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Monday, November 10, 2025, 4:26 pm

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पुण्यतिथि 19 जून पर विशेष : आजादी के आंदोलन के सिपाही बालमुकुंद बिस्सा ने मारवाड़ का गौरव पूरे देश में बढ़ाया, अन्याय के आगे वे जीवन भर नहीं झुके

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बाल मुकुंद बिस्सा एक ऐसे आजादी के आंदोलन के प्रसून थे, जिन्होंने पुष्करणा समाज की सौरभ पूरे हिन्दुस्तान में फैलाई, उनकी पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर पूरा पुष्करणा समाज उन्हें नमन करता है।

डीके पुरोहित. जोधपुर

आजादी के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर देने वालों की मारवाड़ में भी कमी नहीं रही। ऐसे ही वीर बहादुर योद्धा थे बालमुकुंद बिस्सा, जिन्होंने आजादी की जंग में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मां भारती का सिर नहीं झुकने दिया। महात्मा गांधी के आंदोलनों से प्रेरित बिस्सा ने मारवाड़ में आजादी की गतिविधियों को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपनी रणनीति से देश को नई दिशा दी। शेरे राजस्थान जयनाराण व्यास के साथ मिलकर उन्होंने आजादी की जंग में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

शहीद बालमुकुंद बिस्सा का 19 जून को बलिदान दिवस है। बलिदान दिवस के उपलक्ष्य में श्रद्धांजलि स्वरूप एक छोटा सा प्रयास
पुष्करणा समाज बिस्सा को श्रद्धांजलि देकर करेंगे। वैसे तो देश में अनगिनत रत्न हुए हैं, जिन्होंने देश की सेवा बिना किसी लालच और स्वार्थ के की थी, ऐसे ही रत्न बिस्सा थे। बिस्साजी ने देश की सेवा करते हुए जेल यात्राएं व कष्ट सहन करते रहे । पुष्करणा रत्नों मे एक नाम बालमुकुंद बिस्सा का  नाम सम्मान के साथ लिया जाता है।

बिस्सा के पूर्वज डीडवाना तहसील के पीपली गांव के रहने वाले थे 

बालमुकुंद बिस्सा के पूर्वज डीडवाना तहसील के पीपली ग्राम के रहने वाले थे जो ज़िला नागौर में हैं । परंतु आपके पिताजी सुखदेव बिस्सा कलकत्ता में ही रहते थे । बालमुकुंद का जन्म 24 सितंबर 1908 में हुआ था। आपके पिता सुखदेव बिस्सा कलकत्ता में रहते थे। अत: आपकी बाल्यावस्था व शिक्षा कलकत्ता में ही हुई।

मारवाड़ चरखा संघ की स्थापना की

बालमुकुन्द बिस्सा गांधीजी के अनन्य भक्त एवं उनके बताए हुए मार्ग पर चलने वाले व्यक्तियों में सर्वोपरि थे। आप रचनात्मक कार्यकर्ता थे। सही अर्थ में कट्टर गांधीवादी। गांधीजी द्वारा चलाए गए चर्खा संघ के प्रमुख कार्यकर्ता थे। गली गली में घूमकर खादी का प्रचार करना आपका कार्य था। जोधपुर मे आपने ‘ मारवाड़ चर्खा संघ ‘ की स्थापना की। आप खादी भंडार पर कार्य करते थे ।
आप समाजसेवी भी थे। उस समय में जो कुर्तियां प्रचलित थीं, उसका व्यासजी, थानवीजी आदि के साथ विरोध करते थे। विवाह के समय ‘ खोले’,मिलणिये के विरुद्ध थे। सन् 1942 में ‘ भारत छोड़ो ‘ आन्दोलन आरम्भ हुआ । इसका प्रभाव देशी रियासतों पर भी पड़ा। जोधपुर में उस समय ‘ मारवाड़ लोक परिषद ‘ नाम से कांग्रेस कार्य करती थी । जिसका नेतृत्व व्यासजी करते थे। तत्कालीन जोधपुर राज्य सरकार ने मारवाड़ लोक परिषद के सभी प्रमुख नेताओं को जेल में डाल दिया । बालमुकुंद बिस्सा को भी सरकार ने गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया ।

…और जेल में अव्यवस्थाओं के खिलाफ बिस्सा ने अनशन किया

जेल में उस समय राजनैतिक क़ैदियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था। सभी ने राज्य सरकार से निवेदन किया कि उनके साथ उचित व्यवहार किया जाय। पर सरकार ने उस पर कोई विचार नहीं किया । अत: विवश होकर कई कार्यकर्ताओं ने अनशन करने की घोषणा कर दी, जिसमें बिस्सा प्रमुख थे। सन् 1942 में प्रचंड गर्मी में अनशन करना कोई सहज कार्य नहीं था। फिर भी बिस्सा अपने प्रण पर अडिग थे। आपने पहले अन्न का त्याग किया फिर जल का भी त्याग कर दिया। 16 जून 1942 को आपके स्वास्थ्य दशा अत्यन्त सोचनी हो गई और नित्य गिरती गई। राज्य सरकार ने आपके स्वास्थ्य को देखकर विढम अस्पताल (आज का महात्मा गांधी अस्पताल) में भर्ती करा दिया । उस समय जनता को सूचित करने के लिए शहर के प्रमुख भागों में ‘ श्याम पट्‌ट ( ब्लैक बोर्ड) लगा रखे थे। जिस पर प्रतिदिन की घटना का विवरण लिख दिया जाता था । जब सरार्फा बाज़ार में 18 जून 1942 को 12 बजे बिस्साजी के स्वास्थ्य का अत्यन्त चिन्ता जनक समाचार लोगों ने पढ़ा तो लोग अत्यन्त दुखी होकर अस्पताल की ओर दौड़ने लगे। परन्तु 19 जून को ज्यों ही दोपहर तीन बजे श्याम पट पर ‘ बिस्सा जी का स्वर्गवास ‘ का समाचार पढ़ा तो समस्त शहर मे शोक की लहर छा गई । चन्द मिनटों मे जोधपुर शहर बन्द हो गया तथा आम हड़ताल कर दी गई । ये जोधपुर मे पहला अवसर था जब एक लोकप्रिय जनसेवक की मृत्यु पर इस प्रकार की आम हड़ताल हुई । लोगों का झुण्ड का झुंड अस्पताल की ओर जाने लगा। अस्पताल के बाहर का दृश्य देख कर पुलिस के सिपाही घोड़ों पर पैदल चारों तरफ से घेराव डाल दिया । जनता में जोश था । जनता पर लाटी चार्ज किया गया पर, उसकी चिन्ता किए बिना शवयात्रा की तैयारी मे डटे रहे।

रामधुन के साथ बिस्सा का अंतिम संस्कार किया

बिस्सा की अर्थी में शव का मुंह खुला रखा, जिससे जनता अपने प्यारे देशभक्त का अंतिम दर्शन कर सकें। लोक परिषद ज़िन्दाबाद, महात्मा गांधी की जय, बिस्साजी अमर रहे नारों से शव यात्रा आरंभ हुई। जनता की प्रबल इच्छा थी कि शहीद की शव यात्रा शहर के प्रमुख बाज़ारों से होकर निकले, परंतु सरकार यह नहीं चाहती थी। इसलिए नगर प्रवेश का सोजती गेट बन्द कर दिया गया तथा सशस्त्र पुलिस बल तैनात कर दिया । जनता ने द्वार तोड़ने का निश्चय किया। परिणाम स्वरूप जनता पर लाठीचार्ज किया गया। अत: जनता को पुन: लौटना पड़ा। जोधपुर के इतिहास में यही पहला अवसर था जब नगर के दवार बंद किये गये। नारे व रामधुन के साथ शवयात्रा रात्रि के 8 बजे चांदपोल श्मशान पहुंची। वहां वेद मंत्रों के साथ पार्थिव शरीर को अग्नि में प्रवेश किया गया । आपके पिताजी अपने पुत्र के बलिदान देखकर गौरवान्वित अनुभव किया। बालमुकुंद बिस्सा की स्मृति में जोधपुर के जालोरी गेट पर सर्किल पर शहीद की प्रतिमा स्थापित की हुई है और सर्किल को ‘बिस्सा सर्किल‘ के नाम से पहचाना जाता है । इसका अनावरण श्री जयनारायण व्यास द्वारा किया गया । आज सभी पुष्करणा बालमुकुंद बिस्सा की प्रतिमा देखकर गौरवान्वित महसूस करते हैं।
जोधपुर में काफी समय से जालोरी गेट स्थित बिस्सा सर्किल पर 19 जून को श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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