राइजिंग भास्कर का मानना है कि – होम लोन और पर्सनल लोन पर बीमा को अनिवार्य किया जाना चाहिए, ताकि ग्राहक और बैंक दोनों सुरक्षित रहें।
नीचे जो चार कहानियां बताई गई हैं, ऐसी वास्तविक जीवन की हजारों कहानियों का प्रतिबिंब है। हर साल हजारों परिवार इस त्रासदी से गुजरते हैं।
केस : 1 : रामेश्वर (बदला हुआ नाम)
रामेश्वर की एक निजी बैंक में क्लर्क की नौकरी लगी। नौकरी लगते ही रामेश्वर ने किराए के मकान को छोड़कर खुद के घर का सपना देखा। लोगों के परामर्श पर उसने जिस बैंक में काम करता था, उसी बैंक से 50 लाख का होम लोन लेकर मकान खरीद लिया। छह माह में ही रामेश्वर की हार्ट अटैक से मौत हो गई। आखिर वही हुआ जो आमतौर पर होता है। परिवार संकट में आ गया। बैंक की किस्तें भरने की स्थिति में परिवार नहीं था। बैंक ने घर नीलाम कर अपनी राशि वसूल ली। नीलामी में घर की कीमत पूरी नहीं मिली। बाकी राशि के लिए बैंक ने घर वालों को परेशान करना शुरू कर दिया। रामेश्वर की पत्नी और बच्चे अभी तक लोन की बाकी राशि चुकाने में लगे हैं।
केस : 2 : हीरालाल (बदला हुआ नाम)
हीरालाल प्राइवेट जॉब करता था। उसने एक बिचौलिए के मार्फत निजी बैंक से 30 लाख का लोन लेकर मकान खरीदा। तीन साल तक हीरालाल बराबर किस्तें भरता गया। बाद में उसकी जॉब छूट गई। वह किस्तें भरने में असमर्थ हो गया। बैंक से नोटिस आने लगे। वह नोटिस के जवाब देने में आनाकानी करने लगा। आखिर बैंक ने कानूनी कार्रवाई शुरू की और मकान नीलाम कर अपनी राशि वसूल कर ली। हीरालाल अपने मकान से हाथ धो बैठा। परिवार के लिए जो छत हीरालाल ने बनाई थी वह भी छूट गई।
केस : 3 : सत्यनारायण (बदला हुआ नाम)
सत्यनारायण ने 50 हजार का पर्सनल लोन लिया। जब उसने लोन लिया वह एक दुपहिया कंपनी में जॉब करता था। बैंक ने बिना अधिक फार्मलटी के हंसी-खुशी लोन दिया। साथ ही कई कागजों पर साइन करवा लिए, जिसके बारे में सत्यनारायण को अधिक जानकारी नहीं थी। फिर कुछ माह बाद एक्सीडेंट में उसकी कमर टूट गई और उसकी जॉब भी छूट गई। वह पर्सनल लोन चुकाने में असमर्थ हो गया। किस्तें भर नहीं पाया। बैंक ने तकाजा शुरू कर दिया।
केस : 4 : बलदेव (बदला हुआ नाम)
बलदेव व्यापार करता था। उसने अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए 75 हजार का पर्सनल लोन लिया। कुछ समय तक उसने बैंक की किस्तें भरी फिर उसे व्यापार में घाटा हो गया। तो वह बैंक का डिफाल्टर हो गया। अब बैंक उसे नोटिस पर नोटिस भेज रहा है, मगर बलदेव नहीं जानता कैसे राशि चुकाई जाए।
दिलीप कुमार पुरोहित. जोधपुर
9783414079 diliprakhai@gmail.com
भारत में आज मध्यमवर्गीय परिवार का सबसे बड़ा सपना होता है – खुद का घर होना। इस सपने को पूरा करने के लिए लोग 20-25 साल तक चलने वाले होम लोन लेते हैं। इसी तरह अचानक ज़रूरत पड़ने पर पर्सनल लोन लेना भी आम बात हो गई है। लेकिन इन लोन के साथ एक बड़ा खतरा जुड़ा होता है – मृत्यु, विकलांगता या नौकरी छूटने की स्थिति में लोन कैसे चुकाया जाएगा?
वर्तमान में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) के नियमों के अनुसार लोन के साथ बीमा लेना अनिवार्य नहीं है। बैंक इसे केवल सलाह देते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सलाह पर्याप्त है?
दरअसल राइजिंग भास्कर का मानना है कि – होम लोन और पर्सनल लोन पर बीमा को अनिवार्य किया जाना चाहिए, ताकि ग्राहक और बैंक दोनों सुरक्षित रहें।
ऊपर जो चार कहानियां बताई गई हैं, ऐसी वास्तविक जीवन की हजारों कहानियों का प्रतिबिंब है। हर साल हजारों परिवार इस त्रासदी से गुजरते हैं।
लोन और जोखिम का सीधा संबंध
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लंबी अवधि का बोझ: होम लोन 20-25 साल तक चलता है। इतने लंबे समय में मृत्यु, दुर्घटना या नौकरी जाने की संभावना बहुत अधिक होती है।
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पर्सनल लोन में ज्यादा दबाव: पर्सनल लोन ब्याज दरों के कारण महंगे होते हैं। अगर नौकरी चली जाए तो EMI तुरंत बोझ बन जाती है।
बीमा के फायदे – ग्राहक और बैंक दोनों के लिए सुरक्षा कवच
ग्राहक और परिवार के लिए
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मृत्यु पर राहत: बीमा कंपनी पूरा लोन चुकाती है, परिवार कर्ज से मुक्त हो जाता है।
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विकलांगता/बीमारी पर सहारा: कई पॉलिसियां गंभीर बीमारी या विकलांगता में EMI भरने की सुविधा देती हैं।
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नौकरी छूटने पर सहारा: कुछ बीमा योजनाएं नौकरी जाने पर भी कुछ महीनों तक EMI भरती हैं।
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मानसिक शांति: ग्राहक जानता है कि परिवार को कभी घर से बेदखल नहीं किया जाएगा।
बैंक और वित्तीय संस्थाओं के लिए
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NPA में कमी: डिफॉल्ट कम होंगे।
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तेजी से रिकवरी: बैंक को पैसा सीधे बीमा कंपनी से मिल जाएगा।
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विश्वास बढ़ेगा: ग्राहक को लगेगा कि बैंक उसकी सुरक्षा का भी ध्यान रखता है।
भारत में वर्तमान स्थिति
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बैंक केवल सलाह देते हैं, बाध्यता नहीं है।
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ग्राहक प्रीमियम बचाने के लिए बीमा नहीं लेते।
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दुर्घटनाओं के बाद बैंक और परिवार दोनों परेशानी में फंस जाते हैं।
क्यों जरूरी है इसे अनिवार्य करना?
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भारत में सामाजिक सुरक्षा का ढांचा कमजोर है। यहां दुर्घटना या मृत्यु में परिवार को ही सब झेलना पड़ता है।
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लोन का आकार बढ़ रहा है। 30-70 लाख का होम लोन और 5-15 लाख का पर्सनल लोन आम हो गए हैं।
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जागरूकता की कमी। लोग बीमा को “फालतू खर्च” समझते हैं।
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त्योहारी सीजन में लोन की बाढ़। ऐसे में सुरक्षा और जरूरी हो जाती है।
बीमा प्रीमियम – बोझ नहीं, सुरक्षा का निवेश
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40 लाख के होम लोन पर टर्म इंश्योरेंस का प्रीमियम 5-7 हजार सालाना हो सकता है।
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यानी रोज़ाना 15-20 रुपये।
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इतनी छोटी राशि से करोड़ों के कर्ज से परिवार को बचाया जा सकता है।
कैसे लागू हो सकता है यह नियम?
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लोन मंजूरी के साथ बीमा बंडल करना।
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एकमुश्त प्रीमियम को लोन राशि में जोड़ना।
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फ्लेक्सिबल प्रोडक्ट बनाना – मृत्यु, बीमारी, विकलांगता, नौकरी छूटने सब कवर हो।
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ग्राहक को बीमा कंपनी चुनने की आज़ादी देना।
विदेशी उदाहरण
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अमेरिका में “Mortgage Protection Insurance” लोकप्रिय है।
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जापान और यूरोप में बिना बीमा के लंबे समय का लोन मिलना कठिन है।
भारत में भी इसे लागू करने से बैंकिंग सेक्टर मजबूत होगा और ग्राहक सुरक्षित रहेंगे।
निष्कर्ष – RBI को क्यों कदम उठाना चाहिए
उपरोक्त चार उदाहरणों जैसे लाखों परिवार भारत में हर साल अनजाने में कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं।
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एक ओर प्रियजन की मौत का दुख,
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दूसरी ओर बैंक का कर्ज चुकाने का दबाव। नौकरी छूटने और विकलांगता में भी मुसीबत।
अगर लोन बीमा अनिवार्य हो जाए तो:
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बैंक सुरक्षित रहेंगे,
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परिवार सुरक्षित रहेगा,
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और वित्तीय तंत्र मजबूत होगा।
इसलिए अब समय आ गया है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और सरकार मिलकर यह कदम उठाएं – भारत में हर होम लोन और पर्सनल लोन के साथ बीमा अनिवार्य होना चाहिए।
