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डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि” की 12 गजलें

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(डॉ. एल.सी. जैदिया “जैदि” की गजलों में विद्रोह है। शब्दों में आग है। यह व्यवस्थाओं के खिलाफ स्वर मुखर करतीं हैं। साथ ही आपकी गजलों में जीवन का फलसफा है। आप अपनी बात अधिकारपूर्वक कहते हैं और भाव-संवेदनाएं गजलों का प्राण-तत्व है। कुछ गजलें पेश हैं। पाठकों की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी। )

शायर :-जैदि” एक परिचय
********

●नाम:- डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”

●उपनाम:- शायर :-“जैदि”

●पिता :- श्री मोहनलाल जैदिया

●जन्म:- 20/11/1969

●शिक्षा:- एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान)

●उपाधि:- डॉक्टर ऑफ लिटरेचर
(मानद उपाधि)

●रुची:- (लेखन)
ग़ज़ल विधा के साथ-साथ लेख, आलेख ,
कहानी, कविता, समीक्षात्मक टिप्पणियां
और बीकानेर आकाशवाणी से वार्ताकार।

●प्रकाशित रचनाऐं:-
दैनिक भास्कर, नवभारतटाइम्स, राजस्थान पत्रिका,अमर उजाला, दैनिक युगपक्ष,इंदौर समाचार, दस्तक प्रभात, सारासच, हिंदी दैनिक वर्तमान अंकुर, दैनिक इंदौर पत्रिका, घूंघट की बगावत,आदि देश के जाने माने बहुत से समाचार पत्र और मेगजीन।

साहित्य संगम,
(साझा संग्रह),

एहसास-ए-जिंदगी,
(साझा संग्रह)

नारी कविता के प्रागंण में
(साझा संग्रह)

अनुरागिनी काव्य कोष
(साझा संग्रह)

भुमिपुत्र
(साझा संग्रह)

साझा काव्य संकलन
(साझा संग्रह)

●प्रकाशित पुस्तक:-
मैं मुर्दों की आवाज़ हूँ

●सम्मान पत्र:- देश की प्रमुख जानी मानी संस्थाओं से बहुत से प्रशंसा पत्र और सम्मान पत्र।

◆ भुमिपुत्र एंव साहित्य अलंकरण सम्मान
◆ भारतेन्दु हरिचन्द्र राष्ट्रभाषा हिंदी गौरव सम्मान,
◆ विश्व हिंदी रत्न सम्मान-23
◆ विश्व हिंदी साहित्य रत्न सम्मान-23
◆ हिंदी रक्षक साहित्य सम्मान
◆ विश्वशांति मानव सेवा सम्मान
◆ राष्ट्रीय प्रतिष्ठा पुरस्कार
◆  काव्य स्वर सम्मान
◆ साहित्य भूषण सम्मान
◆ राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान
◆ राष्ट्रीय साहित्य सम्मान
◆ कालीदास साहित्य सम्मान
◆ हिंदी काव्य सागर सम्मान
◆ साहित्य गौरव सम्मान
◆नव उत्साह साहित्यक सम्मान
◆ वरीयर्स हुमनीटी सम्मान
◆ डॉ.अंबेडकर फैलोशिप नेशनल अवार्ड
◆ मध्यप्रदेश गौरव सम्मान
◆ दैनिक श्रेष्ठ सृजनता सम्मान
◆ अखण्ड भारत सम्मान
◆ ग्लोबल आर्गेनाइजेशन ऑफ आंबेडकराइज्ड लिटरेटिअर्स :- श्रेष्ठ काव्यकृति सम्मान,
◆ अटल स्मृति सम्मान:-24
◆ डॉ.भीमराव अम्बेडकर स्मृति सम्मान-:-2024
◆ नव कवि सम्मान -24 और अन्य कई प्रशस्ति पत्र।
◆ पद्म भूषण सुमित्रा नंदन पंत सम्मान-24
◆ शब्द शिल्पी सम्मान -24
◆ डॉ.अंबेडकर नेशनल अवार्ड-2024-25 (बेस्ट लिटरेचर)
◆राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान:-24
◆ नव वर्ष कवि सम्मान :-24
◆ वेलेंटाइन स्पेशल गुलाब दिवस सम्मान :-24

●मोबाईल नं.:-9829829629
●Email:-lcjaidiya@gmail.com

●सोशल मंच:- फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, टेलिग्राम, यूट्यूब।

पता:- डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
एफ-73, बल्लभ गार्डन, बीकानेर (राज.)
334003.

गजल-1

ढ़लती उम्र की दहलीज पर कदम रख दिया है,
कैसे बताऊँ आते यहाँ तक, बहुत गम पिया है।
============================

मैं भी था मस्तमौला मगर काम बहुत किया है,
वक्त को है ये पता कैसे लब को हमने सिया है।
============================

मजबूरी, हताशा, निंदा की कभी परवाह न की,
जैसे भी जिया है जिंदगी, मस्ती में ही जिया है।
============================

यूँ तो राहों में मेरी, संग-ओ-ख़ार कम न आऐ,
पार मगर सफ़र को हमने भी हंस के किया है।
============================

है ये ख़बर जानिब से मेरी, उस रकीब को भी,
रह के अडिग डगर पर, हैरान उसे कर दिया है।
============================

आशान न थी मंजिल मगर कदम बढाता गया,
सच की राह में ‘जैदि’ मिला हर स्वाद लिया है।
============================

मायने:-संग-ओ-ख़ार:-पत्थर और कांटे
जानिब से मेरी:-मेरी ओर से
रकीब :-दुश्मन

गजल : 2

जुबां को थोड़ी सी असरदार कीजिए,
करो जब भी बात, वजनदार कीजिए।
=======================

कलंक पसरा है इतना संभल के इनसे,
जहान में बेदाग, तुम किरदार कीजिए।
=======================

कभी किसी से मिलो, लगे मिला कोई,
दुखे दिल,रिश्ता ऐसा दमदार कीजिए।
=======================

शराफ़त न ढूंढो इस जमाने में यार मेरे,
संभल कर खुद को खबरदार कीजिए।
=======================

गले लगा हंस के दर्द जो पूछते हैं दोस्त,
इरादों से उनके खुद को बेदार कीजिए।
========================

करे ग़ीबत “जैदि” कर ने दो,मगर तुम,
उल्फ़त लुटा,खुद को दिलदार कीजिए।
========================

मायने:-
बेदार:-चौकना
ग़ीबत:-बुराई, चुगली

गजल : 3

पत्थर दिल का एतबार न कीजिए
हो गई जो भूल बारबार न कीजिए।
=====================

संभल कर चलना मुसाफिर राहों में,
कांटो को तुम ख़बरदार न कीजिए।
=====================

सीख लो उनसे ठोकर जो खा रहे है
है जो राज उन्हें अख़बार न कीजिए।
======================

ये दुनिया तमाशबीन है मजा लेती है,
दर्द ए गमो का यूँ दरबार न कीजिए।
======================

मुतमईन हो तो खुद से बात कीजिए,
चुप रह खुद को ख़ताबार न कीजिए।
======================

उम्मीद ए करार ले कर शायर “जैदि”,
बात दिल की तुम हरबार न कीजिए।
======================

मायने:-
एतबार:-विश्वास
ख़बरदार:-सावधान
तमाशबीन:-तमाशा देखने वाली
मुतमईन:-आश्वस्त
ख़तबार:-गुनहगार
उम्मीद ए करार:-संतोष की आशा

गजल : 4

मौत जगह और समय का इंतजार करती है
ले जाती नही तब तक हम से प्यार करती है।
===========================

है अटल सच कोई झुठला न सकता इसको,
छू भी न सकती जिस से वो करार करती है।
===========================

ये मौत है जो वक्त से पहले दगा न करती है,
वरना ये दहर तो हम पे हरबार वार करती है।
===========================

मौज-मस्तियाँ तब-तक, जब-तक है जिंदगी,
है जिंदा,हयात मुहब्बत का इजहार करती है।
===========================

धड़कने,धमनियाँ, नफ़्स और बहती शिराऐं,
सब हर दम काया से बेदर्द तकरार करती है।
===========================

उफ्फ़ ये मौत शायर “जैदि” कितनी सत्य है,
समय से पहले सभी को दरकिनार करती है।
===========================

मायने:-
करार:-समझोता
दहर:-दुनिया
हयात:-जिंदगी
नफ़्स:-सांस

गजल : 5

बोलती है कोई जुबानें तो उन्हें बोलने दो,
खोलता कोई मुंह सच के लिए खोलने दो।
=========================

मत दबाओ जालिमों,उनकी सदा को तुम,
स्वर कानों में इंकलाबी अब तो घोलने दो।
=========================

है दम उनके अल्फाज़ो में ये देखने दो हमें,
कितना है वज़्न उनके लब्ज को तोलने दो।
==========================

अब रगो में दौड़ने लगा लहू जरा दौड़ने दो,
सितमगरों के जिस्म की चमड़ी छोलने दो।
==========================

लग रही जो आग मायूस मजलूम बदन में,
खौलता खूंन रगो में उनके अब खौलने दो।
==========================

बदलेगी ये हवाऐं “जैदि” जोश ओ जुनून से,
देखो डोले हौसले दुश्मनों के तो डोलने दो।
==========================

मायने:-
सदा:-आवाज़
मायूस मजलूम:- हताश और सताऐ हुऐ लोग

गजल : 6

सच हार रहा है, झूठ की लहर में,
सब हो गये गुंगे-ओ-बहरे शहर में।
====================

जनता के है जितने मुद्दे दब रहे है,
नफ़रत की है दीवार बनी दहर में।
====================

है कैसा आया, जमाना जिंदगी में,
है न अमन यहां शामो ओ सहर में।
=====================

अब हम किस पर विश्वास करे जी,
टूट रही कमर मंहगाई की कहर में।
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है न किसी को फिक्र मुफलिसों की,
उफ़ न पीने को है इक बूंद बहर में।
=====================

झूठ कपट कर आ बैठे सियासत में,
न बचेगा “जैदि” तूं डूबा है ज़हर में।
=====================

मायने:-
दहर:-दुनिया
शाम ओ सहर:-शाम और सुबह
मुफलिसों:-गरीबों की
बहर:-समुंद्र

गजल : 7

“गहरे घाव मिले ज़िंदगी में हमें,
क्यूँ जीना फिर शर्मिंदगी में हमें।
===================

मस्त थे हम अपनी ही दुनियां में,
ले आया ये नशीब गंदगी में हमें।
====================

अस्मत लूटी जा रही देखो यहाँ,
रहना नही ऐसी दरिंदगी में हमें।
===================

भगवान कहाँ है तूँ यह बता हमें,
क्या मिला है तेरी बंदगी में हमें।
===================

न अमन है न सुकून भरा चैन है,
मत मारो प्रेम की तिश्नगी में हमें।
===================

हम ठहरे “जैदि” मारे मुहब्बत के,
ठोकर बहुत मिली जिंदगी में हमें।
====================

मायने:-
बंदगी:-ईश्वर की अराधना
तिश्नगी:-प्यास

गजल : 8

चल पड़ी ,नफ़रत की बयार देखो,
बच सको, तुम बच लेना यार देखो।
=====================

धर्म का झगड़ा,ला कर सड़कों पर,
है किया कैसे,लहूलुहान दयार देखो।
=====================

चाहते हो मरना गर है मर्जी तुम्हारी,
हर कदम बैठे जल्लाद तैयार देखो।
=====================

है फिक्र न उनको अब हमारी देखो,
मत ले,चलाऐ हम पर हत्यार देखो।
=====================

चैन-अमन चुराया, सता के खातिर,
है दया गर तुम बन कर मयार देखो।
=====================

है न सुकूँ अब सता में शायर “जैदि”,
छोड़ कर नफ़रत कर के प्यार देखो।
=====================

मायने:-
मत:-वोट, विचार
दयार:-भूखंड,
मयार :-दयालु,दया करने वाला

गजल : 9

कर के वादा तुम्ही तो आऐ थे साहब,
सब लाऊँगा ये कसम खाऐ थे साहब।
=======================

वादों से मुकरना तुम्हारा, क्या समझे,
पूरे करो ख़्वाब जो दिखाऐ थे साहब।
=======================

यूँ तो हम पहले ही ठगे थे जालिमो से,
तुम फिर क्यों दिल बहलाऐ थे साहब।
=======================

कुछ भी न कहते तुमको भी हम मगर,
दिल को जो विश्वास दिलाऐ थे साहब।
=======================

टूटे दिल को लेकर भी अब जाऐ कहाँ,
जिनको वादों से तेरे सजाऐ थे साहब।
=======================

आँखे पत्थरा गई देखो मुझ “जैदि” की,
आँसू बह गये सारे जो बचाऐ थे साहब।
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गजल : 10

लागे न जियरा अब मोरा इस गाँव में,
धड़के है दिल जैसे नदियां की नाँव में।
=======================

साथ चलूंगी सजना मैं जिधर ले चलो,
उफ्फ न करुँ मैं चुभे ख़ार मेरे पाँव में।
=======================

इक पल मैं ना रहूँ , तुम बिन संसार में,
सारे बंधन तोड़ जीवन लगाऊँ दाँव में।
=======================

तुम्ही सांसे, तुम्ही धड़कन सजना मिरी,
बीते हर सुख दुख मेरा तुम्हारी छाँव में।
=======================

ना घर है ना कोई ठिकाना जहाँ में मिरे,
मुझको सुकुन मिले रखना ऐसे ठाँव में।
========================

तेरा हर ग़म मेरा,मेरा हर ग़म तेरा “जैदि”
है कसम मिल के रहेंगे हम हर तनाव में।
========================

मायने:-
ख़ार:-कांटे
मिरी:-मेरे

गजल : 11

मंहगाई की हालत क्या है पूछो बाजार से,
गुजर कैसे रही है ये पूछो ग़रीब लाचार से।
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फुटपाथों पे बसर रही जिंदगानियाँ पता है,
मगर सिर पे छत है पता चला अखबार से।
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हर गली, हर चौराह, खड़े मंदिर शिवालय,
मगर ताज्जुब,लोग करते नफ़रत मज़ार से।
==========================

किस कदर शातिर है शैतान,यहाँ ये जाना,
बिन नश्तर कत्ल कर संग रहते ऐतबार से।
==========================

अजीब सा मंजर है मुल्क में हाय रे तौबा,
मज़लूम ख़ामोश, रक्षक मिले गुनहगार से।
==========================

तहरीक को आतुर रोज हमारी आवाम है,
चुप क्यूँ हो ‘जैदि’ सवाल करो सरकार से।
==========================

मायने:-
बसर:-गुजार
मज़ार:-दरगाह, कब्र
नश्तर:-चाकू
मज़लूम:-अत्याचार से पीड़ित
तहरीक:- आंदोलन
आवाम:-आम लोग

गजल : 12

मेरा न कृष्ण है न मेरा कोई राम है,
कर्तव्य पथ पर चलना मेरा काम है।
=====================

मेहनतकश हूँ पसीना मैं बहाऊँगा,
लूटखसोट कर, पेट भरना हराम है।
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कर्म करता रहूँ चाहे जर्जर हो शरीर,
हूँ पथ पे अडिग, बीते शुबह-शाम है।
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छत मेरा आसमां,धरा मेरी बिछोना,
गुजरे जहाँ बसेरा वहीं तो मकाम है।
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मैं मंदिर-ओ-मस्जिद सब क्या जानू ,
मेरे तो बस मात-पिता, चारों धाम है।
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कोई कुछ कहे फिक्र नही है “जैदि”,
लब्ज प्यार का बोले, उसे सलाम है।
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Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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