नीलम व्यास ‘स्वयंसिद्धा’
आज परशुराम जी फिर आ जाना
वो कैसे इंसान है जो
इंसान को मार खुश होते हैं
धरम के लिए युद्ध का नारा देकर
मानवता को कलंकित करते है
धरम जाति बड़ी नहीं है
मनुजता के धरम से
बेगुनाहों को मार कर
कौनसे धरम को निभाते हो,
मनुज से दनुज बनकर
कैसी भक्ति निभाते हो?
कितनी कुत्सित
कितनी घटिया
मानसिकता अपनाते हो
ओ हत्यारों क्यों तुम
अपने गुनाहों से मानवता
यूं बार बार
शर्मसार कर जाते हो
जागो भारतवासी
करो आतंकवाद का खात्मा
रक्त की नदियां बहाने से
कैसे खुश होगा परमात्मा?
रक्त रंजित देह करके
कैसे मिटेगा कलंक बोलो?
आओ भारतवासी मिलकर
कोई सख्त कदम उठाते हैं
ईंट का जवाब पत्थर से देकर
मनुज धर्म निभाते हैं
मन की व्याकुलता
शब्दों से बाण चलाकर
अभिव्यक्ति करते हैं
और नहीं…. बस… और नहीं
सभी भारतवंशी मिलकर
ओजस्वी हुंकार भरते हैं
राम कृष्ण की पुण्य धरा को
आज फिर से पावन बनाते हैं
अधर्म अन्याय आतंकवाद
मिटाकर…
सर्वधर्म समभाव की अलख
जगाते हैं…..
हे परशुराम राम जी
आज फिर आओ
युवा शक्ति को प्रेरणा दे जाओ
चलाओ फरसा पुण्यशाली अपना
आतताइयों से धरा को
मुक्त कर… हम सब
आतंकरहित भारत बनाते हैं
हे परशुराम जी
दो आशीष
शत्रु दमन करके हम
शांति का परचम
लहराते हैं।
नीलम व्यास स्वयंसिद्धा