मेरा गांव
मेरा गांव
अब पहले जैसा गांव
नहीं रहा
सड़कें बन गई, बिजली-पानी की सुविधाएं,
सरकारी स्कूल, अस्पताल, इंटरनेट सेवाएं
मिल रही शहर की तमाम सुविधाएं
मगर
मिट गए सुकुन देने वाले
कुएं-पनघट, नाडी-तालाब
पशुओं की आहट, पक्षियों की चहचहाट
हां
होने लगे अतिक्रमण,
बढ़ गए झगड़े, होने लगी चोरी जारी,
बलात्कार, हत्या के अपराध
हवा ही बदल गई गांव की हवा
किसी के फुर्सत नहीं पहले जैसी
हो गए सभी मतलबी
ऐसा देखा जब मैंने
जब वर्षो बाद आया शहर से गांव
जमीन से लेकर आसमान तक
सब कुछ बदला हुआ
न बरगद का पेड़
न उसके नीचे बैठने वाले
दिखे नत्थू काका, रामू काका, चम्पा बा
घरों के दरवाजे भी बंद
जो अक्षर रहते खुले
आज मैं अपने ही गांव में
अजनबी सा महसूस करने लगा
मेरा गांव
अब पहले जैसा नहीं रहा
एडवोकेट एनडी निम्बावत “सागर”
जोधपुर (राजस्थान)
