बेटियां
जिस आंगन में जन्मी
खेली-पली-पढ़ी बेटियां
उस आंगन को छोड़
दूजै आंगन से समझौता
कर लेती है प्यारी बेटियां
मां-बाप के लाड-प्यार
सौ सुखों को त्याग कर
अपनों की आंखों में आंसू
अपनों से विदाई का पल
बाबुल के घर से जाती बेटियां
सपने में भी नहीं देखा कभी
वो घर, दीवार-ओ-दर कभी
सब कुछ नया ही नया वहां
उस घर को भी अंगीकार
दिल से कर लेती हैं बेटियां
नये रिश्तों की राह पर
आहिस्ता-आहिस्ता कदम रख
मन को समझा नये संसार में
स्नेह रूपी डोर में बांध कर
अपने जीवन को संवारती बेटियां
पढ़ी-लिखी बेटी अपने संस्कार से
घर-परिवार-समाज को संवारती
बेटी बचाओ अभियान को भी
घर-घर की आवाज बना कर
अक्षरशः जीवन में उतारती बेटियां।