Explore

Search

Saturday, March 15, 2025, 5:30 am

Saturday, March 15, 2025, 5:30 am

LATEST NEWS
Lifestyle

जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर में परंपरागत उल्लास के साथ गणगौर का पर्व शुरू, होलिका दहन की राख से 16 पींडोलिया बनाकर किया पूजन

Share This Post

गणगौरी तीज तक रहेगा उल्लास, कन्याएं और महिलाएं रोज करेंगी गवर माता का पूजन, धुलंडी पर पहले दिन ही महिलाओं में दिखा उत्साह

राखी पुरोहित. जोधपुर

जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर के साथ ही राजस्थान में गणगौर का पर्व धुलंडी पर परंपरागत रूप से शुरू हुआ। महिलाओं का लोकरंगी पर्व गणगौर होलिका दहन की राख की पींडोलियां बनाकर पूजन करने के साथ ही शुरू हुआ। जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर में अलग-अलग परंपराओं के अनुसार गणगौर पूजन शुरू हुआ। गौरतलब है कि होलिका दहन के अगले दिन यानी धुलंडी के दिन से ही गणगौर की धमक शुरू हो जाती है। इन दिनों परीक्षाएं चल रही है, इसके बावजूद बालिकाओं में गणगौर के पर्व को लेकर उल्लास देखने को मिला। वहीं महिलाओं ने व्यवस्तता के बावजूद लोक उल्लास के साथ गणगौर पर्व की उमंग में शामिल हुईं।

गणगौर का पर्व राजस्थान में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है और इसे विशेष रूप से व्रत, पूजा और सामाजिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। गणगौर पर्व की विशेषता उसकी धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्ता में है। यह पर्व हिन्दू धर्म के अनुसार व्रत रखने और पूजा करने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है, जो आमतौर पर चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होकर गणगौर का व्रत 16 दिन तक चलता है।

गणगौर पर्व का धार्मिक महत्व विशेष रूप से माता गौरी और भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। इस पर्व को मनाने के पीछे मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता गौरी का मिलन हुआ था। इस दिन महिलाओं द्वारा गौरी माता की पूजा की जाती है और वे अपने परिवार की सुख-समृद्धि, पति की लंबी उम्र और संतान सुख की कामना करती हैं। वहीं, युवा कन्याएं अपने अच्छे वर के लिए भी पूजा करती हैं। यह पर्व खासतौर पर राजस्थान और मध्य प्रदेश में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, जहां पर इसे विशेष पारंपरिक रूप से मनाया जाता है।

गणगौर पर्व का इतिहास

गणगौर पर्व का इतिहास बहुत पुराना है और इसे विशेष रूप से राजस्थान और मध्य प्रदेश की संस्कृतियों में मान्यता प्राप्त है। यह पर्व मुख्य रूप से माता गौरी की पूजा का पर्व है, जो भगवान शिव की पत्नी मानी जाती हैं। इस पर्व के दौरान महिलाएं व्रत करती हैं और खासतौर पर सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इसके अलावा, लड़कियां भी अच्छे वर की कामना के लिए व्रत करती हैं। यह पर्व एक सामूहिक पर्व होता है, जिसमें महिलाएं एक साथ मिलकर पूजा करती हैं, गाने गाती हैं और पारंपरिक नृत्य करती हैं।

गणगौर पूजा का महत्व

गणगौर पूजा का मुख्य उद्देश्य माता गौरी और भगवान शिव की पूजा करना होता है। इस दिन महिलाएं विशेष रूप से एकत्र होती हैं और सामूहिक रूप से पूजा करती हैं। पूजा के दौरान, विशेष रूप से महिलाओं द्वारा सजाए गए गौरी के रूप में मूर्तियां रखी जाती हैं। इसके बाद महिलाएं इन मूर्तियों को नृत्य करते हुए मंदिर तक ले जाती हैं और वहां पूजा करती हैं। पूजा के दौरान मंत्रोच्चारण और अर्चना की जाती है। गणगौर पूजा का विशेष महत्व महिलाओं के लिए है, क्योंकि यह उनके जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य लाने के लिए किया जाता है। खासतौर पर नवविवाहित महिलाएं इस दिन को बहुत श्रद्धा से मनाती हैं, क्योंकि यह उनके वैवाहिक जीवन की सफलता की कामना करने का पर्व होता है।

गणगौर के रीति-रिवाज

गणगौर पर्व के दौरान विभिन्न रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है। इस दौरान महिलाएं विशेष रूप से व्रत करती हैं और अपनी दिनचर्या को संयमित रखती हैं। इस दिन महिलाएं उपवासी रहती हैं और केवल एक समय भोजन करती हैं। कुछ महिलाएं तो पूरे दिन पानी भी नहीं पीतीं। पारंपरिक रूप से गणगौर पर्व के दौरान महिलाएं घरों को सजाती हैं और गणगौर की मूर्तियों की पूजा करती हैं। इसके अलावा, महिलाएं एक दूसरे से मिलने और गाने गाने के लिए समूह बनाती हैं। महिलाएं पारंपरिक गीतों के साथ नृत्य करती हैं, जो इस पर्व की खास पहचान बन जाते हैं।

गणगौर के विशेष पकवान

गणगौर पर्व के दौरान खासतौर पर कुछ पकवान बनाए जाते हैं, जो इस पर्व का अहम हिस्सा होते हैं। जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। गणगौर के दौरान केर-सांगरी की सब्जी, गट्‌टों की सब्जी, गुलाब जामून की सब्जी, खीर-पूरी, दही-बूंदी रायता, तरह-तरह की मीठाई और दर्जनों तरह की रेसिपी बनाई जाती है और गणगौर पूजन के साथ ही महिलाएं व्रत खोलती हैं। गणगौर का मुख्य त्योहार गणगौरी तीज के दौरान मनाया जाता है। महिलाएं इस दिन विशेष रूप से इन पकवानों का आनंद लेती हैं और अपने परिवार के साथ इनका सेवन करती हैं।

गणगौर और समाज में महिलाओं की भूमिका

गणगौर पर्व महिलाओं के जीवन का अहम हिस्सा है और यह समाज में महिलाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण रूप से प्रदर्शित करता है। इस दिन महिलाएं अपनी भावनाओं और इच्छाओं को व्यक्त करती हैं। उनके लिए यह दिन न केवल धार्मिक आस्था का पर्व होता है, बल्कि यह सामाजिक समारोह भी होता है, जिसमें वे अपनी सहेलियों के साथ मिलकर सामाजिक सामंजस्य का अनुभव करती हैं। गणगौर पर्व में महिलाएं अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को सहेजते हुए एक-दूसरे के साथ मिलकर न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक रूप से भी एकता का संदेश देती हैं।

गणगौर के सांस्कृतिक पहलू

गणगौर पर्व केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन की पूजा, गीत-संगीत, नृत्य और पारंपरिक व्यंजन इस पर्व को एक सांस्कृतिक धरोहर बनाते हैं। इस दिन महिलाएं पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा में सजी-धजी होती हैं और उन्हें देखना अपने आप में एक अद्वितीय अनुभव होता है। विशेष रूप से राजस्थान में इस दिन महिलाओं का सामूहिक नृत्य और गीत गाना इस पर्व की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। गणगौर पर्व का सामाजिक महत्व भी बहुत अधिक है। यह दिन समाज में महिलाओं की भूमिका को प्रगति करने के लिए एक प्रेरणा का कार्य करता है। महिलाएं इस दिन एक साथ आती हैं, अपनी पारंपरिक धरोहर को सहेजती हैं और एक-दूसरे से मिलकर पारंपरिक गीतों और नृत्यों के माध्यम से समाज में एकता और सामूहिकता का संदेश देती हैं।

गणगौर का पर्यावरणीय प्रभाव

गणगौर पर्व के दौरान वातावरण में विशेष प्रकार की ऊर्जा का संचार होता है। महिलाएं घरों को सजाने के लिए फूलों का उपयोग करती हैं, जो न केवल पर्व की सजावट में उपयोगी होते हैं, बल्कि पर्यावरण को भी हरा-भरा बनाए रखते हैं। गणगौर पूजा के दौरान पूजा में फूलों का प्रयोग और प्राकृतिक सामग्री का इस्तेमाल होता है, जो पर्यावरण के अनुकूल होता है। वहीं, कई जगहों पर गणगौर के दौरान नदी या तालाब में मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। हालांकि, यह पर्यावरणीय दृष्टिकोण से कुछ चुनौतियां उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि विसर्जन से जल निकायों में प्रदूषण हो सकता है। इस वजह से अब कई जगहों पर गणगौर की मूर्तियों को पारंपरिक सामग्री से बनाया जाता है, जो पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। गणगौर पर्व भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अद्वितीय उदाहरण है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों का भी प्रतीक है। इस दिन महिलाएं अपनी आस्था, प्यार और समर्पण का प्रदर्शन करती हैं और भगवान शिव और माता गौरी से अपने परिवार की सुख-शांति की कामना करती हैं। गणगौर का पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस पर्व के माध्यम से हम अपनी परंपराओं को सहेजते हुए एक नई दिशा की ओर बढ़ सकते हैं, जहां हम पर्यावरण और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी समझ सकें।

शीतला सप्तमी से घुड़ला घूमना शुरू होगा

रेणुका माहेश्वरी और उमा शर्मा ने बताया कि शीतला सप्तमी से घुड़ला घूमना शुरू होगा। जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर में कन्याएं और महिलाएं घुड़ले के गीत गाते हुए घुड़ला लेकर गली-गली गीत गाती हैं। महिलाएं गणगौर के परंपरागत लोकगीतों के साथ गली-गली और घर-घर जाकर दस्तक देती है। घुड़ले में छिद्र किए हुए होते हैं और भीतर दीपक प्रज्वलित होता है। इसके साथ ही लोक अपनी आस्था के अनुसार गणगौरी तीजणियों को दक्षिण देते हैं जिससे ये तीजणियां गोठ करतीं हैं। लोक रंग के उल्लास में भीगा यह पर्व महिलाओं का प्रतिनिधि त्योहार हैं।

आज भी अकेली है जैसलमेर की गणगौर

जैसलमेर में गणगौर के पर्व पर केवल गणगौर की सवारी निकाली जाती है। क्योंकि जैसलमेर की गणगौर आज भी अकेली है। वर्षों पहले जैसलमेर पर हमला बोलकर जैसलमेर के ईसर को उठाकर ले जाया गया था। तब से जैसलमेर की गणगौर अकेली ही रह गई। जैसलमेर में इतिहासकार स्व. नंदकिशोर शर्मा ने गणगौर पर्व मनाने की परंपरा गड़सीसर तालाब पर शुरू की थी। कई वर्षों तक उनके मरु लोक सांस्कृतिक संग्रहालय में गणगौर पर्व पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं। स्व. शर्मा ने जैसलमेर की गणगौर पर कई शोध साहित्य भी सृजित किया है।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


Share This Post

Leave a Comment