कांग्रेस के लिए आत्ममंथन का समय, दोनों ही सीटें इस बार एक ही पार्टी को मिलेगी, परिणाम औपचारिकता भर होंगे, मोहर जनता 25 नवंबर को ही लगा चुकी
डीके पुरोहित. जैसलमेर
जैसलमेर में 77.56 प्रतिशत और पोकरण में 87.10 प्रतिशत पोलिंग हुई। परिणाम तीन दिसंबर को आएंगे। यह औपचारिकता ही साबित होंगे। बेमाता ने लेख तो 25 नवंबर को ही लिख दिए थे। कांग्रेस के लिए आत्ममंथन का समय है। उस दिन ही पता चल गया था जब जैसलमेर जिला कांग्रेस अध्यक्ष उम्मेदसिंह तंवर की चिट्ठी लीक हो गई थी और उसमें साफ-साफ लिखा था कि सालेह मोहम्मद संगठन को कमजोर कर रहे हैं। रूपाराम और सालेह मोहम्मद के बीच दूरियां तब से ही बढ़ गई थी जो बढ़ती ही गई। पिछले चुनाव में रूपाराम 30 हजार से अधिक वोटों से जीते थे। इस बार उनके खिलाफ लहर भी नहीं थी।
जिस हिसाब से पोलिंग हुई है उससे नतीजे तय हो गए हैं। कांग्रेस को दोनों सीटों से नुकसान होता तय दिख रहा है। यह कहें कि हमें तो अपनों ने मारा औरों में कहां दम था। हमारी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था…। गलत नहीं होगा। सालेह मोहम्मद और रूपाराम की आपसी लड़ाई दोनों के लिए घातक मानी जा रही थी और इस चुनाव में यहीं परिणाम होने वाले हैं। सालेह मोहम्मद की स्थिति पोकरण में पहले दिन से ही खराब थी। उन्हें बड़ा दिल करके खुद ही चुनाव से हट जाना चाहिए था। रूपाराम के खिलाफ कोई लहर भी नहीं थी। मगर उनकी आपसी लड़ाई दोनों के लिए नुकसानदायक मानी जा रही थी और तीन दिसंबर को यह तय भी हो जाएगा। तब तक सिर्फ इंतजार ही करना होगा। रूपाराम के लिए यह अच्छा मौका था। उन्होंने कार्य भी अच्छे किए थे। मगर राजपूत बाहुल्य इस सीट के लिए राजपूतों ने पूरा जोर लगाया। सुनीता भाटी जो वर्षों से कांग्रेस की समर्पित सिपाही रही, उनकी अनदेखी की गई और उन्होंने भाजपा जॉइन कर ली। यह कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हुआ। सालेह मोहम्मद की राजनीतिक हत्या हो चुकी है। यह रिजल्ट नहीं है। मगर इसे तीन दिसंबर को साबित होने में देर भी नहीं लगेगी। इस बार महंत प्रताप पुरी अपनी पिछली टीस निकालते हुए नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस की नीतियां ही खुद उनके लिए घातक होने वाली है। राइजिंग भास्कर ने पहले दिन ही कहा था कि सालेह मोहम्मद पोकरण से जिताऊ उम्मीदवार नहीं है। लेकिन हमने यह भी कहा था कि रूपाराम हारने वाले उम्मीदवार नहीं है। लेकिन दोनों की आपसी खींचतान दोनों के लिए नुकसानदायक साबित होगी। अगर पोकरण से सुनीता भाटी को टिकट दी जाती और जैसलमेर से रूपाराम को और सालेह मोहम्मद दोनों का समर्थन करते तो दोनों सीटें कांग्रेस की झोली में आ सकती थी। मगर अशोक गहलोत की नीतियां खुद उन पर भारी पड़ने वाली है। सालेह मोहम्मद के लिए अब उठने का मौका कम ही है। हालांकि उनकी उम्र अभी कम है। राजनीति में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन धारा के विपरीत चलना नुकसानदायक ही होता है। वो भी तब जनता आपके साथ ही ना हो। तब हमें बीच का रास्ता अपनाना ही पड़ता है। खुद शहंशाह न बनकर अपने आदमी को शहंशाह बनाना ठीक रहता है। अगर सालेह मोहम्मद सुनीता भाटी का साथ देते और उन्हें ही पोकरण से और जैसलमेर से रूपाराम को टिकट दी जाती तो दोनों सीटें कांग्रेस जीत सकती थी। अभी तीन दिसंबर को परिणाम आना बाकी है। मगर यह सिर्फ औपचारिकता भर होने वाला है। परिणाम जनता ने 25 नवंबर को ही लिख दिया है।
रूपाराम के लिए इस बार शानदार मौका था। परिस्थितियां उनके अनुरूप थी। मगर टिकट देने में ही देर कर दी। टिकट मिली भी तो सालेह मोहम्मद को नाराज करके। सालेह मोहम्मद भी खिंचे-खिंचे रहे। सारा खेल बना बनाया बिगड़ गया। अभी हम तीन दिसंबर का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन कहते हैं ना कि जनता अपना फैसला पहले लिखती है। उस पर तो सिर्फ तीन दिसंबर को मोहर लगनी है। जनता ने अपना काम कर दिया है। अगर रूपाराम जैसलमेर से जीतते हैं तो यह चमत्कार ही होगा। क्योंकि जिस तरह से पोलिंग जैसलमेर और पोकरण में हुई है उससे नतीजे तो आ चुके हैं। छोटूसिंह भाटी मिलनसार व्यक्ति हैं। उनकी जैसलमेर में अच्छी इमेज हैं। उनके बारे में सर्वे भी उनके पक्ष में था। राजपूत वोटर्स की एकजुटता पूरे चुनाव में रही। पोकरण में भी राजपूत वोटर्स का महंत प्रतापपुरी को पूरा साथ मिला। पहले ऐसा लग रहा था कि किसी एक पार्टी को दोनों सीटें नहीं मिलेगी। लेकिन अब लग रहा है कि दोनों सीटें एक ही पार्टी को मिलेगी। और वह पार्टी भी तय हो गई है।
