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क्या भारत 1980 में आजाद हुआ था? इतिहासकार नंदकिशोर शर्मा ने दी ईस्ट इंडिया कंपनी की कालगणना को चुनौती

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शर्मा बोले- युधिष्ठिर संवत को आधार मानेंगे तभी विश्व की कालगणना सही होगी, महाभारत काल यानी 5 हजार साल पहले की कालगणना पूर्णत: वैज्ञानिक, दुनिया को कालगणना के मानक बदलने होंगे, इतिहास की नई बहस छिड़ी

-राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित, मरु लोक सांस्कृतिक संग्रहालय के फाउंडर 88 वर्षीय इतिहासकार शर्मा के 40 वर्ष के शोध और जैसलमेर के हनुमान मंदिर में मिले शिलालेख से निकले चौंकाने वाले निष्कर्ष 

डी.के. पुरोहित. जोधपुर

विश्व प्रसिद्ध सुनहरे शहर जैसलमेर में हनुमान चौराहा पर स्थित करीब 225 साल पुराने हनुमान मंदिर में मिले एक शिलालेख और राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित, मरु लोक सांस्कृतिक संग्रहालय के फाउंडर 88 वर्षीय इतिहासकार नंदकिशोर शर्मा के 40 साल के शोध के अनुसार देश 1947 को नहीं 1980 में आजाद हुआ था। शर्मा के अनुसार दुनिया की कालगणना सही नहीं है। अगर युधिष्ठिर संवत को आधार मानेंगे तभी दुनिया का कालखंड का आधार यानी कैलेंडर सही हो सकता है। हनुमान मंदिर में मिले शिलालेख पर युधिष्ठिर संवत् 4898, विक्रम संवत् 1854, शक् संवत् 1719 लिखा है। जब इन संवतों की सच्चाई की परीक्षा की तो नया शोध सामने आया। शर्मा का कहना है कि गुलाम भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के इतिहासकारों ने महाभारत काल की 5 हजार साल पुरानी कालगणना की अनदेखी कर कलियुगी संवत चलाया, जिसे आज हम ईस्वी सन के रूप में देखते हैं। जबकि दुनिया के सभी सन संवत युधिष्ठिर संवत से उदित होते हैं और उसी में समा जाते हैं। शर्मा ने बताया कि भारतीय समय व्यवस्था एक संवैधानिक समय व्यवस्था है, जो सृष्टि के उदय से चली आ रही है। जबकि आक्रांताओं ने साजिशें रचकर हमारी शास्वत समय व्यवस्था को ही बदल दी। इससे हमारे इतिहास को चोट पहुंची है।

इसलिए 1980 को हुआ भारत आजाद

भारत देश अंग्रेजों की गुलामी से 15 अगस्त 1947 को आजाद होना बताया जाता है, जबकि कालगणना की विवेचना और अभिलेखीय साक्ष्यों के अनुसार देश आजाद विक्रम संवत 2000 और युधिष्ठिर संवत् 5000 को होना सिद्ध होता है। 2000 वें वर्ष के 80 वर्ष बाद हमने अयोध्या में रामलला के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की। इस समय युधिष्ठिर संवत् 5080 चल रहा था। इसके 20 वर्ष बाद युधिष्ठिर संवत् 5100 व विक्रम संवत् 2100 हो जाएगा। उस समय हम आजादी का शताब्दी वर्ष मनाएंगे। वर्तमान में जो 2024 जो हम ईस्वी सन् मान रहे हैं वह न तो ईस्वी सन् है न विक्रम संवत् हैं बल्कि यह कलियुगी संवत् हैं, जो ईस्वी सन् से 44 वर्ष आगे चलता था। जब हम 2024 में 44 घटाते हैं तो ईस्वी सन् 1980 आता है। रोमिनिंग सिस्टम के अनुसार 1980+22= 2002 ईस्वी सन् आता है। इस प्रकार रोमिनिंग सिस्टम की कालगणना सही हो जाती है। जब ईस्ट इण्डिया कंपनी के समय ईस्वी सन् को विक्रम संवत् में बदल दिया तब ईस्वी सन् 102 के स्थान पर 100 के अंतर से चलने लगा। इस समय 2 वर्ष का अंतर हो गया। यह दो वर्ष का अंतर निरंतर चलता आ रहा है। अतः यह प्रमाणित होता है कि 1980+20=2000 विक्रम संवत् है। जब हम 2024 में 56 जोड़ते हैं तब भी 2080 आता है। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि देश की आजादी के समय विक्रम संवत् 2000 और युधिष्ठिर संवत् 5000 था। इसके ठीक 100 वर्ष बाद युधिष्ठिर संवत् 5100 व विक्रम संवत् 2100 से चलने लगेगा। भारत के सारे सन् सवंत् 100 वर्ष के बाद बदलते हैं। ये सारे संवत् नवसारिका, सप्तर्षि, श्रीशालीवाहन शाके, भाटिक संवत्, हिजरी सन्, ईस्वी सन्, दीनेईलाही सन् तथा राजवंशों के समय चलन वाले संवत् सही समय व्यवस्था की कालगणना से चलने लगेंगे तथा हमारा 5000 वर्ष का इतिहास सही व शुद्ध हो जाएगा।

थार मरुस्थल के चंद्रवंशी यादव और भाटी शासकों पर एक नजर 

भारतीय उतरी पश्चिमी सीमावृत्ति जैसलमेर के संस्थापकों के पूर्वज थार मरूस्थल में चन्द्रवंशी यादव शाखा सौरसेनी की उप-शाखा भाटी राज करते थे। उनके पूर्वजों का इतिहास 5000 वर्ष पुराना है। यह लोग पाण्डववंशी युधिष्ठिर राजा के द्वारा महाभारत के युद्ध के बाद जब राज सिंहासन पर विराजे, उस समय युधिष्ठिर संवत् प्रारंभ किया गया था। जो आजाद भारत के 226 वर्ष पहले तक साक्ष्य स्मारक अभिलेखों में अंकित हैं, यह महत्वपूर्ण साक्ष्य है। युधिष्ठिर संवत् चन्द्रवंशी यादव भाटी जिनका राज अफगास्तिान में था। भाटी गजराय ने युधिष्ठिर संवत् 3008 में नवीन नगर और गजनीगढ़ बनाया था। इसका साक्ष्य पारम्परिक साहित्य साक्ष्यों में भी मिलता है।

तिन शत अठ शक धर्म विशाखे सित तिन।
रवि रोहण गज वाहुने गजनी रची नवीन।।

3008 के 36 वर्ष बाद रोम इटली के एकतागिऊस डोमोमियमन नाम के पादरी ने 3044 को कलियुगी संवत् मानकर 3045 में 57 जोड़कर 3102, 18 फरवरी से ईस्वी सन् का प्रचलन किया। हनुमान मंदिर के उपलब्ध शिलालेख के अनुसार 3044 में विक्रम संवत् 1854 जोड़ते हैं तो यह 4898 युघिष्ठर संवत् आता है। इस प्रकार यह प्रमाणित होता है कि यह कालगणना सही है। भारत में ईस्वी सन् का प्रचलन मुगल बादशाह जहांगीर के समय जब एक अंग्रेजी व्यापारिक ईस्ट इण्डिया कंपनी ने सूरत गुजरात में व्यापार करने की अनुमति ली। उसके बाद लोग ईस्वी सन् से परिचित हुए।

शक् संवत् व हिजरी सन् की काल गणना और युधिष्ठिर संवत

हिजरी सन् 1445 और शक् संवत् 1945 देखने काे मिलता है। इन दोनों का अंतर 500 वर्ष का है। जब हिजरी सन् की कालगणना मुस्लिम इतिहासकार 622 ईस्वी से मानते हैं। मुगल और भाटी दोनों ही परसिया से आए थे, वो नवसारिका संवत् से कालगणना करते थे। यह संवत् आगे चलकर श्रीशालीवाहन शाके के नाम से प्रचलित हुआ। इसमें शक् संवत् 122 वर्ष का अंतर हो गया और तथा विक्रम संवत् में 135 वर्ष का अंतर हो गया। जब मुगल बादशाह अकबर ने दीने-ईलाही संवत् चलाया उस समय शक् संवत् को ईस्वी सन् में और ईस्वी सन् को विक्रम संवत् में बदल दिया। इस कारण विक्रम संवत् का अंतर 122 कर दिया गया और हिजरी संवत् व शक् संवत् का अंतर 13 वर्ष कर दिया गया। वर्तमान में चल रहे 1445 हिजरी सन् में 13 वर्ष जोड़ते हैं तो 1458 आता है, 1458 में जब हम मुगलों के द्वारा 622 से ईस्वी से कालगणना के आधार पर जब हम 1458 में 622 जोड़ते हैं तो यह समय 2080 हो जाता है। इसी तरह 1945 में जब हम 122 जोड़ते है तो यह समय 1967 ईस्वी आता हैं। यह 13 वर्ष का अंतर है। जब 1967 में हम 13 जोड़ते हैं तो ईस्वी सन् 1980 आता हैं। विक्रम संवत् व ईस्वी सन् का अंतर 57 वर्ष का हैं, जब 1967 में हम 57 जोडते हैं तब यह समय 2024 ईस्वी आता है और 2024 ईस्वी में जब हम 44 घटाते हैं तब 1980 ईस्वी सन् आता है। यहां ठीक 20 वर्ष का अंतर हो जाता है। इस प्रकार सारी कालगणनाएं सही हो जाती है। 100 वर्ष बाद यह 2080+20=2100 विक्रम संवत् होगा। हमारे सारे सन् संवत 100 वर्ष बाद बदलते हैं और युधिष्ठिर संवत् में समा जाते हैं।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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