाभ यह है कि यह पुलिसकर्मियों की विभिन्न परिस्थितियों जैसे आतंकवादी हमलों, प्राकृतिक आपदाओं और सार्वजनिक अशांति से निपटने की तत्परता को बढ़ाता है। इन ड्रिल्स में वास्तविक दुनिया के परिदृश्यों का अनुकरण किया जाता है, जिससे अधिकारियों को अपनी प्रतिक्रिया रणनीतियों का अभ्यास करने, समन्वय में सुधार करने और अपने दृष्टिकोण में किसी भी कमजोरी की पहचान करने का अवसर मिलता है।
इसके अलावा, मॉकड्रिल्स अंतर-एजेंसी सहयोग को भी बढ़ावा देती हैं। जब इनमें फायर डिपार्टमेंट, मेडिकल टीमें और अन्य आपातकालीन सेवाएं शामिल होती हैं तो यह सुनिश्चित किया जाता है कि सभी संबंधित पक्ष एक साथ मिलकर प्रभावी ढंग से काम कर सकें। इससे संचार में सुधार होता है और प्रतिक्रिया समय कम हो जाता है जो आपात स्थितियों में जीवन बचाने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
मॉकड्रिल्स अधिकारियों को उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों के भूगोल से परिचित कराती हैं, जिससे आपात स्थितियों में वे तेजी से और कुशलतापूर्वक नेविगेट कर सकें। इसके अलावा, यह जनता में विश्वास भी बढ़ाती है, क्योंकि यह दर्शाता है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां सार्वजनिक सुरक्षा बनाए रखने में सक्रिय हैं। ये अभ्यास उपकरणों का आकलन करने, प्रोटोकॉल को परिष्कृत करने और यह सुनिश्चित करने का अवसर प्रदान करते हैं कि सभी कर्मी अच्छी तरह से प्रशिक्षित और तैयार हैं। सारांश में, पुलिस मॉक ड्रिल्स तत्परता सुनिश्चित करने, टीमवर्क को बढ़ावा देने और आपातकालीन या गंभीर घटनाओं के दौरान जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने में अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
हमारा अगला सवाल : क्या पत्रकार ऐसे ही मॉकड्रिल करे तो क्या क्राइम की श्रेणी में आएगा? अगर हां तो क्यों?
धर्मेंद्रसिंह यादव : पत्रकार अपने ऑफिस में कर सकते हैं।
2- राजस्थान के पूर्व डीजीपी उमेश मिश्रा बोले- मॉकड्रिल का कानून में प्रावधान नहीं
हमने राजस्थान के पूर्व डीजीपी उमेश मिश्रा से लंबी बातचीत की। सबसे पहला सवाल हमने रखा कि क्या मॉकड्रिल के लिए कानून में कोई प्रावधान है? अगर हां तो किस धारा के तहत मॉकड्रिल की जाती है? वे बोले- कानून में कोई प्रावधान नहीं हैं। ऐसी कोई धारा नहीं है जिसके तहत मॉकड्रिल करना जायज हो। यह प्रशासनिक व्यवस्था है। हमने पूछा कि मॉकड्रिल के दौरान किसी निर्दोष की जान चली जाए तो? वे बोले- आज तक ऐसा हुआ नहीं। यह काल्पनिक सवाल है। दरअसल मॉकड्रिल के बारे में उच्च स्तर पर पहले से जानकारी दे दी जाती है। इसलिए किसी की जान नहीं जा सकती। फिर हमने पूछा- इसका मतलब यह हुआ कि मॉकड्रिल नौटंकी से अधिक कुछ नहीं। इस पर वे कुछ नहीं बोले। हमने पूछा कि क्या पत्रकार सुरक्षा एजेंसियों की एफिशिएंसी जांचने के लिए मॉकड्रिल करना चाहें तो? मिश्रा बोले- पत्रकार करते ही हैं। फिर हमने पूछा कि दैनिक भास्कर के रिपोर्टर विस्फोटक खरीद लेते हैं और समानांतर ऐसी पड़ताल करते रहते हैं? यह जायज है? वे बोले- भास्कर तो ऐसा करता ही रहता है।
3- ग्वालियर हाईकोर्ट के एडवोकेट अनिल भारद्वाज बोले- मॉकड्रिल अफवा की श्रेणी में आता है, कानून सबके लिए बराबर
हमने मॉकड्रिल से संबंधित सवाल ग्वालियर हाईकोर्ट के एडवोकेट अनिल भारद्वाज के समक्ष भी रखा। वे बोले कि कानून में ऐसी कोई धारा नहीं है जिसके तहत पुलिस या प्रशासन मॉकड्रिल करे। यह एक सरकारी प्रक्रिया है। जब हमने पूछा कि क्या किसी की जान चली जाए तो क्या मॉकड्रिल जायज ठहराई जाएगी? वे बोले- होने को कुछ भी हो सकता है। विभिन्न पक्षकारों पर मुकदमा चलेगा। जब हमने पूछा कि क्या मॉकड्रिल अफवाह की श्रेणी में आती है? वे बोले- हां, मॉकड्रिल एक तरह की अफवाह ही होती है। कानून सबके लिए बराबर है। पुलिस और प्रशासन पर भी मुकदमा चलेगा।
4-एडवोकेट एनडी निंबावत : मॉकड्रिल अफवाह नहीं
पुरोहित जी मैं आपको बता दूं कि मॉकड्रिल के संबंध में किसी प्रकार का कोई कानून केंद्र अथवा राज्य का बना हुआ नहीं है। ये केंद्र सरकार/राज्य सरकारों की प्रशासनिक व्यवस्था है जिसके तहत सरकारी विभागों की विभिन्न मामलों के संबंध में तैयारियों काे परखा जाता है और यह देखा जाता है कि अचानक ऐसी परिस्थितियां आ जाती है या बन जाती है तो संबंधित विभाग उन परिस्थितियों से निपटने के लिए कितना तैयार अथवा सक्षम हैं। मॉकड्रिल ऐसी आम आदमी को एवं संबंधित अन्यों को जांचने परखने की एक प्रक्रिया है जिसके संबंध में न तो कोई कानून बना हुआ है और न ही कोई धारा या नियम ही है कि किस जगह किस विभाग की कब मॉकड्रिल की जाए। यह समय-समय पर सैन्य शक्ति के संबंध में, अपराधों के घटित होने की संभावनाओं पर पुलिस विभाग के संबंध में, किसी बीमारी विशेष की संभावनाओं पर चिकित्सा विभाग के संबंध में इत्यादि ऐसे ही सामान्य जन हितों की सुरक्षा से संबंधित विभागों के संबंध में मॉकड्रिल की जाती है। जो सरकारी नीतियों का हिस्सा है, जिसे ना जायज नहीं कहा जा सकता।
मॉकड्रिल अफवाह की श्रेणी में नहीं आता है क्योंकि सरकार का यह दायित्व रहता है कि वह आम जनता की सुरक्षार्थ, रक्षार्थ एवं हितार्थ अपनी प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत रखे और इसके लिए सरकार अपने प्रशासनिक आदेशों के तहत अपने विभागों के अधिकारियों की कार्यकुशलता, कार्य क्षमता और कार्य के प्रति समर्पण को परखना चाहती है कि अगर ऐसी कोई परिस्थिति बनती है तो वो उनसे निपटने में कितनी सक्षम है। इसे अफवाह नहीं कहा जा सकता, चूंकि मॉकड्रिल के लिए पुलिस, उस विभाग अथवा प्रशासन के विरुद्ध कोई कार्रवाई तब तक नहीं की जा सकती जब तक की प्रथम दृष्टया ये साबित नहीं हो जाता कि ऐसी मॉकड्रिल कार्यवाही में लापरवाही बरती गई है।
अगर पुलिस और प्रशासन को मॉकड्रिल की कानूनन इजाजत है तो क्या पत्रकार झूठी खबर छापकर पुलिस प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों की एफिशिएंसी जांचना चाहे तो क्या पत्रकार के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी? यदि हां तो एक ही संदर्भ में कानून के दो नियम कैसे हो सकते हैं? इस सवाल के जवाब में निंबावत कहते हैं- आपका यह प्रश्न वैसे तो दिखने में विचारणीय है लेकिन पत्रकारिता एक स्वतंत्र एजेंसी होती है, जबकि सरकार और सरकार के विभाग पत्रकारिता से भिन्न होते हैं। झूठी खबर देने का किसी को कानूनन अधिकार नहीं है, लेकिन जैसा कि मैंने ऊपर बताया है कि मॉकड्रिल का प्रशासनिक आदेश झूठी खबर की परिभाषा में नहीं आता। पुलिस और प्रशासन की एफिशिएंसी जांचने का मीडिया को कोई अधिकार नहीं है। मीडिया पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता को उजागर कर एक सजग प्रहरी की भूमिका निभाता है। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है जो विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की कमियों, त्रुटियों, लापरवाहियों और निष्क्रियताओं को उजागर कर उनको दूर करने के लिए इन सभी को सजग करता है इसलिए मीडिया की भूमिका प्रशासन की भूमिका से अलग होती है।
यदि पुलिस की मॉकड्रिल के दौरान किसी निर्दोष की जान चली जाती है तो इसके संबंध में सर्वप्रथम जांच के लिए कमेटी का गठन होता है और कमेटी की जांच में अगर मॉकड्रिल के दौरान मॉकड्रिल के किसी सदस्य की लापरवाही सामने आती है तो निश्चित रूप से उसके विरुद्ध पहले भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 304 ए थी और अब भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 106 की धाराओं के तहत सजा का प्रावधान है जो साबित होने पर दी जाती है। इसका एक उदाहरण एनकाउंटर के मामलों से समझा जा सकता है। जहां एनकाउंटर में इंटेशन से मारे जाने पर मुकदमा चलता है। डीग भरतपुर के राजा मानसिंह के एनकाउंटर में पुलिस अधिकारों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज होकर चालान पेश हुआ और जिसमें कइयों को दोष सिद्ध घोषित किया गया और जिनमें से कुछ को जेल भी हुई और जमानत पर छूटे।
5-जोधपुर के एक कानूनविद से 17 सितंबर को हुई बातचीत : (नाम व फोटो नहीं छाप रहे)
कृपया आप बताएं कि पुलिस या प्रशासन कानून की किस धारा के तहत मॉकड्रिल करते हैं। पर्टिकूलर कोई धारा है जिसके तहत मॉकड्रिल को जायज ठहराया गया हो। अगर कोई ऐसी धारा है तो वह धारा बताएं। साथ ही यह भी बताएं कि क्या मॉकड्रिल अफवाह की श्रेणी में नहीं आता? अगर यह अफवाह की श्रेणी में आता है तो क्या पुलिस और प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? दूसरा सवाल है कि अगर पुलिस और प्रशासन को मॉकड्रिल की कानूनन इजाजत है तो क्या पत्रकार झूठी खबर छापकर पुलिस और प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों की एफिंसिएंसी जांचना चाहे तो क्या पत्रकार के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी? यदि हां तो एक ही संदर्भ में कानून के दो नियम कैसे हो सकते हैं? अगर पुलिस की मॉकड्रिल के दौरान कोई निर्दोष की जान चली जाए तो क्या पुलिस को सजा होगी? मान लीजिए पुलिस सूचना देती है कि जम्मूतवी में पांच आतंकवादी घुस आए हैं? इसके बाद सुरक्षा एजेंसियां तुरंत पहुंचती है और पांचों आतंकवादियों को मार गिराती है। और सचमुच में पांच निर्दोष मारे जाते हैं तो क्या इस मॉकड्रिल को जायज माना जा सकता है?
उत्तर : अभी नया कानून आ गया है उसमें क्या प्रावधान किए हैं यह पढ़ना पड़ेगा।
उत्तर : पुलिस एक्ट और प्रशासनिक आदेश होते हैं उनके तहत मॉकड्रिल करते हैं। यह प्रकरण न्यायालय में नहीं आते।
नहीं भाई साहब मेरा सवाल है कि मॉकड्रिल के दौरान सचमुच किसी की जान चली जाए तो क्या पुलिस के खिलाफ कार्रवाई होगी?
उत्तर : अगर किसी पुलिसकर्मी ने लापरवाही बरती है और ऐसी साक्ष्य सामने आती है तब कार्यवाही हो सकती है। अगर कर्तव्य का निर्वहन करते हुवे कोई घटना घट जाय तब कार्यवाही नहीं होती।
प्रश्न : आमतौर पर पुलिस एक लाइन में सूचना देती है कि जम्मू तवी में पांच आतंकवादी घुस आए हैं। और तुरंत सारी सुरक्षा एजेंसियां पहुंच जाती है। मान लीजिए कमांडों पांचों कथित आतंकवादियों को गोली मार देते हैं और वे पांचों डमी आतंकवादी होते हैं? क्या ऐसी मॉकड्रिल जायज होगी? क्या कानून इसकी इजाजत देता है।
उत्तर : मॉकड्रिल में शामिल कर्मियों को सब जानकारी दी जाती है, लेकिन गोपनीयता बनाये रखी जाती है।
सवाल : तब तो ऐसी मॉकड्रिल का कोई मतलब नहीं रह जाता। यह मात्र बेवकूफ बनाना ही हुआ न।
उत्तर : यह नहीं कह सकते क्योंकि जानकारियां सिर्फ मॉकड्रिल में शामिल कर्मियों को होती है पब्लिक की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है।
सवाल : भाई साहब मैं अपने सवाल के जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ। मान लीजिए उच्च स्तर पर गोपनीयता बरती जाती है मगर मॉकड्रिल में कई पक्षकार होते हैं और आखिर पांच कथित आतंकवादी मार गिराए जाते हैँ तो क्या संबंधित पक्षकारों को फांसी की सजा होगी?
उत्तर : मुकदमा जरूर चलेगा सजा देना न्यायालय का कार्य है।
उत्तर : मैं अध्ययन करके बताता हूं। (बाद में कुछ नहीं बताया। )
मॉकड्रिल को लेकर हमारे द्वारा उठाए कुछ सवाल
-जब संविधान बनाया गया तब मॉकड्रिल का प्रावधान क्यों नहीं किया गया? बाद में भी इसकी आवश्यकता महसूस क्यों नहीं हुई?
-जब संविधान में मॉकड्रिल का प्रावधान ही नहीं है तो इसे गैर कानूनी ढंग से क्यों किया जाता है? कानून के राज में इसकी इजाजत क्यों दी जाती है?
-अगर पत्रकार झूठी खबर छापकर सुरक्षा एजेंसियों की एफिशिएंसी नहीं जांच सकता तो कई बार पुलिस पत्रकारों को टूल बनाकर झूठी खबरें क्यों छपवाती है?
-अफवाह चाहे पुलिस-प्रशासन फैलाए या पत्रकार…दोनों जुर्म है, फिर सभी को सजा क्यों नहीं?
-पत्रकारों को अपने ऑफिस में मॉकड्रिल की इजाजत किस धारा के तहत दी गई है। जैसा कि पूर्व जोधपुर ग्रामीण एसपी धर्मेंद्रसिंह यादव ने कहा कि पत्रकार अपने ऑफिस में मॉकड्रिल कर सकते हैं।
-बड़े अखबार या चैनल पुलिस के समानांतर पड़ताल करते हैं। यहां तक कि विस्फोटक तक खरीद लेते हैं। ऐसे में किसी पत्रकार या असावधानी से बड़ा हादसा होता है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? यह नए तरीके के जर्नलिज्म की कानून की किस धारा के तहत इजाजत है?
-जैसा कि एनडी निंबावत कहते हैं- सरकार अपने प्रशासनिक ‘आदेशों’ के तहत अपने विभागों के अधिकारियों की कार्यकुशलता, कार्य क्षमता और कार्य के प्रति समर्पण को परखना चाहती है कि अगर ऐसी कोई परिस्थिति बनती है तो वो उनसे निपटने में कितनी सक्षम है। इसे अफवाह नहीं कहा जा सकता। यहां ‘आदेश’ शब्द पर गौर करना होगा। क्या अब तक हुई मॉकड्रिल को लेकर सरकार ने अलग-अलग आदेश जारी किए? क्या उसकी रूपरेखा बनाई गई? उसके विभिन्न साइड इफैक्ट पर विचार किया गया? अगर नहीं तो बगैर ‘आदेश’ पुलिस-प्रशासन ने मॉकड्रिल क्यों की? जैसा कि पुलिस-प्रशासन केवल एक लाइन की सूचना जारी करती है और सभी सुरक्षा एजेंसियां सक्रिय हो जाती है। यह तो अफवाह ही हुई। जब सरकारी आदेश नहीं, पुलिस का भी लिखित आदेश नहीं केवल मौखिक सूचना…फिर इसे अफवाह क्यों नहीं माना जा सकता?
-जैसाकि एनडी निंबावत कहते हैं- जैसा कि मैंने ऊपर बताया है कि मॉकड्रिल का प्रशासनिक आदेश झूठी खबर की परिभाषा में नहीं आता।…जबकि पुलिस प्रशासनिक आदेश जारी करने की बजाय एक पंक्ति की सूचना ही कंट्रोल रूम में देती है। फिर तो यह अफवाह ही हुई। अगर पुलिस वाकई आदेश निकालती है और सभी विभागों में इसकी प्रति भेजती तो यह मॉकड्रिल नहीं होगी, केवल मूर्ख बनाना ही हुआ? कुल मिलाकर यह एक विस्तृत और बहस का विषय है जिस पर देश के कानूनविद अभी तक खामोश रहे हैं।
-जैसा कि एनडी निंबावत कहते हैं- पुलिस और प्रशासन की एफिशिएंसी जांचने का मीडिया को कोई अधिकार नहीं है। मीडिया पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता को उजागर कर एक सजग प्रहरी की भूमिका निभाता है। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है जो विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की कमियों, त्रुटियों, लापरवाहियों और निष्क्रियताओं को उजागर कर उनको दूर करने के लिए इन सभी को सजग करता है इसलिए मीडिया की भूमिका प्रशासन की भूमिका से अलग होती है। संविधान में इस संबंध में कौनसी धारा है जो पत्रकारों को नियंत्रित करती है, इसका उल्लेख निंबावत नहीं करते। आज के दौर की पत्रकारिता आधुनिक हो गई है। अब एआई और तकनीकी जमाना है। ऐसे दौर में पत्रकारिता को लेकर क्या नए कानून है? इसका खुलासा संविधान में नहीं है, क्योंकि जब कानून लिखा गया तब एआई जैसे शब्द अस्तित्व में नहीं थे। अब पत्रकारिता को लेकर एक्ट को फिर से परिभाषित करना होगा।
राइजिंग भास्कर ने मेरी बात गलत ढंग से प्रस्तुत की : अनिल भारद्वाज
हमने कहीं अखबार में पढ़ा था जब कोर्ट ने स्वीकार किया कि रिपोर्टर अगर कोई बात रिकॉर्ड नहीं कर सके और अपनी डायरी में नोट कर ले तो वह डायरी भी सबूत का काम कर सकती है। हमने ग्वालियर हाईकोर्ट के वकील अनिल भारद्वाज से लिखित में जानकारी मांगी थी। उन्हें सात-आठ दिन का समय दिया था, मगर उन्होंने लिखित में कुछ नहीं दिया और फोन पर अपनी बात कही। इसे हम रिकॉर्ड तो नहीं कर पाए मगर डायरी में नोट कर लिया था। हमने वही बातें लिखीं जो उन्होंने कही थी। मगर कौन आदमी कब अपनी बात से मुकर जाए इसका कोई इलाज नहीं है। इसलिए हम यहां पर उनका खंडन छाप रहे हैं। उन्होंने हमें जो बात वाट्सएप की है उसे कॉपी पेस्ट कर रहे हैं। नीचे उनका खंडन प्रकाशित किया जा रहा है-
”आदरणीय संपादक महोदय ,राइजिंग भास्कर में आपके द्वारा मॉकड्रिल पर आज दिनांक 26.09.2024को जो आलेख प्रकाशित किया गया है उसमें मेरी राय को मेरे द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार प्रकाशित नहीं किया गया है। मैंने मॉकड्रिल को अफवाह की श्रेणी में होना बिल्कुल नहीं बताया , जबकि आपके द्वारा उक्त आलेख में मॉकड्रिल को अफवाह की श्रेणी में ही आना लेख किया गया है उक्त अंश सही नहीं है। कृपया अपने आलेख में से आपके द्वारा लेख किये गये इस अंश को हटाकर संशोधित आलेख पुनः प्रकाशित करें। मेरे द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार , मॉकड्रिल लॉ एंड ऑर्डर के तहत एक व्यवस्था है। यदि मॉकड्रिल के दौरान कोई जन हानि होती है तो विधि अनुसार कार्यवाही की जानी चाहिए। केवल इतना ही अंश प्रकाशित करने का कष्ट करें। धन्यवाद।’‘ (नोट : हमने इस आलेख में पूर्व में अनिल भारद्वाज का जो वक्तव्य प्रकाशित किया है उसे शून्य समझा जाए।)
