“शांति की प्रार्थना”
सो गया मन उसे फिर जगाओ,
शांति की प्रार्थना मिल के गावो।
फिर अंधेरा घना छा रहा है,
ज्ञान का दीप फिर से जलाओ।
शांति की प्रार्थना मिल के गाओ।
क्यों घृणा की नदी बह रही है,
आदमीयत व्यथा सह रही है,
हर गली गांव को तुम बुलाओ,
शांति की प्रार्थना मिल के गाओ।
प्यार से विश्व रीता नहीं है,
प्रेम का मार्ग झूठा नहीं है, ब्रह्म से आत्मा को मिलाओ,
शांति की प्रार्थना मिल के गाओ।
जहर की खेतियां क्यों लगाईं,
बंद करो द्वेश की ये लड़ाई,
प्राण में आदमीयत बिठाओ,
शांति शांति की प्रार्थना मिल के गाओ।
सो गया मन उसे फिर जगाओ,
शांति की प्रार्थना मिल के गाओ।