प्रतिस्पर्द्धा
होड की है आपाधापी
धुंधलाती रिश्तेदारी है
भावनाओं का मोल नहीं
बस मतलब की यारी है
दिखावा करता शोर बहुत
आधुनिकता की खुमारी है
संस्कार हुए मूच्र्छित यहां
सपनों ने सुख चैन का किया हरण
भौतिक सुख की चाहत दुश्वारी है
दीन का कोई पूछे क्यों
पूंजीवाद का बोलबाला
वक्त रहते संभले नहीं मानव
बड़ी यह भूल तुम्हारी है।