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Sunday, November 9, 2025, 12:37 pm

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नीलम व्यास स्वयंसिद्धा की कविताएं

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कवयित्री: नीलम व्यास स्वयंसिद्धा

शीर्षक-ऑपरेशन सिंदूर

किया नाश सिंदूर कों मेटने जो चले थे हमारे.
पुकारे हमें भारती नाश हो पापियों का सदा रे.
चलो शीश काटे चुका दे लहूँ से उधारी जवा रे.
सुनो लाड़लो देश के आज वादा किया जो निभा रे.

उजाडी भरी माँग आतंक से तो चलो आज मारो.
चलो वीर मोदी हमारे पुकारे वफ़ा प्रेम वारो.
करो युद्ध ओ काट लो शीश बैरी चुके कर्ज यारों.
सदा दे रही भारती पापियों से धरा कों उबारों।

0000

खुद से मुलाकात

बाद मुद्दत के
एक एहसास जगा
कि जीवन की
आपा धापी में
घर परिवार की परिधि में
मैं ,,कहाँ हूँ?

खुद की तलाश
में जुटी
छवि थी मन में
विवाह पूर्व की
कॉलेज जाती
नव यौवना की
अल्हड़ सी,,खुद में मस्त
सतरंगी सपनें
नैनों में पलते जिसके
जीवन की उमंग
ऊर्जा से भरपूर वो
ख़्वाब में जीने वाली
लाडली बिटिया पापा की
हँसती खिलखिलाती हुई
अपनी ही धुन में खोई
जीवन की
परिभाषा,,भी तो
उस समय बड़ी सरल सी थी
उसके लिए!

मग़र अब
परिवेश बदल गया
दृश्य भी बदल गए
जीवन की परिभाषा भी
कब की बदल चुकी।
आज अधेड़ उम्र में
पिता विहीन हूँ
घर परिवार नौकरी
के भँवर को
पग में लपेटे खड़ी हूँ
वो मस्ती ,,वो अल्हड़ पन
कही खो चुका है
वक्त की निशानी
दिखती
शरीर,,चेहरे,,बालों ,,नैनों में।

एक पत्नी,,बहु,,माँ
कामकाजी महिला
यही पहचान बन चुकी मेरी।
बहुत कुछ पाया
अपनों का साथ,, जिम्मेदारी
कर्त्तव्य,,प्रेम,,ममत्व
मग़र
सालों पहले की वो मस्ती गुम है
अब वो पहले की तरह
मुस्काती नहीं है
बात बात पर
खिलखिलाती नहीं है
समझौता कर चुकी वो
सपनों और जिम्मेदारी के बीच
जिम्मेदारी का पलड़ा भारी निकला।

आज तरस गयी
कुछ अपना सा वो खास
वक्त बिताने के लिए
खुद के साथ!
समय ही नहीं मिला
जिंदगी का हर रिश्ता
मुझे कसौटी पे कसता गया
मैं ,,चक्करघिन्नी की तरह
बस,,हर परीक्षा को
पास करती रही
जिंदगी के अहम पड़ाव
पार करती गयी।

आज मग़र
पुरानी फोटो अल्बम में
खुद को देखा तो
ठिठक सी गयी
वो बचपन की अबोध लालसा
वो जवानी की मस्ती
कही पीछे छोड़ आई हूँ
आज सब कुछ पाया
मग़र कुछ बेहद कीमती
अपने से अनमोल पलों
को जीने को तरस गयी हूँ!

यथार्थ की कडुवाहट

लील गयी मस्ती को
समय की ठोकरों
की मार से
परिपक्व हो गया
तन मन मेरा
जिंदगी के मायने बदल गए
प्राथमिकताएँ भी
बदल गयी है।
मग़र कभी कभी याद आती है
उसी मस्त स्वरूप की
तो
तलाश में लग जाती हूँ
खुद की ही
अब तो!

थोड़ी मिली मैं बच्चों के अक्स में
थोड़ी पति की फरमाइशों में
थोड़ी घर परिवार की
जिम्मेदारी की
चक्की में,,पिसती मिली
थोड़ी सास ससुर की
वर्जनाओं में
थोड़ी देवर देवरानी ननद
के तानों में,,
टुकड़ा टुकड़ा बंट गया
अस्तित्व मेरा
मग़र इन सबमें मैं कहाँ?
अपनी पूर्णता में छुपी हुई
बहुत ढूँढा …
कही नहीं मिली
मैं की तलाश जारी है मेरी!

आजकल ध्यान योग
प्राणायाम से
श्वास की गति में
कुछ कुछ पाया खुद को
एक घण्टा दिया खुद को
ध्यान मगन हुई जब कुछ पल
खुद की तलाश की
अन्तः करण में
हर आती जाती श्वास की लय
के साथ पूछा खुद से?
कौन हूँ मैं?
भीतर की अनुगूँज
सुनती रहती
परम् शांति के कुछ पल
महसूस करती
मेरे भीतर बसे मेरे राम
कभी कभी
महसूस होते है मुझे
मग़र अभी तलाश बाकी है
अंतर्दृष्टि विकसित होना
बाकी है
आत्म साक्षात्कार बाकी है
खुद से मुलाकात अपूर्ण है अभी
बहुत दिनों की
अथक गहन ध्यान साधना
के बाद ,,,,शायद
खुद में ही खुद को
पा सकूँ मैं,,,
बस एक वाणी सुनी मैंने
कि,, एक कवयित्री हूँ मैं
जो स्थापित होने को संघर्षरत है
एक साहित्यकार हूँ
जो कुछ दिव्य,,अलौकिक
लिखने की लालसा मन में पाले है
यह परिचय है मेरा
जो मेरे अस्तित्व को
सार्थकता प्रदान करता है
सुकून देती है मुझे कविता
लेखन देता है मुझे पहचान
इसी पहचान को
जग में ,,नाम देने को
अभी संघर्षरत हूँ मैं
दोस्तों ,,,खुद की तलाश बाकी है अभी
ध्यान साधना के
सातों चक्रों की
गहन साधना के पश्चात
शायद पा जाऊँ
खुद को,,,मैं
तब तक तो
श्वास का ये गीत
जारी है मेरा
तब तक ,,जब तक कि
प्रभु विराज न जाये मेरे घट में।
कुछ अलौकिक,,अतीन्द्रिय सा
घट न जाएं,, अनुभूति
चरम की ,,परम् की
अभी बाकी है,,
खुद की तलाश
भी अभी बाकी है मेरी
दोस्तों!

0000

मुक्तक

करें हिम्मत मनुज जो भी,

वह मंजिल को पाता है।

सदा सत राह चलके ही,

खुशी के गीत गाता है।

नहीं तुम ठोकरें खाना,

सबक इतना समझ पाना।

पलें रिश्वत के धन पे जो

हवा जेल की खाता है।।

लिखो इतिहास हिम्मत से ,

विजय के गीत सब गाते।

किताबों में पढ़े उनको,

वहीं हृदय को हैं भाते।

बहाने छोड़ के तुम यूँ,

भलाई दीन की कर लो ।

बिना तप के जमाने में,

वही तो नाम कर जाते।

अगर मुश्किल लगें मंजिल ,

हृदय मजबूत कर लेना।

सृजन की धार हो तीखी,

विजय कलम की कर लेना ।

बोध यथार्थ का लिखना,

लक्ष्य लोकेषणा वरना।

भाव सच्चे सुहाते हैं,

सत्य से जीत जग लेना।।

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Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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