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Sunday, November 10, 2024, 7:41 am

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आ न पाए दिलों में फासला : डीके पुरोहित

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(हिंदू-मुस्लिम एकता और परस्पर प्रेम को बढ़ावा देने वाला एक गीत : गौरतलब है कि कुलदीप व्यास जब जोधपुर में दैनिक भास्कर के संपादक हुआ करते थे तब इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक बेंच की ओर से राम मंदिर-बाबरी मस्जिद को लेकर फैसला आने वाला था। तब पूरे देश में इमरजेंसी जैसे हालात हो गए थे। तब भास्कर ने विशेष कवरेज दिया था। उस दौर में लिखी यह महत्वपूर्ण रचना जो कहीं छपी नहीं, मगर मेरे गीतों के संग्रह ‘मैं रहूं न रहूं’ में संकलित है। नेताओं को वैमनस्य फैलाने वाले स्टेटमेंट देने से पहले ऐसी रचना के संदेश पर मनन करना चाहिए।)

आ न पाए दिलों में फासला

मस्जिदों में नित्य गूंजे अजाने

मंदिरों में सदा दीया रहे जला

करे अदालत जो भी फैसला

आ न पाए दिलों में फासला

सृृष्टि जब साकार हुई थी

बता क्या थी अपनी पहचान

मंदिर था न मस्जिद थी

न खुदा था ना ही भगवान

जाने कितनी ठोकरें खाकर

इस सांचे में मानव ढला

करे अदालत जो भी फैसला

आ न पाए दिलों में फासला

वो जो मजहब पर मरते हैं

उनको खुदा से नहीं वास्ता

प्रार्थना हो या करें दुआ

सब दीन धर्म का रास्ता

सबको सनमति दे भगवान

खुदा कर सबका भला

करे अदालत जो भी फैसला

आ न पाए दिलों में फासला

जिंदा रही संवेदना तो

ईश्वर दिल में बसा लेंगे

रहीम के रोशन होगी दिवाली

राम-श्याम ईद मना लेंगे

सुख-दुख हमारे एक है

भगवान दूर कर हर बला

करे अदालत जो भी फैसला

आ न पाए दिलों में फासला।

 

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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