अरुण कुमार माथुर. जोधपुर
राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ 2025 में 100 साल का हो जायेगा। संघ के 100 साल होने का जोश और जुनून देश भर के स्वयंसेवकों में देखने को मिल रहा है। एक तरफ जहां आरएसएस साल 2025 को सताब्दी समारोह को मानने की तैयारी में जुटा है तो वही दूसरी तरफ संघ के पुराने स्वयंसेवकों के जोश और जुनून को देखते हुए अब पुराने स्वयंसवेकों की नई पीढ़ियां भी संघ से नाता जोड़ने लगी हैं।
ऐसा ही एक नजारा आरएसएस के महानगर एकत्रीकरण में उस समय देखने को मिला जब एक डेढ़ साल के बच्चे ने संघ की गणवेश धारण कर भगवा ध्वज को प्रणाम किया। रातानाडा स्थित पोलो ग्राउंड में शनिवार सुबह आरएसएस जोधपुर महानगर के एकत्रीकरण समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें चौपासनी रोड स्थित माधोबाग़ कबीर आश्रम के गादीपति डॉ. रुपचंददास महाराज ने और उनके पुत्र लक्ष्मीचन्द धारीवाल ने भी संघ स्वयंसेवक के रूप में भाग लिया। डॉ रुपचंद महाराज को संघ से जुड़े पांच दशक हो चुके हैं वही उनके पुत्र लक्ष्मीचन्द भी बीते 3 दशक से संघ के स्वयं सेवक के रूप में जुड़े हैं। पिता पुत्र दोनों संघ के दायित्ववान कार्यकता रह चुके हैं। वर्तमान में भी पिता पुत्र संघ से जुड़े हैं और संघ के प्रत्येक कार्यक्रम में अपनी भागीदारी निभाते है।
शनिवार को पोलोग्राउंड में संघ के जोधपुर महानगर का एकत्रीकरण हुआ तो डॉ. रूपदास महाराज के साथ उनके पुत्र लक्ष्मीचन्द ही नहीं बल्कि उनका डेढ़ साल के पोते ने भी संघ की गणवेश पहनकर जब एकत्रीकरण में भाग लिया और भगवा ध्वज को प्रणाम किया तो हर कोई चकित रह गया मानो डॉ रुपचंद महाराज की तीसरी पीढ़ी का यह बालक जोश और जुनून के साथ यह संदेश दे रहा हो कि मैं भी राष्ट्र भक्त हूं।
तीसरी पीढ़ी के इस डेढ़ साल के स्वयंसेवक का नाम दुर्गेश चन्द धारीवाल है और उनके पिता इंजि लक्ष्मीचन्द धारीवाल जो पेशे से इंजीनियर है और पिछले 30 सालों से संघ के स्वयंसेवक है। लक्ष्मीचन्द बताते हैं कि जब मैं और मेरे पिता डॉ रुपचंद महाराज एकत्रीकरण में भाग लेने तैयारिया कर रहे थे तो दुर्गेश भी हमारे साथ संघ की प्रार्थना करने लगा यही नहीं वह भगवा ध्वज को भी प्रणाम करने लगा और अपने दादा से संघ की गणवेश बनाने की ज़िद्द करने लगा। जिस पर डेढ़ साल के दुर्गेश की गणवेश को तैयार करवाया गया। दुर्गेश ने उसी गणवेश को पहन कर ना सिर्फ भगवा ध्वज को प्रणाम किया बल्कि जोश और जुनून के साथ हमारे परिवार के तीसरी पीढ़ी के स्वयंसेवक के रूप में दादा ऒर पिता का मान भी बढ़ाया है।