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भारतीय भाषाओं में अपनी अलग पहचान एवं साहित्यिक योगदान के लिए प्रसिद्ध राजस्थानी भाषा जिसका वैभवपूर्ण प्राचीनतम इतिहास है फिर भी हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा पांच भारतीय भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया। उसमें राजस्थानी को यह दर्जा न मिलना दुःखद पहलू है।
राजस्थानी युवा लेखक संघ के प्रदेशाध्यक्ष, राजस्थानी मान्यता आंदोलन प्रवर्तक एवं वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने भारत सरकार के संस्कृति मंत्री जो राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति में रचे-बसे और सांसद है। उनसे मांग करते हुए यह आशा रखी है कि वे शीघ्र राजस्थानी को भी शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिलाएगें। रंगा ने कहा कि राजस्थानी भाषा का वैभव एवं उसकी साहित्यक विरायत समृद्ध और प्राचीन है और वह भाषा वैज्ञानिक मानदंडों पर खरी उतरती है, जिसकी जड़े भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक और भाषायी विरासत में गहराई से जुड़ी हुई है। राजस्थानी का ‘रासो साहित्य’ एवं राजस्थानी का मध्यकाल हिन्दी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, साथ ही राजस्थानी पन्द्रहवी सदी से अपना साहित्यक मुकाम रखती है। रंगा ने इस संदर्भ में आगे बताया कि जहां एक तरफ आजादी के बाद राजस्थानी भाषा सभी वैधानिक एवं भाषा वैज्ञानिक पूर्तियों के उपरांत भी अपने वाजब हक संविधान की आठवीं अनुसूचि में स्थान पाने के लिए संघर्षरत हैं। वहीं प्रदेश की दूसरी राजभाषा घोषित हो इसके लिए भी इंतजार है। परन्तु ऐसी स्थिति में यदि भारत की पांच क्षेत्रीय भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देते हुए कुल पन्द्रह शास्त्रीय भाषाएं यह दर्जा प्राप्त कर चुकी है। ऐसे में राजस्थानी को मान्यता न मिलना दुःखद है ही साथ ही शास्त्रीय भाषा का दर्जा न मिलना करोड़ों लोगों की जनभावना अस्मिता और उनकी सांस्कृतिक पहचान के खिलाफ है। भारत सरकार शीघ्र राजस्थानी को मान्यता के साथ-साथ शास्त्रीय भाषा का दर्जा दें जो कि राजस्थान और राजस्थानी के व्यापक हित में सही निर्णय होगा।