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Friday, May 16, 2025, 9:36 am

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राइजिंग भास्कर स्थापना दिवस स्टोरी-17…मानव सेवा को समर्पित ईश्वर जांगिड़ माकड

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पंकज जांगिड़ बिंदास. जोधपुर

ये हैं ईश्वर जांगिड़ माकड. उम्र करीब 50 साल. पिछले 11 साल से समाजसेवा से जुड़े है. उनके कार्यों के बारे में खुद उनसे जानते हैं. जब हम कोई काम करना शुरू करते हैं, तब सबसे पहले हमें अपने आप से संकल्प लेना होता है । कहने का अभिप्राय है कि हमें अपने आप को तैयार करना होता है। हमारे अंदर इतनी काबिलियत है कि हम ये कार्य कर सकते हैं। अगर हमारे अंदर काम करने की इच्छा शक्ति नहीं होगी तो हम कभी भी उस कार्य को सफलता-पूर्वक नहीं कर सकते। इसी दृढ इच्छा शक्ति के बलबूते समाज के लिए कुछ करने की ललक जगी तो मैंने मंथन एवं चिंतन किया कि समाज के मंच पर काफी भेदभाव है। सेवा कम और दिखावा ज्यादा है, तो ऐसा कौनसा मंच है जहाँ पर सेवा और कर्म समाज बंधुओं के सहयोग और बिना लोभ-लालच के किया जा सके।

मैंने 2011 से समाज की अनेक चल-अचल समंपत्तियों का अवलोकन किया तो करीब करीब सभी पर मठाधीश या पदाधिकारी कार्यरत थे, जो अपने विवेकानुसार कार्य कर रहे थे। इस खोज में मुझे एक स्थान ऐसा मिला जो वीरान था, जर्जर था। स्थान था हमारे समाज का मोक्ष धाम सिवांची गेट जोधपुर। जिसका कोई व्यवस्थापक नहीं था, जिसके चलते विकास नहीं हो पा रहा था। समाज के लोग आते थे और किसी अन्य स्थान का हवाला देकर बड़ी बड़ी योजनाये बनाते थे, पर जैसे ही मुख्य द्वार के बाहर जाते तब तक भूल जाते। इस स्थान की खासियत ये है की राजा हो या रंक मंच एक ही है। अंतिम सत्य है कि प्रभु के द्वार तक जाने का मार्ग यही है। यहाँ रंग रूप नहीं देखा जाता, ओहदा नहीं देखा जाता, ताकत नहीं देखी जाती, आर्थिक स्थिति नहीं देखी जाती, दोस्त दुश्मन नहीं देखे जाते। मुझे ये कर्म का मंच उचित लगा और ठान लिया कि इस स्थान को वास्तविक स्वर्ग बनाकर समाज को बता दूंगा की आत्म शक्ति मजबूत हो तो किसी भी असंभव कार्य को संभव किया जा सकता है।

गर जागृत हो आत्म शक्ति कुछ करने की ललक के साथ ! मंजिल भी मिली हैं उन्हें, जिन्होंने आत्मसात किया है इच्छाशक्ति व ईमानदारी के साथ !!

इसी आधार पर मैंने मेरे कुछ समाज के युवा साथियों जिसमे चुन्नीलाल जांगिड, दिवंगत महेश मांकड़, आमली का बास निवासी ठेकेदार ललित सुथार, अभिषेक सोमरवाल, रामेश्वर बरनेला, संपत कुलरिया, गुलशन शर्मा, पियूष शर्मा, वैभव शर्मा, पवन जांगिड, कुलदीप जांगिड, सुरेश जांगिड, रामकिशोर गेपाल, बबलू उत्तम से मंत्रणा कर उनको अपनी इस योजना के बारे में बताया, तो उन्होंने तुरंत सहयोग करने की हां भर ली। बस फिर क्या था चल पड़े उस मंजिल पर विजय पाने की ओर जो असंभव सी प्रतीत हो रही थी।

सर्वप्रथम हमने दो सप्ताह का श्रमदान कार्यक्रम चलाया और इस मोक्षधाम भूमि पर स्वच्छ मिट्टी डाली तथा साफ सफाई कर इस लायक बनाया गया कि स्थान बैठने हेतु उपयुक्त हो सके। बस फिर क्या था जैसे ही समाज के लोगो एवं भामाशाहो को इस बात का पता चला वे स्वयं आर्थिक योगदान, पौधारोपण हेतु आगे आ गए जिसकी हमें आवश्यकता थी। किसी ने धन दिया तो किसी ने वस्तु भेंट की तो किसी ने निर्माण सामग्री। समाज की सर्वोच्च संस्था श्री विश्वकर्मा जांगिड़ पंचायत के पदाधिकारी, समाज की नारी शक्ति व युवा सहयोग हेतु आगे आए, जिससे ये निर्जन स्थान एक ऐसे स्थान में परिवर्तित हो गया जहाँ पर शोक मग्न एवं साथ आये बंधू बैठे तो सकून मिल सके। इस मोक्षधाम में एक पुस्तकालय का भी निर्माण करवाया गया जिसमे प्रभु मिलन एवं आत्म ज्ञान से भरपूर पुस्तकें रखी हुई है जिसका लाभ बंधुवर लेते है।

इसी बीच एक ऐसा काल आया जिसने मानव को मानव से दूर कर दिया, अपनों को अपनों से दूर कर दिया। ये काल था कोरोना काल। इस काल ने हमारे समाज के लगभग 190 बंधुओ को लील लिया, जिसमें अधिकतर कोरोना ग्रस्त थे यानि 190 बंधुओ में से 92 कोरोना ग्रस्त जो दिवंगत हुए। इस कोरोना काल में सरकारी आदेश तो था ही कि 4 व 20 से अधिक लोग अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हो सकते थे। अंतिम यात्रा में इस बीमारी के भय की वजह से कम ही लोग आते थे या अगर आ भी जाते थे तो हाथ नहीं लगाते थे क्योंकि मृत व्यक्ति को छूने से उन्हें भी इस बीमारी से ग्रसित होने का अंदेशा था। इस कोरोना काल में मेरे द्वारा कुल 84 कोरोना ग्रस्त
दिवंगतो का विधिवत अंतिम संस्कार करवाया गया एंबुलेंस की आवाज सुनते ही सतर्क हो जाता तथा कुछ देर एम्बुलेंस को रोककर उस स्थान को सेनेटाईज करता जिस स्थान पर अंतिम संस्कार किया जाना था। फिर दिवंगत के परिजन जो एक दो साथ में आते थे उनके सहयोग से दिवंगत का अंतिम संस्कार करवाता साथ ही परिजनों के जो पीपीई किट/गल्ब्स पहने होते थे उन्हें भी बाहर फिकवाने की बजाय अग्नि के सुपुर्द करवा देता था ताकि कोई जानवर या मानव इस जानलेवा संक्रमण का शिकार न हो। जैसे ही दाह संस्कार संपन्न होता और परिजन मोक्षधाम को छोड़कर चले जाते, पुनः मेरे द्वारा स्थान के साथ हर उस वस्तु को सेनेटाईज किया जाता था जो परिजनों ने छुआ हो। मेरे इस कार्य से मोहल्ले के लोग भी व्यथी थे दुखी थे उनके मन में भी यही भय था कि कही मै मोहल्ले में कोरोना रोग न फैला दूँ।
इस महामारी के दौरान मेरे द्वारा 7 वेक्सिन शिविर का आयोजन भी करवाया गया। इन शिविरों में शहर के लगभग 2700 लोगो का सरदारपुरा स्थित गाँधी मैदान में रिकॉर्ड वैक्सीन टीकाकरण करवाकर महामारी पर अंकुश लगाने में सहयोग किया गया। कर्म की ड्योढ़ी इतनी मजबूत थी कि उसमें परम पिता परमेश्वर ने मेरा पूर्ण सहयोग किया जिसके चलते इस भयंकर महामारी का एक भी अंश मुझे छु न सका और में कर्म की राह पर तब तक चलता रहा जब तक मुझे आत्मसंतुष्टि नहीं हुई।

इसके अलावा मेरे द्वारा संपूर्ण राजस्थान से समाज के वे छात्र जो सरकारी नौकरी पाने की ललक लिए प्रतियोगी परीक्षाओ में भाग लेते है और इनका सेंटर जोधपुर में आया, तो उनके रुकने, अल्पाहार, भोजन एवं सेंटर पर छोड़ने की व्यवस्था करवाने में लगभग पिछले 6 वर्षो से योगदान दिया। जिसका लाभ समाज की युवा पीढ़ी ले रही है. इसमें मेरे सहयोगी के रूप में समाज की श्री पंचायत, मंदिर कमेटी, कर्मचारी समिति ने तो सहयोग किया ही साथ ही भारत जांगिड, पुष्पेन्द्र जांगिड, अर्जुन जांगिड, गजेन्द्र जांगिड, राजेंद्र जांगिड अपने अपने वाहन लेकर आते और मेरा इस पुनीत कार्य में पूर्ण सहयोग किया। मेरा भरकस प्रयास रहता है की इन युवाओ को किसी प्रकार की परेशानियों का सामना न करना पड़े। आज परीक्षार्थी सहयोग मुहीम बहुत ही विशाल रूप ले चुकी है तथा पुरे राजस्थान में हर जिले में यथासंभव प्रतियोगी परीक्षार्थियों का सहयोग किया जा रहा है जहाँ समाज के भवन नहीं है वहां बंधू स्वय के निवास स्थान में भी रुकवाकर सहयोग कर रहे है। इससे सामाजिक जुडाव को प्रबल मजबूती मिल रही है।

मेरे द्वारा समाज में समय समय पर रक्दान शिविरों के आयोजनों में अहम् भूमिका निभाने के साथ 24 बार रक्दान किया जा चुका है। एक बार एक्यूपंचर शिविर का आयोजन भी करवाया गया। इस शिविर में गंभीर रोगियों का एक्यूपंचर पद्धति से उपचार किया गया। सेंट्रल जेल में महिला बंदियों को फ्रिज भेंट किया ताकि उनकी आवश्यकता अनुसार उसमें दवाइयां रखी जा सके। इसके साथ ही 75 बसंत पार कर चुके वरिष्ठजनों को घर घर जाकर सम्मानित किया गया और प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले बाबा रामदेव मेले में वाहनों द्वारा आने वाले जातरुओ को यातायात पुलिस अधिकारियों के माध्यम से रिफ्लेक्टर भेंट कर जागरुकता अभियान चलाया गया।

इसके अलावा श्री विश्वकर्मा जयंती समारोह, खेलकूद प्रतियोगिताओ एवं समाज के लगभग 15 सामूहिक विवाह समारोह में सहयोग के रूप में मेरी अहम् भूमिका रहती है। बुजुर्गो का सम्मान भी मेरे द्वारा घर घर जाकर किया गया। मैं स्वय भी क्रिकेट व वालीबाल का एक खिलाडी हूँ। राजनीति मुझे न हीं आती, न ही किसी दल विशेष को महत्त्व देता हूंऔर न ही किसी रेली का हिस्सा बनता हूं। किन्तु एक साधारण कार्यकर्त्ता के रूप में जाना जाता हूँ। इन सेवा कार्य के तहत समाज द्वारा आयोजित कार्यकर्मो में सम्मानित भी किया गया।

मेरे भविष्य की योजनायें : चूँकि में एक सयुंक्त परिवार में रहता हूँ तो भविष्य में ऐसे परिवारों का मान सम्मान करना चाहता हूँ जो आज भी सयुंक्त परिवार में रहते है। उस वृक्ष का सम्मान होना आवश्यक है जिसके परिश्रम एवं संस्कार की बदोलत इस घोर कलयुग में जहां एक ओर छोटे परिवार छोटी छोटी बातो को लेकर छिन्न भिन्न हो रहे है ऐसे में भी सयुंक्त परिवार की परम्परा को जीवित रखा हुआ है. ऐसे परिवार का सम्मान तो बनता है ताकि इनसे प्रेरणा लेकर टूटते परिवारों पर अंकुश लग सके। इस माध्यम से बताना चाहता हूँ कि घर छोटा हो किन्तु ह्रदय बड़ा रखे, एक दुसरे की भावनाओ को समझे। तोड़ना आसान होता है परन्तु जोड़ना मुश्किल, इसलिए सयुंक्त परिवार में रहे एक रहे नेक रहे।
चाहता हूँ कि शिक्षा के शेत्र में समाज के पुस्तकालय का जीर्णोद्धार हो एवं वर्तमान शिक्षा पद्धति के अनुसार उसका निर्माण करवाया जाये जिससे समाज का शिक्षा के शेत्र में भविष्य और अधिक प्रबल हो। मंदिरों के निर्माण तो चरम सीमा पर है किन्तु इस परिसर में छात्रावासों एवं धर्मशालाओ का भी निर्माण हो जिससे समाज बंधूओ को स्वयं की छत मिले, दुसरो पर आश्रित न रहे व सुरक्षित रहे।

मेरी समाज बंधुओ से अपील रहेगी कि आप सपरिवार समाज के हर छोटे बड़े कार्यकर्मो में तन मन धन के साथ अधिक से अधिक संख्याबल में भाग लेकर कार्यक्रम को सफल बनाने का प्रयास करे। आपके इस प्रयास से अपने समाज की एकता का बोध भी होगा साथ ही नए रिश्ते भी कायम होंगे।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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