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सूरज शर्मा ‘मकरध्वज’ का एक नवगीत

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(मूल नाम – धर्मेंद्र शर्मा, साहित्यिक नाम – सूरज शर्मा ‘मकरध्वज’, जन्म तिथि – 20 जुलाई 1967, जन्म स्थान – जयपुर (राजस्थान), साहित्यिक यात्रा – विगत 40 वर्षों से निरंतर कविता , कहानी , नाटक लेखन , विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन , आकाशवाणी पर काव्य पाठ, पता – प्लॉट नं 17 , नारायण वाटिका ए , वैद्य जी का चौराहा, निवारु, जयपुर (राजस्थान)
मेल – ss291444@gmail.com)

नव गीत

तुम मुझे आवाज देकर , पूछते तुम कौन हो ।
मैं तुम्हारा रूप हूं , जब बोलता तुम मौन हो ।।

हर कदम अब चाल तुम , चलने लगे हो रोज ही ।
नित नए अब दांव से , छलने लगे हो रोज ही ।
मैं तुम्हें दिन रात जपता , ही रहा हूं उम्र भर ।
तुम मुखौटा थाम कर अब , पूछते तुम कौन हो ।।

हो रहा जो कुछ भी जग में , सब तुम्हारा काम है ।
पर यहां पर नाम मेरा , व्यर्थ ही बदनाम है ।
जो किया तुमने किया है , मैं कहां था उम्र भर ।
पाप का अब नाम देकर पूछते तुम कौन हो ।।

मैं रहा मन मांझता तुम , पाप ही लिखते रहे ।
मैं हंसी रहा ढूंढता , संताप तुम लिखते रहे ।
मंदिरों के फेर में , उलझा रहा मैं उम्र भर ।
उम्र की इस सांझ पर अब , पूछते तुम कौन हो ।।

मैं तुम्हारा नाम लेकर , दीप सा जलता रहा ।
दर पे तेरे मौम बन कर , मैं पिघलता ही रहा ।
बस झलक तेरी मिले , यह सोचता रहा उम्र भर ।
अब अंधेरे हैं घिरे तब , पूछते तुम कौन हो ।।

– सूरज शर्मा ‘मकरध्वज’

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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