आजादी के आंदोलन में जो शहर हिन्दुस्तान के इतिहास में अमर हो गया। जो अपनी महान परंपराओं की वजह से जीवित है। जहां सभ्यता का समंदर हिलौर लेता है। जिस शहर को मैंने 21 साल का समय दिया। जिस शहर के साथ मैंने होली दिवाली मनाई। जहां मैं अपने शब्दों को परिपक्व होते देखता रहा। जहां मुझे काफी कुछ सीखने को मिला। जहां मुझे हर धर्म, हर मजहब के लोगों का प्यार मिला। जहां मुसलमान मुझे चाहते हैं। हिन्दुओं ने मुझे सिर आंखों पर बिठाया। जहां सिख, ईसाई और अन्य धर्म के लोग भी जो मुझे जानते हैं और जिन्हें मैं जानता हूं मेरा सम्मान करते हैं, मुझे प्यार देते हैं। ऐसे शहर के बारे में मरे हुए लोगों का शहर लिखने के बाद मैं अपने को माफ नहीं कर पा रहा हूं।…मैं पश्चाताप के आंसुओं के साथ अपने शब्द वापस लेता हूं। जो पीड़ा आपको मेरा आलेख पढ़कर नहीं हुई होगी, उससे ज्यादा पीड़ा का अनुभव मैं खुद कर रहा हूं और विनम्रतापूर्वक आप सभी पाठकों से माफी मांगता हूं…।
डीके पुरोहित. जोधपुर
मैं अकेला इस पूरी दुनिया से लड़ सकता है। मैं कभी किसी से डरता नहीं। एक बार लिखने के बाद मैं कभी खंडन नहीं छापता चाहे मुझे फांसी पर चढ़ा दिया जाए। लेकिन मैं जोधपुर को मरे हुए लोगों का शहर लिखने के बाद चैन की नींद सो नहीं पा रहा हूं। पहले मैंने सोचा था कि जो लिखा है उसके साथ जिऊंगा। लेकिन कुछ हादसों की वजह से पूरा शहर दोषी नहीं हो सकता। आजादी के आंदोलन में जो शहर हिन्दुस्तान के इतिहास में अमर हो गया। जो अपनी महान परंपराओं की वजह से जीवित है। जहां सभ्यता का समंदर हिलौर लेता है। जिस शहर को मैंने 21 साल का समय दिया। जिस शहर के साथ मैंने होली दिवाली मनाई। जहां मैं अपने शब्दों को परिपक्व होते देखता रहा। जहां मुझे काफी कुछ सीखने को मिला। जहां मुझे हर धर्म, हर मजहब के लोगों का प्यार मिला। जहां मुसलमान मुझे चाहते हैं। हिन्दुओं ने मुझे सिर आंखों पर बिठाया। जहां सिख, ईसाई और अन्य धर्म के लोग भी जो मुझे जानते हैं और जिन्हें मैं जानता हूं मेरा सम्मान करते हैं, मुझे प्यार देते हैं। ऐसे शहर के बारे में मरे हुए लोगों का शहर लिखने के बाद मैं अपने को माफ नहीं कर पा रहा हूं। हालांकि मुझे राजनेताओं और संबंधित पक्षकारों से कोई हमदर्दी नहीं है। मेरा झुकाव और मेरी जवाबदेही सिर्फ और सिर्फ उस बेकसुर शहर के बारे में है जिसके बारे में मैंने कठोर शब्दों का प्रयोग किया। पश्चाताप के आंसू और अपनी गलती का अहसास शायद होना मुझे लगता है हर घाव को भर सकता है या नहीं लेकिन पीड़ा तो कम कर ही सकता है। मुझे राजनेताओं और संबंधित पक्षकारों से कोई हमदर्दी नहीं है। कल चाहे कोई सत्ता में आए और चाहे राजनीति का कोई भी सिरमौर बने। लेकिन मैं उस शहर के साथ अपराधबोध के साथ नहीं रह सकता जिसने मुझे 21 साल तक सुरक्षा दी। जिसने मुझे अपने आगोश में स्थान दिया। जिसने मुझे और मेरे परिवार को इतना स्नेह दिया। मेरे बेटे का जन्म इसी शहर में हुआ। जब वो होने वाला था तो मेरे पडाेसियों ने दुआएं की थी। जिन घरों में मैं किराए से रहा वहां के मालिकों ने मदद की। मैं इतना निष्ठुर इस शहर को लेकर नहीं हो सकता। मैंने इस शहर के कवियों के बीच अपनी रचनाएं सुनाई। मैंने इसी शहर के पाठकों और श्रोताओं के बीच अपनी कहानियां लिखीं। मैंरे शब्द और यहां के शब्द शिल्पियों ने अन्याय का हमेशा विरोध किया। लेकिन कभी कभी हम ऐसी दुर्घटना कर बैठते हैं जो हमारा उद्देश्य नहीं होता, लेकिन हमसे हो जाती है। हालांकि आदमी जैसा व्यवहार करता है वैसा ही उसे मिलता है। मेरा और मेरी पत्नी का व्यवहार हमेशा सबके साथ शालीनता और स्नेह भरा रहा। और बदले में मुझे भी खूब सारा प्यार मिला। जिस अखबार में मैं काम करता रहा हूं। वहां मुझे मेरे साथी मुझे प्यार करते हैं। मैं भी मेरे साथियों को जान से बढ़कर प्यार करता हूं। मैंने अपने आलेख से एक ऐसा एक्सीडेंट कर दिया है जो मेरा उद्देश्य नहीं था। लेकिन मुझसे यह दुर्घटना हुई है। मैंने शब्दों की ताकत का बेजा उपयोग किया है। शब्दों की ताकत असीम होती है। शब्द केवल शब्द नहीं होते। जिस तरह शब्द खुदा, जीसस, भगवान और वाहे गुरु की आराधना होते हैं और शब्द वही सार्थक होते हैं जो सेतु का काम करे। परमाणु बमो की ढेरी पर बैठी मानवता को केवल शब्द ही बचा सकते हैं। लेकिन शब्द ही संहार का वाहक बने तो हमे सोचना पड़ेगा। मैं आज अपने लिखे पर पीड़ा की आंच में जल रहा हूं। शायद मैं उम्र कैद की सजा सह लूंगा। मैं फांसी पर भी हंसते हंसते झूल लूंगा, लेकिन अपनी ही नजरों में गिर कर न जी पाऊंगा और न ही रह पाऊंगा। पिछले चार दिनों से मेरा सुख-चैन छिन गया है। मेरे भीतर द्वंद्व चल रहा था। मेरा अहं मुझे झुकने की इजाजत नहीं देता था। लेकिन मेरे भीतर का इंसान मुझे झकझोर रहा था। मैंने जैसलमेर के बारे में लिखा था- ऊंघता शहर जैसलमेर। लेकिन उसमें इतना जहर नहीं था। मैंने अपने शब्दों से ऐसी दुर्घटना कर दी जो मुझे इस शहर का अपराधी बना चुका है। मैं अपने शब्द वापस लेता हूं और इस शहर को जो असीम पीड़ा हुई है उसके लिए बिना शर्त माफी चाहता हूं। जहां तक मेरे आलेख का सवाल है उसमें तथ्यात्मक माफी नहीं मांग रहा, केवल भावनात्मक दुर्घटना जो मेरे से हुई उसके लिए माफी मांगता हूं। क्योंकि यही भाव पक्ष मुझे माफी मांगने पर मजबूर कर रहा है। एक शहर जो बेकसुर है, उसको अपराधी बना देना खुद मुझे अच्छा नहीं लग रहा। आदमी जब लिखता है तो पीड़ा ही उसे लिखने को मजबूर करती है। कुछ बातें जो मुझे कचौटती रही और जिसने मुझसे वह आलेख लिखाया उसकी बातें आपको किस हद तक अच्छी लगी और किस हद तक खराब लगी वो मैं आप बुद्धिमान और जागरूक लोगों के ऊपर छोड़ रहा हूं। जोधपुर को मरे हुए लोगों का शहर लिखकर मैं अपने को अपराधबोध से ग्रस्त पा रहा हूं। इसलिए इस शहर के जिन लोगों ने मेरा आलेख पढ़ा और जिन्हें असीम पीड़ा हुई उसके लिए मैं विनम्रतापूवर्क क्षमा याचना करता हूं। मुझे विश्वास है अपना बेटा, छोटा भाई और जो मेरे से छोटे हैं वे मुझे अपना बड़ा समझकर क्षमा करेंगे। इस आलेख को मैं चाहता तो चुपचाप हटा सकता था, लेकिन वो मेरे पश्चाताप काे उजागर नहीं कर पाता। इसलिए मैं आप सभी से बुरा स्वप्न समझकर भूलने की अपील करते हुए अपने शब्द वापस लेता हूं। साथ ही वादा करता हूं कि इस शहर और इस शहर के हर बच्चे, बड़े, महिला, पुरुष और पीडि़त व्यक्ति की आवाज बनूंगा और जहां भी जुर्म होगा वहां उसके विरोध में खड़ा रहूंगा। मुझे इस शहर के साथ जीना है। मेरे सपने भगवान पूरे करे ना करे लेकिन इस शहर के सपनों को मैं पूरे होते देखना चाहता हूं।
