पुरस्कार को सजा का रूप…और मीडिया मना रहा अपनी उपलब्धि का जश्न
डीके पुरोहित. जोधपुर
जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केएन श्रीवास्तव को उनका कार्यकाल पूरा होने से तीन दिन पहले निलंबित कर दिया गया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार विवादित शिक्षक भर्ती 2012-13 व 2017 के शिक्षकों को पदोन्नति देने व पुरानी सेवाएं जोड़ने सहित कई गंभीर वित्तीय अनियमितताओं की जांच हाईपॉवर कमेटी कर रही थी। कमेटी की जांच में आरोपों की पुष्टि होने के बाद राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने कुलपति प्रो. श्रीवास्तव को निलंबित कर दिया। निलंबित कर दिया…इस शब्द पर गौर करना होगा। यह निलंबन नहीं पुरस्कार देना है। निलंबन तो तब होता जब उन पर आरोप लगा और एक सप्ताह या एक महीने में जांच कर निलंबन कर दिया जाता। मगर ऐसा नहीं हुआ। यह प्रोपेगेंडा से अधिक कुछ नहीं। और जो मीडिया इस निलंबन का श्रेय अपनी खबरों को लेकर अर्जित कर रहा है वो अपनी पीठ थपथपाने से अधिक कुछ नहीं।
किसी खबर को उसके अंजाम तक पहुंचाना मीडिया का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। लेकिन वीसी अपनी सेवा पूरी कर लेते हैं। बस तीन दिन कार्यकाल पूरा होने में शेष होता है और एक वीसी की बली ले ली जाती है। ये बली लेना नहीं है, बल्कि सरकार व्यवस्थाओं की निर्लजता का जीवंत दस्तावेज है। एक सरकारी व्यवस्था किस तरह रैंगती हुई चलती है उतना तो शायद कोई जीव भी नहीं रैंगता होगा। मीडिया संस्थान अपनी खबरों की कतरनें लगाकर जश्न मना रहे हैं। काबिल रिपोर्टर अपने संपादकों को रिझा रहे हैं। लेकिन काबिल रिपोर्टर अपने संपादकों को यह समझाने में सफल नहीं हुए कि यह सफलता कार्यकाल पूरा होने से तीन दिन पहले मिलना सजा है या वीसी को पुरस्कृत करना है। इस मामले में होना जाना वैसे भी कुछ नहीं है। राइजिंग भास्कर ने 22 जून 2023 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। उसके बाद एसीबी के तत्कालीन आईजी भी रिटायर हो गए। जिन एसीबी के आईजी की हम बात कह रहे हैं उन्होंने साफ कहा था कि शिक्षक भर्ती घोटाला एसीबी में कभी दर्ज ही नहीं हुआ और मामला एसओजी में दर्ज हुआ था। जबकि मीडिया रिपोर्ट में आज कहा जा रहा है कि मामला एसओजी में देने की तैयारी…। तो फिर सच क्या है? सच तो यह है कि सभी कुओं में भांग पड़ चुकी है। एसओजी जोधपुर में जनवरी 2021 से मार्च 2023 तक कार्यरत कमलसिंह ने साफ इनकार किया था कि कभी एसओजी में शिक्षक भर्ती का मामला आया था। कोई अफसर सच नहीं बोल रहा। राजभवन से लेकर सारी सरकारों ने जनता को भ्रम में रखा। सरकारें आती रही। सरकारें जाती रही। भ्रम कायम रहा। यह ठीक वैसे ही है जैसे पुलिस में किसी कांड पर संबंधित थाना इंचार्ज या डीएसपी को निलंबित कर दिया जाता है और कुछ समय बाद बहाल कर दिया जाता है। विवादित शिक्षक भर्ती में भी कुछ ऐसा ही हुआ। किसी भी मीडिया ने सच को उजागर नहीं किया। सच की तह तक जाने की बजाय नेताओं के बयानों के आधार पर और शिक्षक नेताओं के कथनों के आधार पर खबरें बनाई गई। ना तो किसी मीडिया ने एसीबी की रिपोर्ट की पड़ताल की और न ही एसबीजी के तत्कालीन आईजी से सवाल किया कि जब मामला एसीबी में आया ही नहीं तो फिर इतने सालों तक एसबीबी किसकी जांच करती रही। हाईकोर्ट में मामला कहां से कैसे गया? मीडिया जो दिखाता रहा है वो भ्रम है। आधा अधूरा सच है। मीडिया चाहे अपना ब्रांड कितना ही बड़ा कर ले। उसके माथे पर चाहे पांच सितारा होटल की तरह सितारे लगे हो, मगर पैरों में बेडियां बंधी रहती है। रिपोर्टर स्वच्छंद सांड की तरह रिपोर्टिंग करते हैं। संपादक बदलते जाते हैं। एक संपादक जाता है। दूसरा आ जाता है। तथ्यों को रिपोर्टर अपने हिसाब से घुमाते जाते हैं।
लौटते हैं 11-12 साल पहले। 2012-13 के दिन थे। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में 154 शिक्षकों की भर्ती की गई। इसमें 34 लोगों को बर्खास्त कर दिया गया था। जिन्हें 2020 में फिर बहाल कर दिया गया। जब इस भर्ती में घोटाले की बू आई तो 2014 में भाजपा की सरकार ने आते ही शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच कमेटी बनाई गई। प्रो. पीके दशोरा कमेटी की जांच कमेटी ने घोटाले को सही माना। उन्होंने शिक्षक भर्ती रद्द करने की सिफारिश की। हालांकि रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। इसके साथ ही भाजपा सरकार ने जांच एसीबी से भी करवाई। बताया जाता है कि 7500 पेज की चार्जशीट में एसीबी ने घोटाले को साबित किया। मामले में तत्कालीन कुलपति और पूर्व विधायक सहित 6 लोग जेल भेजे गए। राजभवन ने इसे गंभीरता से लेते हुए जांच कमेटी बनाई। कमेटी ने 34 शिक्षकों को अयोग्या माना। जिन्हें सिंडिकेट ने बर्खास्त कर दया। 2020 में कांग्रेस सरकार आते ही 28 शिक्षकों को फिर बहाल कर दिया गया। मामला हाईकोर्ट में भी गया, जहां सुनवाई जारी है।
10 साल बाद क्लीन चिट क्यों दी गई?
2012-13 के 154 शिक्षकों की भर्ती घोटाले को आखिर 10 साल बाद क्लीन चिट दे दी गई। जेएनवीयू ने सरकार की नई प्रो. बीएम शर्मा कमेटी की जांच रिपोर्ट को आनन-फानन में सिंडिकेट की विशेष बैठक में पेश कर मुहर लगा दी गई। ये बैठक पूरी तरह से गोपनीय रखी गई। बताया जा रहा था कि इसकी जानकारी सुबह ही दे दी गई थी। वहीं 2 विधायक सदस्य जोधपुर से बाहर होने के कारण ऑनलाइन जुड़े। इधर इस फैसले को लेकर विवि प्रशासन व सिंडिकेट सदस्यों ने चुप्पी साध ली। एक अखबार में पूर्व विधायक मनीषा पंवार ने इसकी पुष्टि भी की। इस घोटाले के आरोप विधानसभा चुनाव 2013 के कुछ पहले कांग्रेस सरकार के समय लगे थे। बाद में आई भाजपा सरकार ने इस पर जांच बैठाई थी। जांच के दौरान तत्कालीन वीसी एवं पूर्व कांग्रेस विधायक सहित 6 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था। बाद में चुनाव के कुछ महीनों पहले ही भर्ती घोटाले में बड़ा फैसला लेते हुए क्लीन चिट दी गई। जेएनवीयू शिक्षक भर्ती में 154 नियुक्तियां की गई थी। बाद में इनमें से 34 लोगों को बर्खास्त कर दिया गया था। जिन्हें 2020 में फिर बहाल कर दिया गया था। इधर सिंडिकेट में फैसला होते ही शिक्षकों को तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित अब निलंबित वीसी प्रो. केएल श्रीवास्तव ने धन्यवाद देते हुए कई मैसेज यूनिवर्सिटी के सोशल मीडिया ग्रुप में करना बताया। सिंडिकेट मेंबर पूर्व विधायक मनीषा पंवार ने एक अखबार को बताया कि 2013 में शिक्षक प्रोफेसर भर्ती घोटाले में जो आरोप लगाए गए थे, वो प्रो. बीएम शर्मा की रिपोर्ट में गलत साबित हुए हैं।
इधर भाजपा के तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने एक अखबार को बताया था कि राज्य सरकार ने जेएनवीयू में हुई शिक्षक भर्ती सही साबित करने को ही प्रो. बीएम शर्मा कमेटी गठित की थी। सरकार के पिछले कार्यकाल में किए घोटाले को इस कमेटी के माध्यम से सही साबित करने की कोशिश की है। मामला न्यायालय में भी विचाराधीन है। एसीबी की जांच के बाद तत्कालीन कुलपति, सिंडिकेट सदस्य, विधायक, चयन समिति सदस्यों व शिक्षकों को गिरफ्तार किया गया था। चार्जशीट में तथ्य प्रस्तुत करते हुए भर्ती को गलत बताया था। दशोरा कमेटी ने भर्ती को गलत बताया था। हमारी सरकार आएगी तो प्रो. पीके दशोरा की कमेटी की जांच की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करेंगे। मामला सदन में उठाएंगे।
जबकि प्रो. केएल श्रीवास्तव की अध्यक्षता में तत्कालीन समय में हुई सिंडिकेट की बैठक के लिए मात्र एक एजेंडे के तहत प्रो. शर्मा कमेटी की रिपोर्ट पर चर्चा की गई। बैठक शुरू होते ही सदस्यों ने इस पर मुहर लगा दी। सरकार द्वारा गठित प्रो. शर्मा का कार्यकाल एक साल पहले खत्म हो गया था, जिसे 1 साल के लिए बढ़ाया गया था। वह भी 30 जून को समाप्त होना था। प्रो. शर्मा ने अपनी रिपोर्ट बाद में सरकार को सौंपी। इसके बाद विवि ने सिंडिकेट की तब बैठक बुलाकर रिपोर्ट को अनुमोदित कर दिया।
मामला अब भी कोर्ट में
भर्ती प्रक्रिया शुरू से ही विवादों में रही। दो सरकारों के बीच झूलता यह मामला दो दो कमेटियों के साथ ही एसीबी के हाथ में भी रहा। हालांकि इस बीच यह हाईकोर्ट तक जा पहुंचा। शिक्षक भर्ती से जुड़ी याचिकाएं उच्च न्यायालय में लंबित है तथा विश्वविद्यालय का निर्णय हाईकोर्ट के निर्णय के अधीन रहना था।
22 जून 2023 को राइजिंग भास्कर में वरिष्ठ अधिवक्ता एनडी निंबावत की पड़ताल
जेएनवीयू शिक्षक भर्ती 2013 घोटाला या गड़बड़झाला?
एक अखबार में दिनांक 16 व 17 जून 2023 के जोधपुर संस्करण में पहले दिन छपे समाचार में जयनारायण व्यास विवि में 2012-13 में शिक्षक भर्ती अब घोटाला नहीं छपा। दूसरे दिन 17 जून को छपा तत्कालीन वीसी दबाव में थे। मैंने दोनों दिनों के समाचारों को पढ़ा। दोनों शीर्षक वाले समाचार अपने आपने में विरोधाभासी है। तत्कालीन वीसी अगर दबाव में थे तो निश्चित रूप से अनियमितता होना प्रकट होता है।
बहरहाल प्रश्न यह है कि एक तरफ जब पहले जांच कमेटी जो प्रो. पीके दशोरा की अध्यक्षता में गठित हुई और उन्होंने जो जांच की उसमें उनका कहना है कि जैसा कि पेपर में छपा हमारी कमेटी ने पूरी निष्पक्षता के साथ जांच की और उसमें अनियमितता साबित हुई। इस जांच रिपोर्ट पर एसीबी ने मुकदमा दर्ज कर 7 हजार पेज की चार्जशीट प्रस्तुत की। जैसा कि इस संबंध में हाईकोर्ट में मामला विचाराधीन होना बताया तो मैंने पढ़ा। वहीं दूसरी तरफ बाद वाली जांच कर रिपोर्ट भेज दी गई थी। इस मामले में मुझे कुछ नहीं कहना। पूरी गहनता से जांच की। जांच रिपोर्ट मुझे याद नहीं। यहां जांच राज्य सरकार के निर्देशानुसार का क्या अर्थ हुआ? क्या राज्य सरकार ने जैसा निर्देश दिया वैसी ही जांच की गई उसमें गहनता थी। निष्पक्षता नहीं थी? दो कमेटियों की जांच रिपोर्ट। पहली में निष्पक्षता की जांच। निष्पक्षता से जांच में भर्ती गलत ठहराई गई। और दूसरी में क्लीन चिट। अब इन दोनों कमेटियों की जांच रिपोर्ट में कौनसी सही है? इसकी जांच कौन करेगा?
क्या प्रोफेसर बीएम शर्मा की अध्यक्षता वाली जांच कमेटी के शिक्षक भर्ती को क्लीन चिट के आधार पर सरकार एसीबी कोर्ट से मुकदमा वापस ले लेगी? अगर नहीं तो इस क्लीन चिट का मुकदमे पर क्या प्रभाव पर रहेगा? अगर मुकदमा वापस ले लिया जाता है तो क्या प्रो. पीके दशोरा की अध्यक्षता वाली जांच के सदस्यों पर गलत एवं झूठी जांच रिपोर्ट तैयार करने के लिए मुकदमा किया जाएगा? ये ऐसे प्रश्न है जिनका हल क्या होगा? कौन बतावै? 2013 से 2023 यानी 10 वर्ष तक जेएनवीयू प्रशासन जांच कमेटियां, एसीबी व न्यायालय में चल रहे मुकदमे का समय और उन पर लाखों रुपयों का खर्चा ये सरकारी पैसा जनता का पैसा है इसे इस तरह खर्च करने के लिए कौन जिम्मेदार है? मेरे दृष्टिकोण से जब पहली जांच कमेटी की जांच रिपोर्ट के आधार पर एसीबी में मुकदमा में दर्ज होने के पश्चात चार्जशीट पेश कर दी गई जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दे दी गई जैसा कि पेपर में छपा तो दूसरी जांच कमेटी गठित कर पुन: जांच करवाना कानूनी गलत है। वो भी इन परिस्थितियों में जबकि पहली जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर एसीबी ने न्यायालय में चार्जशीट पेश कर दी गई। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। जहां मामला विचाराधीन है।
राइजिंग भास्कर तत्काल : ये मामला लंबा चलेगा, अंतत: कुछ हाथ लगने वाला नहीं
शिक्षक भर्ती घोटाले को लेकर राजभवन के आदेश से जेएनवीयू के कुलपति प्रो. केएन श्रीवास्तव को बेशक निलंबित कर उदयपुर के वीसी को नई जिम्मेदारी दे दी गई है। मगर जैसा कि होता आया है। ये मामला हाईप्रोफाइल है। इसमें सभी सरकारों के व्यक्तिगत हित जुड़े हैं। यह मामला केवल कांग्रेस और भाजपा में से किसी एक को फायदा पहुंचाने वाला नहीं है। दोनों के हित सधते हैं। इसलिए मामला लंबा चलता रहेगा। कभी निलंबन होंगे, कभी आरोप लगेंगे, कभी जांच होगी, कभी जांच एजेंसी बदलेगी? सवाल है जब एसीबी की रिपोर्ट में आरोप साबित हो गए थे तो बाद में क्लीन चिट क्यों दी गई? कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर क्लीन चिट दी गई। इस मामले में दो कमेटियां थी और दोनों की कमेटियां विरोधाभासी थी। फिर क्लीन चिट कैसे दे दी गई? मीडिया जो अब केएल श्रीवास्तव को निलंबन का श्रेय ले रहा है उसके दिमाग में यह सवाल क्यों नहीं आया। तब तो मीडिया ने भी क्लीन चिट की छोटी सी खबर छापकर मामला दबा दिया। इसमें कहीं न कहीं मीडिया का भी हित सधा रहा है। कुछ भी हो यह मामला अभी लंबा घसीटा जाएगा। एसीबी की करतूत तो सामने आ ही गई है। अब एसओजी का भूत नया सामने आएगा। फिर पांच साल गुजर जाएंगे। फिर पता नहीं सरकार का ऊंट किस करवट बैठेगा? फिर कोई नई जांच कमेटी बैठेगी? फिर नए वीसी आएंगे। फिर हाईकोर्ट में तो मामला है ही…। सरकारी व्यवस्थाओं की रैंगती व्यवस्था अंतहीन बहस को जन्म देने वाली है। पाठक अखबार पढ़ते रहें। खुश होते रहें अपने पसंदीदा अखबारों को पढ़कर। आप उसमें सच्चाई ढूंढ़ते रहें। सच्चाई शब्द अब गाली सा लगने लगा है। इसलिए सच्चाई का इंतजार करते रहें…।
