-2013 के जेएनवीयू के चर्चित घोटाले को दबाने में अमेरिकर की जो बाइडेन सरकार के फंड राइजर एनआरआई ने भेजे थे रुपए, इसे गोदारा को डिलीवर किए गए, डिलीवर कैसे हुए इसका पता नहीं चल पाया है, इसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी फारूख आफरीदी की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है
विशेष संवाददाता. राइजिंग भास्कर जोधपुर
इस वक्त की सबसे बड़ी खबर हम आपको बता रहे हैं। 2013 में जेएनवीयू में हुए शिक्षक भर्ती घोटाले में एसीबी के आईजी सवाई सिंह गोदारा ने 5 करोड़ रुपए लेकर मामला रफा-दफा कर कर दिया है। ये राशि उन्हें अमेरिका के जो बाइडेन सरकार के फंड राइजर एक एनआरआई ने भिजवाएं हैं। यह राशि गोदारा को कब और कैसे डिलीवर की गई, इस बारे में पुख्ता जानकारी नहीं मिली। लेकिन पूरे मामले में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी फारूख आफरीदी की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है। चार रोज पहले इस रिपोर्टर ने जब शिक्षक भर्ती घोटाले के मामले में एसीबी के आईजी गोदारा को इस शिक्षक भर्ती घोटाले के बारे में जानकारी मांगी तो उन्होंने कहा कि एसीबी में मामला ही दर्ज नहीं हुआ। जब उनसे पूछा गया कि अखबारों में तो यही छप रहा है कि मामला एसीबी में है। तो उनका कहना था कि मामला एसओजी में दर्ज हुआ है। जब हमने जोधपुर में जनवरी 2021 से मार्च 2023 तक एसओजी में कार्यरत कमलसिंह से पूछा कि क्या एसओजी में कभी शिक्षक भर्ती घोटाले का मामला दर्ज हुआ था? तो उन्होंने बताया कि एसओजी में कभी शिक्षक भर्ती घोटाले का मामला दर्ज नहीं हुआ।
जेएनवीयू शिक्षक भर्ती 2013 : अपनी सरकार, अपने चेले-चोला, फिर कैसे हो सकता है घोटाला
लौटते हैं 10 साल पहले। 2012-13 के दिन थे। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में 154 शिक्षकों की भर्ती की गई। इसमें 34 लोगों को बर्खास्त कर दिया गया था। जिन्हें 2020 में फिर बहाल कर दिया गया। जब इस भर्ती में घोटाले की बू आई तो 2014 में भाजपा की सरकार ने आते ही शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच कमेटी बनाई गई। प्रो. पीके दशोरा कमेटी की जांच कमेटी ने घोटाले को सही माना। उन्होंने शिक्षक भर्ती रद्द करने की सिफारिश की। हालांकि रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। इसके साथ ही भाजपा सरकार ने जांच एसबीबी से भी करवाई। 7500 पेज की चार्जशीट में एसबीबी ने घोटाले को साबित किया। मामले में तत्कालीन कुलपति और पूर्व विधायक सहित 6 लोग जेल भेजे गए। राजभवन ने इसे गंभीरता से लेते हुए जांच कमेटी बनाई। कमेटी ने 34 शिक्षकों को अयोग्य माना। जिन्हें सिंडिकेट ने बर्खास्त किया। 2020 में कांग्रेस सरकार आते ही 28 शिक्षकों को फिर बहाल कर दिया गया। ममामला हाईकोर्ट में भी गया, जहां सुनवाई जारी है।
10 साल बाद क्लीन चिट
2012-13 के 154 शिक्षकों की भर्ती घोटाले को आखिर 10 साल बाद क्लीन चिट दे दी गई। जेएनवीयू ने सरकार की नई गठित प्रो. बीएम शर्मा कमेटी की जांच रिपोर्ट को आनन-फानन में बीते गुरुवार को सिंडिकेट की विशेष बैठक में पेश कर मुहर लगा दी गई। ये बैठक पूरी तरह से गोपनीय रखी गई। बताया जा रहा है कि इसकी जानकारी सुबह ही दी गई। वहीं 2 विधायक सदस्य जोधपुर से बाहर होने के कारण ऑनलाइन जुड़े। इधर इस फैसले को लेकर विवि प्रशासन व सिंडिकेट सदस्यों ने चुप्पी साध ली। एक अखबार में विधायक मनीषा पंवार ने इसकी पुष्टि भी की है। इस घोटाले के आरोप विधानसभा चुनाव 2013 के कुछ पहले कांग्रेस सरकार के समय लगे थे। बाद में आई भाजपा सरकार ने इस पर जांच बैठाई थी। जांच के दौरान तत्कालीन वीसी एवं पूर्व कांग्रेस विधायक सहित 6 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था। अब चुनाव के कुछ महीनों पहले ही भर्ती घोटाले में बड़ा फैसला लेते हुए क्लीन चिट दी गई है।
जेएनवीयू शिक्षक भर्ती में 154 नियुक्तियां की गई थीं। बाद में इनमें से 34 लोगों को बर्खास्त कर दिया गया था। जिन्हें 2020 में फिर बहाल कर दिया गया था। इधर गुरुवार को सिंडिकेट में फैसला होते ही शिक्षकों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित वीसी प्रो. केएल श्रीवास्तव को धन्यवाद देते हुए कई मैसेज यूनिवर्सिटी के सेशल मीडिया ग्रुप में करना बताया जा रहा है। सिंडिकेट मेंबर मनीषा पंवार ने एक अखबार को बताया कि 2013 में शिक्षक-प्रोफेसर भर्ती घोटाले में जो आरोप लगाए गए थे, वो प्रो. बीएम शर्मा की रिपोर्ट में गलत साबित हुए हैं। बीते गुरुवार को जेएनवीयू की सिंडिकेट की बैठक हुई।
अखबारों का विश्लेषण : खबरों पर एक नजर
प्रो. दशोरा : जिन्होंने सबसे पहली जांच की, निष्पक्ष जांच कर भर्ती गलत ठहराई
पूर्व जांच कमेटी के अध्यक्ष प्रो. पीके दशोरा ने एक अखबार को पिछले दिनों बताया कि शिक्षक भर्ती घोटाले की हमारी कमेटी ने पूरी निष्पक्षता के साथ जांच की थी। उसी आधार पर हमने इस भर्ती को गलत ठहराया था। नई जांच और विश्वविद्यालय के निर्णय के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना।
जिन्होंने अब जांच की : रिपोर्ट सरकार को भेज दी, उसमें क्या था मुझे याद नहीं :
मौजूदा जांच कमेटी के अध्यक्ष प्रो. बीएम शर्मा ने एक अखबार को बताया कि राज्य सरकार के निर्देशानुसार पूरे मामले की जांच कर रिपोर्ट भेज दी गई थी। इस मामले में मुझे कुद नहीं कहना। पूरी गहनता से जांच की। जांच रिपोर्ट मुझे याद नहीं।
…और जिन्होंने विधानसभा में मुद्दे को उठाया :
यह गलत फैसला, सरकार बदलेगी तो हम फिर से कार्रवाई करेंगे
नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने एक अखबार को बताया कि राज्य सरकार ने जेएनवीयू में हुई शिक्षक भर्ती सही साबित करने को ही प्रो. बीएम शर्मा कमेटी गठित की थी। सरकार के पिछले कार्यकाल में किए घोटाले को इस कमेटी के माध्यम से सही साबित करने की कोशिश की है। मामला न्यायालय में भी विचाराधीन है। एसीबी जांच के बाद तत्कालीन कुलपति, सिंडिकेट सदस्य, विधायक, चयन समिति सदस्यों व शिक्षकों को गिरफ्तार किया था। चार्जशीट में तथ्य प्रस्तुत करते हुए भर्ती को गलत बताया था। दशोरा की कमेटी ने भर्ती को गलत बताया था। हमारी सरकार अाएगी तो प्रो. पीके दशोरा की कमेटी की जांच की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करेंगे। मामले सदन में उठाएंगे।
सिंडिकेट बुलाकर एक ही एजेंडा रखा…और फैसला
कुलपति प्रो. केएल श्रीवास्तव की अध्यक्षता में हुई सिंडिकेट बैठक के लिए एक मात्र एजेंडे के तहत प्रो. शर्मा कमेटी की रिपोर्ट पर चर्चा की गई। बैठक शुरू होते ही सदस्यों ने इस पर मुहर लगा दी। सरकार द्वारा गठित प्रो. शर्मा कमेटी का कार्यकाल पिछले साल खत्म हो गया था, जिसे 1 साल के लिए बढ़ाया गया था। वह भी 30 जून को समाप्त होना था। प्रो. शर्मा ने अपनी रिपोर्ट हाल ही में सरकार को सौंपी। इसके तत्काल बाद विवि ने बीते गुरुवार को सिंडिकेट बुलाकर रिपोर्ट को अनुमोदित किया गया।
मामला अब भी कोर्ट में
भर्ती प्रक्रिया शुरू से ही विवादों में रही। दो सरकारों के बीच झूलता यह मामला दो-दो कमेटियों के साथ ही एसीबी के हाथ में भी रहा। हालांकि इस बीच यह हाईकोर्ट तक जा पहुंचा। शिक्षक भर्ती से जुड़ी याचिकाएं उच्च न्यायालय में लंबित है तथा विश्वविद्यालय का निर्णय हाईकोर्ट के निर्णय के अधीन रहेगा।
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7 चूक साबित हुई थी :
एक अखबार में छपी खबर के मुताबिक जेएनवीयू में 2012-13 में तत्कालीन कुलपति प्रो. बीएस राजपुरोहित के कार्यकाल में 154 असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसरों की भर्ती हुई थी। यूजीसी नियमों को ताक पर रख कर चहेते व राजनेता रिश्तेदारों व रसूखदारों को अयोग्य होने के बाद भी नियुक्ति देने, आवेदन तिथि के बाद गुपचुप आवेदन व दस्तावेज स्वीकार कर नियुक्ति देने सहित कई अनियमितताएं सामने आईं थीं।
अयोग्य भर्ती किए, राजस्थानी का इंटरव्यू गुजराती ने लिया, जो एक्सपर्ट नहीं आए…उनके भी साइन हो गए
प्रो. दशोरा कमेटी की सिफारिश :
-प्रो. दशोरा ने लिखा कि भर्ती प्रक्रिया में इतनी खामियां हैं कि रद्द करना चाहिए। शिक्षक भर्ती 2011-12 में निकाला गया विज्ञापन गलत था। यूजीसी के ऑर्डिनेंस 317 और एआईसीटीई के 314 (4) को बदल दिया। विविने मास्टर ऑफ टूरिज्म अभ्यर्थी की भी भर्ती कर ली।
-जेएनवीयू के पास रोस्टर ही नहीं था। आरक्षण की कहीं पालना नहीं हुई। फाइन आर्ट विषय केवल एक ही विषय विशेषज्ञ था।
-प्रबंधन में पीएचडी के अंक जोड़े गए, कला, वाणिज्य, विज्ञान और इंजीनियरिंग में नहीं अभ्यर्थी को पीएचडी के 20 अंक मैरिट में लाया गया।
-पैनल ऑफ एक्सपर्ट गलत। राजस्थानी का इंटरव्यू गुजराती के शिक्षकों ने लिया।
-कई अभ्यर्थियों ने आवेदन के बाद दस्तावेज जमा करवाए थे और आश्चर्यजनक रूप से उनका चयन भी हुआ।
एसीबी ने जांच में जो साबित किया था :
-बैकडेट में चहेतों के आवेदन लिए। स्क्रूटनिंग में हटे तो दुबारा शामिल कराए।
-रिश्तेदारों-सिफारिश वाले जो अयोग्य थे, इंटरव्यू में बुलाया गया। मैरिट में चयन नहीं किया।
-एक पद पर 10 को इंटरव्यू के लिए बुलाना था, मगर नियम तोड़ा ज्यादा बुलाए।
-मनमर्जी से पीएचडी धारकों को 20 अंक अतिरिक्त वेटेज दिया।
-रिकॉर्ड में कांट-छांट की। फर्जी दस्तावेज बनाए और कुछ रिकॉर्ड गायब कर दिया।
-राजस्थान से बाहर के लोगों को आरक्षण का तरीके से लाभ दिया गया।
-राजभवन और राज्य सरकार के साथ धोखाधड़ी की। कवरिंग लेटर भ्रमित करने वाला था।
17 जून को एक अखबार में छपी खबर का विश्लेषण :
तत्कालीन वीसी दबाव में थे, हाथ जोड़ कहा था- मुझे नौकरी करनी है, सिफारिश माननी पड़ेगी
जोधपुर। एक अखबार में 17 जून को छपी खबर का मजमून किस इस तरह था। शिक्षक भर्ती में हुई धांधलियों को एसीबी ने कड़ी दर कड़ी पिरोकर हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया था। करीब सात हजार पन्नों की चार्जशीट में कई खुलासे किए थे। कैसे चहेतों के लिए इंटरव्यू के प्रश्न पहले ही तय किए, ताकि वे बोर्ड के सामने धाराप्रवाह जवाब दे सकें। कैसे समरी शीट्स में कांट-छांट कर योग्य को अयोग्य बनाया गया। राजनीतिक सिफारिश व धन-बल का खुलकर उपयोग होने का जिक्र भी किया गया। ये सब बातें जेएनवीयू के कई प्रोफेसर्स व भर्ती के दौरान जोधपुर से बाहर से आए विषय विशेषज्ञों ने अपने बयानों में कही थी। जिसे एसबी ने चार्जशीट में लिखा। लेकिन प्रो. बीएम शर्मा की रिपोर्ट के बाद तो विवि ने इस जांच को भी नकार दिया।
बयानों में यह भी सामने आया था कि तत्कालीन वीसी प्रो. बीएस राजपुरोहित ने चयनकर्ताओं के सामने अपने ऊपर दबाव होना बताया। जेएनवीयू शिक्षक भर्ती घोटाले के मामले में एसीबी की जांच के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम विवि के भूगोल विशेषज्ञ प्रो. मोहम्मद अली ने चौंकाने वाला खुलासा किया। एसीबी को दिए गए बयान में अली ने बताया कि अभ्यर्थियों के चयन का साक्षात्कार कर उन्हें ग्रेडिंग व अंक देकर एक सामूहिक सूची तैयार की गई थी। हमने मेरिट के आधार पर चयन किया था। जिसकी सूची हमने कुलपति को उपलब्ध करवा दी थी, लेकिन वह सूची बाहर नहीं आई। तो इसके लिए कुलपति स्वयं जिम्मेदार है। कुलपति ने हाथ जोड़कर कहा था कि हमारे पास पांच अलग-अलग स्तर की सूचियां आई हुई है। हर एक में से कम से कम एक अभ्यर्थी का चयन करना है। उन्होंने यह भी कहा कि मुझ पर दबाव है। मुझे नौकरी करनी है, इसलिए सिफारिशों को मानना ही होगा। हमारी सहमति नहीं होने के बावजूद चयन प्रक्रिया में अयोग्य अभ्यर्थियों का चयन किया गया।
साक्ष्य : चयन में पक्षपात, भाई भतीजावाद और मिलीभगत के आरोप जो नकारे गए
अर्थशास्त्र के विषय विशेषज्ञ जीएस गुप्ता ने नोट ऑफ डिसेंट दिया था कि सुभाषचंद्र शर्मा प्रो. पद के लिए अयोग्य है। इसके बावजूद उनका चयन हो गया।
-गवाह नरपत सिंह शेखावत ने बताया कि चयन समिति के सदस्य प्रोफेसर डीएस चूंडावत ने साक्षात्कार से पूर्व रात को फोन कर कहा कि यदि अपनी पुत्री का असिस्टेंट प्रो. पद पर चयन करवाना है तो अभी होटल आकर मिलें।
-विशेषज्ञ प्रो. भगवान सिंह विष्ट के अनुसार राजेंद्रसिंह खीची आवेदन प्राप्ति के अंतिम तिथि तक यूजीसी के नियमानुसार पीएचडी धारक नहीं थे। वहीं ऋषभ गहलोत एमए तक उत्तीर्ण नहीं था।
-प्रो. एसएस शर्मा के पुत्र सुनील आसोप ने 11 नवंबर 2006 को पीएचडी की डिग्री हासिल की थी। आवेदन की तिथि तक उसे 5 वर्ष दो माह व 13 दिन का टीचिंग अनुभव था। नियमानुसार 8 साल का अनुभव जरूरी है।
-वरिष्ठ लिपिक स्व. केशवन एंबारन ने बताया था कि कुलपति राजपुरोहित के मौखिख निर्देश पर राजेंद्रसिंह खीची के आवेदन पर स्क्रूटनिंग कमेटी के दोनों सदस्यों एसके गुप्ता व नरेंद्र अवस्थी द्वारा लिखा अयोग्य हटाकर योग्य लिख दिया।
-प्रो. कल्पना पुरोहित ने बताया था कि अंग्रेजी विभाग के विवेक के आवेदन पर उन्होंने अयोग्य लिखा था। लेकिन 21 दिसंबर 2012 काे संस्थापन शाखा के अधिकारी ने उन्हें बताया कि कुलपति के आदेशानुसार विवेक को योग्य सूची में जोड़ा गया है।
-आरोपी…चयन समिति, विषय विशेषज्ञ और 43 लाभार्थी, जो अब पाक साफ
-11 चयन समिति में प्रोफेसर पीएस चूंडावत, प्रो. नरेंद्र अवस्थी, प्रो. आरसीएस राजपुरोहित, प्रो. आरएन प्रसाद, प्रो. कल्पना पुरोहित, प्रो. भीमसिंह चौहान, प्रो. विनीत परिहार, प्रो. अर्जुनदेव चारण, प्रो. जेके शर्मा, प्रो. राजेंद्र परिहार व डॉ. एमएम रॉय शामिल थे।
-10 सब्जेक्ट एक्सपर्ट में प्रो. कपिल कपूर, डॉ. अक्षय कुमार, डाॅ. एके भटनागर, मोहम्मद अनीष, डॉ. अब्दुल रहुफ, प्रो. दीपक रावल, प्रो. जेएस पंवार, डॉ. नवल किशोर, प्रो. एसबी शुक्ला व प्रो. एमवी राव शामिल थे।
-43 लाभार्थी में सुनील आसोपा, ऋषभ गहलोत, मनीष वडेरा, राजेंद्रसिंह खीची, मोहित, शरद शेखावत, विवेक, यामिनी शर्मा, फिरदोश अंसारी, सीमा परवीन, रजनीकांत त्रिवेदी, विभा भूत, राखी व्यास, कामिनी ओझा, ऋचा बोहरा, जया, वीनू जॉर्ज, ललित झाला, प्रतिभा सांखला, महेंद्र पुरोहित, नरेंद्रसिंह भाटी, उम्मेदराज तातेड़, आशा राठी, आशीष माथुर, रमेश कुमार चौहान, रचना दिनेश, कामना शर्मा, संगीता परिहार, ओमप्रकाश, अमित धारीवाल, वीरेंद्रसिंह परिहार, शिवकुमार बारबर, लेखू गहलोत, हेमसिंह गहलोत, पूनम पूनिया, पूजा गहलोत, नीलम कल्ला, निशांत, आफरीन अंजुम, सुरेंद्र कुमार, विनीता चौहान, सुभाषचंद्र शर्मा रिटायर्ड और नाहर सिंह जोधा।
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पूरे मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता एनडी निंबावत की समानांतर पड़ताल :
जेएनवीयू शिक्षक भर्ती 2013 घोटाला या गड़बड़झाला
जोधपुर। एक अखबार में दिनांक 16 व 17 जून 2023 के जोधपुर संस्करण में पहले दिन छपे समाचार में जयनारायण व्यास विवि में वर्ष 2012-13 में शिक्षक भर्ती अब घोटाला नहीं छपा। दूसरे दिन 17 जून को छपा तत्कालीन वीसी दबाव में थे। मैंने दोनों दिनों के समाचारों को पढ़ा। दोनों शीर्षक वाले समाचार अपने आप में विरोधाभासी हैं। तत्कालीन वीसी अगर दबाव में थे तो निश्चित रूप से अनियमितता होना प्रकट होता है।
बहरहाल प्रश्न यह है कि एक तरफ जब पहले जांच कमेटी जो प्रो.पीके दशोरा की अध्यक्षता में गठित हुई और उन्होंने जो जांच की उसमें उनका कहना है कि जैसा कि पेपर में छपा हमारी कमेटी ने पूरी निष्पक्षता के साथ जांच की और उसमें अनियमितता साबित हुई। इस जांच रिपोर्ट पर एसीबी ने मुकदमा दर्ज कर 7 हजार पेज की चार्जशीट प्रस्तुत की। जैसा कि इस संबंध में हाईकोर्ट में मामला विचाराधीन होना बताया तो मैंने पढ़ा। वहीं दूसरी तरफ बाद वाली जांच कमेटी जो प्रो. बीएम शर्मा की अध्यक्षता में गठित हुई। उसमें भर्ती को क्लीन चिट दी गई। जैसा कि बताया गया कि प्रो. बीएम शर्मा ने कहा कि राज्य सरकार के निर्देशानुसार जांच कर रिपोर्ट भेज दी गई थी। इस मामले में मुझे कुछ नहीं कहना। पूरी गहनता से जांच की। जांच रिपोर्ट मुझे याद नहीं। यहां जांच राज्य सरकार के निर्देशानुसार का क्या अर्थ हुआ? क्या राज्य सरकार ने जैसा निर्देश दिया वैसी ही जांच की गई उसमें गहनता थी। निष्पक्षता नहीं थी? दो कमेटियों की जांच रिपोर्ट। पहली में निष्पक्षता की जांच। निष्पक्षता से जांच में भर्ती गलत ठहराई गई। और दूसरी में क्लीन चिट। अब इन दोनों कमेटियों की जांच रिपोर्ट में कौनसी सही है? इसकी जांच कौन करेगा?
क्या प्रोफेसर बीएम शर्मा की अध्यक्षता वाली जांच कमेटी के शिक्षक भर्ती को क्लीन चिट के आधार पर सरकार एसीबी कोर्ट से मुकदमा वापस ले लेगी। अगर नहीं तो इस क्लीन चिट का मुकदमे पर क्या प्रभाव रहेगा? अगर मुकदमा वापस ले लिया जाता है तो क्या प्रो. पीके दशोरा की अध्यक्षता वाली जांच के सदस्यों पर गलत एवं झूठी जांच रिपोर्ट तैयार करने के लिए मुकदमा किया जाएगा? ये ऐसे प्रश्न है जिनका हल क्या होगा? कौन बतावे? 2013 से 2023 यानी 10 वर्ष तक जेएनवीयू प्रशासन जांच कमेटियां, एसीबी व न्यायालय में चल रहे मुकदमे का समय और उन पर लाखों रुपयों का खर्चा ये सरकारी पैसा जनता का पैसा है इसे इस तरह खर्च करने के लिए कौन जिम्मेदार है? मेरे दृष्टिकोण से जब पहली जांच कमेटी की जांच रिपोर्ट के आधार पर एसीबी में मुकदमा में दर्ज होने के पश्चात चार्जशीट पेश कर दी गई जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दे दी गई जैसा कि पेपर में छपा तो दूसरी जांच कमेटी गठित कर पुन: जांच करवाना कानूनी गलत है। वो भी इन परिस्थितियों में जबकि पहली जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर एसीबी ने न्यायालय में चार्जशीट पेश कर दी गई। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। जहां मामला विचाराधीन है?
