(ढूंढ़ परंपरा का फाइल फोटो।)
ढूंढ़ ढूंढ़ कर मारू ढूंढ़ा, टाबरियों ने छोड़ दे ढूंढ़ा…की पंक्तियां बोलकर आज भी नवजात बच्चों की ढूंढ़ उतारी जाती है, इससे बच्चों की सारी बुरी बलाएं टलती है
महाभारत काल में जब पांडव 14 साल के वनवास काल में अज्ञातवास भोग रहे थे, तब भीम ने ढूंढ़ा नाम की राक्षसी को मारकर बच्चों को उसके आतंक से मुक्त करवाया था, इसी वजह से शुरू हुई ढूंढ़ परंपरा
जोधपुर से डीके पुरोहित की होली पर विशेष स्टोरी
होली के पर्व पर धुलंडी के दिन मारवाड़ में ढूंढ़ परंपरा मनाई जाती है। इस परंपरा के अनुसार हाथ में डंडे लेकर नवजात के इर्द-गिर्द डंडे टकराते हुए लोग घूमते हैं और कहते हैं- ढूंढ़ ढूंढ कर मारूं ढूंढ़ा, टाबरियों ने छोड़ दे ढूंढ़ा…। कभी आपने गौर किया है कि यह परंपरा क्यों मनाई जाती है? जैसलमेर में वैद्य स्व. किशनलाल व्यास की लाइब्रेरी में 300 साल पुरानी मिली एक हस्तलिखित पांडुलिपि से इस परंपरा का खुलासा हुआ है। इसके अध्यन से पता चलता है कि मारवाड़ में ढूंढ़ परंपरा क्यों मनाई जाती है।
भारत में पुरानी परंपराओं, कथाओं और धार्मिक विश्वासों का गहरा इतिहास रहा है, जिनमें से कई परंपराएँ आज भी जीवित हैं। इन परंपराओं का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है, और इनमें से कुछ की उत्पत्ति तो इतनी प्राचीन मानी जाती है कि उनके स्रोत तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। इन परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान राक्षसों से लड़ने और उन्हें नष्ट करने के संदर्भ में है, विशेष रूप से हिंदू धर्म में। हाल ही में, एक 300 साल पुरानी हस्तलिखित पाण्डुलिपि में एक दिलचस्प खुलासा हुआ है, जिसमें “ढूंढा राक्षसी” को मारने की परंपरा का उल्लेख है, जो भारतीय इतिहास और सांस्कृतिक परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकती है। इस आलेख में हम इस पाण्डुलिपि के आधार पर ढूंढा राक्षसी को मारने की परंपरा और इसके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक महत्व पर चर्चा करेंगे।
1. ढूंढा राक्षसी का संदर्भ और मान्यता
“ढूंढा” शब्द भारतीय लोककथाओं और मिथकों में अक्सर पाया जाता है। यह एक ऐसी राक्षसी का प्रतीक हो सकता है जो अराजकता और बुराई का रूप है। हिंदू धर्म और पौराणिक कथाओं में राक्षसों का वर्णन प्रायः बुराई, उत्पीड़न और समाज में विघटन के प्रतीक के रूप में किया जाता है। राक्षसों को मारने की परंपरा की शुरुआत भी इस समाज में शांति और अच्छाई की रक्षा के लिए हुई थी। ढूंढा राक्षसी का नाम एक विशेष राक्षसी के रूप में लिया जाता है, जो प्राचीन समय में न केवल भयानक थी बल्कि अपनी काली शक्तियों से समाज में अराजकता फैलाती थी। यह राक्षसी अपने कार्यों और उत्पातों के कारण समाज के लिए खतरा बन चुकी थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ढूंढा राक्षसी को मारने के लिए एक विशेष प्रकार की परंपरा विकसित हुई थी, जिसे बहुत कम लोग जानते थे और आज भी बहुत कम लोग उस परंपरा के बारे में जानते हैं। जब महाभारत काल में पांडवों को वनवास हुआ था और वे अंतिम वर्ष अज्ञातवास में बिता रहे थे। उस दौरान एक गांव से जुड़ी यह कहानी है। उस गांव में एक राक्षसी का आतंक था। यह राक्षसी छोटे-छोटे बच्चों को उठाकर ले जाती और मारकर खा जाती थी। गांव के लोग उस राक्षसी से दुखी थे। इस राक्षसी का नाम ढूंढ़ा था। ढूंढ़ा के आतंक दिनों दिन बढ़ते ही जा रहे थे। आखिर जब भीम को इस राक्षसी के आतंक का पता चला तो उसने राक्षसी को मारने का निर्णय लिया। भीम जंगल से लकड़ी काटकर ला रहे थे और रास्ते में ढूंढ़ा राक्षसी से उनका सामना हो गया। तब भीम ने लकड़ी के वार से राक्षसी का वध कर दिया। उस दिन बताया जाता है कि होली का त्योहार था। तब से होली पर बच्चों की बलाएं टालने के लिए ढूंढ़ परंपरा शुरू हुई। इस दिन भीम की पूजा करने का भी विधान है।
2. 300 साल पुरानी पाण्डुलिपि का महत्व
हाल ही में, एक 300 साल पुरानी हस्तलिखित पाण्डुलिपि की खोज हुई है, जिसमें ढूंढा राक्षसी को मारने से संबंधित परंपरा और विधियों का विस्तृत उल्लेख है। यह पाण्डुलिपि प्राकृत भाषा में लिखी गई थी और इसमें ढूंढा राक्षसी की उत्पत्ति, उसके कृत्य, और उसे समाप्त करने के लिए अपनाए गए विशेष उपायों के बारे में वर्णन किया गया है।
3. पाण्डुलिपि का इतिहास
यह पाण्डुलिपि कुछ हज़ार वर्षों से परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही थी और इस परंपरा का कोई स्पष्ट लेखा-जोखा नहीं था। पाण्डुलिपि में दी गई जानकारी के अनुसार, ढूंढा राक्षसी को हराने के लिए एक विशेष अनुष्ठान और रणनीति की आवश्यकता थी। इस पाण्डुलिपि को पढ़ने से यह भी पता चलता है कि इस परंपरा को समाज के अन्य हिस्सों से छुपा कर रखा गया था, ताकि यह ज्ञान गलत हाथों में न पड़ सकें।
4. पाण्डुलिपि का खुलासा
पाण्डुलिपि में ढूंढा राक्षसी के विरुद्ध युद्ध करने के लिए एक विशेष रूप से तैयार किया गया मंत्र, यंत्र, और शारीरिक कसरत का उल्लेख किया गया था। इसके साथ ही राक्षसी के प्रति विशेष मानसिक तैयारियों और मानसिक बल की आवश्यकता थी, जिसे जो भीम ही जानते थे। यह पाण्डुलिपि आज भी एक अमूल्य धरोहर मानी जाती है क्योंकि इससे राक्षसी परंपरा को समझने में मदद मिलती है, जो हमारे सांस्कृतिक इतिहास का हिस्सा है।
5. ढूंढा राक्षसी को मारने के उपाय और परंपरा
पाण्डुलिपि में उल्लिखित विशेष उपायों और परंपराओं का उद्देश्य केवल राक्षसी को मारना नहीं था, बल्कि समाज को शांति और धर्म की ओर अग्रसर करने के लिए उसका नाश करना था। यह एक आध्यात्मिक और शारीरिक संघर्ष था, जो राक्षसी की नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करने के लिए था। निम्नलिखित उपायों का उल्लेख किया गया था।
6. मंत्रों का उच्चारण
पाण्डुलिपि के अनुसार, ढूंढा राक्षसी को हराने के लिए एक विशेष प्रकार के मंत्रों का उच्चारण आवश्यक था। ये मंत्र राक्षसी के नकारात्मक प्रभावों को खत्म करने के लिए तैयार किए गए थे। यह मंत्र मानसिक स्थिति और मानसिक शक्ति को मजबूत करने के लिए थे, ताकि व्यक्ति राक्षसी की जादुई शक्तियों से जूझ सकें। यह मंत्र भीम ही जानते थे।
7. यंत्र का उपयोग
राक्षसी को हराने के लिए एक विशेष यंत्र का भी उल्लेख किया गया है, जिसे इस परंपरा के विशेषज्ञ तैयार करते थे। यह यंत्र राक्षसी के रक्षात्मक कवच को तोड़ने में सहायक होता था और इसे शारीरिक शक्तियों के संयोजन से इस्तेमाल किया जाता था। यंत्र का प्रयोग विशेष रूप से तब किया जाता था जब राक्षसी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी हो। भीम ने पहली बार इस यंत्र का उपयोग किया था।
8. शारीरिक एवं मानसिक प्रशिक्षण
ढूंढा राक्षसी से युद्ध करने के लिए व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करना बहुत आवश्यक था। इस तैयारी में विशेष प्रकार की शारीरिक कसरतें और मानसिक ध्यान विधियाँ शामिल थीं। ध्यान और साधना के माध्यम से व्यक्ति अपनी मानसिक स्थिति को नियंत्रित कर सकता था, जिससे वह राक्षसी की जादुई शक्तियों का मुकाबला कर सके। इस प्रशिक्षण के अंतर्गत कुछ विशेष क्रियाएँ होती थीं जिन्हें आचार्य और गुरु द्वारा सिखाया जाता था। और इसमें भीम सिद्धहस्त थे।
9. ढूंढा राक्षसी और समाज पर उसका प्रभाव
ढूंढा राक्षसी का अस्तित्व और उसके द्वारा फैलाए गए आतंक ने समाज के मानसिक और भौतिक शांति को प्रभावित किया था। लेकिन जब यह परंपरा और उपाय सामने आए, तो समाज ने अपनी आत्म-रक्षा और मानसिक शांति के लिए इन विधियों को अपनाया। यह परंपरा न केवल राक्षसी की नाश के रूप में थी, बल्कि यह समाज को आंतरिक शांति, सकारात्मकता और सही मार्ग पर चलने के लिए भी प्रेरित करती थी।
10. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
ढूंढा राक्षसी को मारने की परंपरा ने समाज में सकारात्मक बदलाव लाए। इसके माध्यम से लोगों ने राक्षसी के जादुई प्रभावों और उसके दुष्कर्मों से खुद को बचाने के लिए एकजुट होकर कार्य किया। इसके साथ ही इस परंपरा ने समाज में व्याप्त नकारात्मकता और भय को समाप्त करने में भी मदद की।
11. आध्यात्मिक प्रभाव
इस परंपरा ने समाज के आध्यात्मिक पक्ष को भी मजबूत किया। यह सिखाता था कि राक्षसों और बुरी शक्तियों का सामना करने के लिए केवल शारीरिक शक्ति ही नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक बल भी आवश्यक होता है। 300 साल पुरानी हस्तलिखित पाण्डुलिपि में खुलासा किया गया कि “ढूंढा राक्षसी” को मारने के लिए जो प्रयास भीम ने किया वह केवल शारीरिक संघर्ष तक सीमित नहीं था। इसमें मानसिक, आध्यात्मिक और रासायनिक उपायों का भी महत्वपूर्ण योगदान था। यह परंपरा हमारे प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास का अहम हिस्सा बन चुकी है, जो न केवल राक्षसी से लड़ने के उपाय बताती है, बल्कि मानसिक, शारीरिक, और आत्मिक संघर्ष के महत्व को भी उजागर करती है। इस पाण्डुलिपि के खुलासे से यह पता चलता है कि हमारे पूर्वजों ने कैसे बुराई से निपटने के लिए वैज्ञानिक और धार्मिक उपायों का सहारा लिया था और यह भी प्रमाणित होता है कि ऐसी परंपराएँ न केवल हमारे ऐतिहासिक अतीत का हिस्सा हैं, बल्कि आज भी हमारे जीवन में शांति, सुरक्षा और संतुलन बनाए रखने के लिए उनकी गहरी आवश्यकता है।
