जनता+जनप्रतिनिधि+जिम्मेदार = 100% परिणाम…फिलहाल जोधपुर तीनों में जीरो
डीके पुरोहित. जोधपुर
इंदौर। भारत का सबसे साफ-सुथरा शहर। पिछले सात सालों से नंबर वन। क्या जोधपुर ऐसा हो सकता है…? सवाल महत्वपूर्ण है और उसका समाधान उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। इंदौर को साफ-सुथरा बनाने वाला इकलौता वहां का प्रशासन नहीं है, उसमें योगदान है इंदौर की आम पब्लिक का भी…कोई भी अभियान तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उसमें जनता की सीधी भागीदारी नहीं होती। क्योंकि प्रशासन का चाबुक जो काम नहीं करवा सकता वही काम आत्मबल और स्वविवेक करवा सकता है। इंदौर की जनता ने सफाई का महत्व पहचाना और अपने स्वअनुशासन से इंदौर को साफ-सुथरा शहर बनाया। तो क्या जोधपुर के लोग नहीं चाहते कि जोधपुर साफ-सुथरा शहर हो। जोधपुर भी देश का नंबर वन साफ-सुथरा शहर हो…आइए करते हैं मंथन…।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का होम सिटी…पर साफ-सुथरा नहीं, क्योंकि… गहलोत के पास विजन ही नहीं
सीवरेज सिस्टम ध्वस्त : जोधपुर के साथ एक बात हमेशा पॉजिटिव रही कि यह पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का होम सिटी रहा। यहां अशोक गहलोत वो सबकुछ दे सकते थे और वो सबकुछ कर सकते थे जो जोधपुर काे देश का नंबर वन साफ-सुथरा शहर बना सकता था। मगर गहलोत के पास अपना कोई विजन रहा ही नहीं। वे हमेशा ब्यूरोक्रेट के भरोसे ही रहते आए हैं। उन्होंने जोधपुर को बहुत कुछ दिया, मगर जोधपुर की जनता को विश्वास नहीं दे पाए कि वे हमेशा जोधपुर की जनता के साथ हैं। एक मुख्यमंत्री चाहता तो क्या नहीं कर सकता था। वो भी उस स्थिति में जबकि उसके पास पूरे प्रदेश का शासन था और वो अपने होम सिटी के लिए पूरी ताकत लगा सकता था। मगर अशोक गहलोत को नाकारा मुख्यमंत्री के रूप में जाना जाएगा। वो ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में उभरे जो आजादी के बाद 70-75 साल में जोधपुर की सीवरेज लाइनों का मैकेनिज्म तक भी तैयार नहीं कर पाए और मानसून के दौरान शहर की क्या हालत हो जाती है उससे कोई अछूता नहीं है। सीवरेज लाइनों की समस्या ही ऐसी है कि जोधपुर साफ-सुथरा हो ही नहीं सकता। आप किसी भी सड़क, गली, मोहल्ले, कॉलोनियों और भीतरी शहर में निकल जाएं सड़कों और गलियों में गंदा पानी बहता नजर आएगा। सीवरेज प्रणाली पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। हालत यह है कि अत्यधिक बारिश के दौरान यहां नालों में इंसान बहते रहे और तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत सीवरेज तंत्र सही नहीं करवा पाए। जिस शहर का सीवरेज सिस्टम ध्वस्त हो चुका हो वहां गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था सही नहीं हो तो साफ-सुथरा कैसे होगा? हालत यह है कि पूरा शहर गंदे पानी की समस्या से परेशान है और कोई कुछ नहीं कर पा रहा है।
तीन बार के सांसद और मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत…सुपर फ्लॉप मंत्री, बातूनी अधिक, काम में जीरो
समस्याएं हल क्या हो शेखावत खुद समस्या : गजेंद्रसिंह शेखावत। जोधपुर के तीसरी बार सांसद है। इस बार केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री है। पूर्व में जलशक्ति मंत्री रहे। जनता ने उन्हें पूरे विश्वास के साथ चुना और खूब प्यार दिया। मगर बदले में शेखावत ने दी केवल बड़ी-बड़ी बातें। ढप्पोर शंख की तरह रूहानी सपने दिखाए। बातें करने वाले शेखावत धरातल पर कुछ भी नहीं कर पाए। आज भी जोधपुर पानी की समस्या से इतना त्रस्त है कि अखबारों में छप रही रोज खबरें उठाकर देख लें तो उनकी काबलियत पर प्रश्न चिह्न लगा नजर आता है। इस बार शेखावत के पास पर्यटन और संस्कृति विभाग है। मगर अभी तक शेखावत कुछ भी नहीं कर पाए। उनके पास बातों के अलावा कोई विजन नहीं है। वे जोधपुर आते हैं और अपनी चापलूसों की फौज के साथ हथाई करके चले जाते हैं। वे हथाई मंत्री अधिक है और काम के मामले में उनके पास दिखाने को कुछ नहीं है। शेखावत चाहते तो जोधपुर को इंदौर की तरह सफाई में नंबर वन बना सकते थे। भाजपा जैसी पार्टी के वो नेता है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उन पर वर्दहस्त है। मगर अब जनता जान गई है कि शेखावत केवल बातें कर सकते हैं और काम करना या करवाना उनके बस की बात नहीं है। शेखावत ने तीसरे कार्यकाल तक भी जोधपुर को साफ-सुथरा बनाने में कोई जमीनी कार्य नहीं किया। अफसरों को सख्त लहजे में काम करने के आदेश देते हैं तो वे चाहते तो जोधपुर को साफ-सुथरा बनाने में अपनी पूरी ताकत लगा सकते थे। मगर ऐसा नहीं हुआ। उनका तीसरा कार्यकाल शुरू हो चुका है और अभी तक कोई चमत्कार नहीं दिखा पाए। जब जब राजनीति इच्छा शक्ति से दूर हो जाती है तब-तब जनता सो जाती है। जनता को जगाने के लिए राजनीति को जागना होता है। मगर गजेंद्रसिंह शेखावत सुपर फ्लॉप मंत्री साबित हुए और उनकी उपलब्धियां भी जीरो ही सामने आई। जोधपुर को साफ-सुथरा शहर बनाने के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया।
स्व. सूर्यकांता, देवेंद्र जोशी, मनीषा पंवार, स्व. कैलाश भंसाली, अतुल भंसाली…सब तोला मासा, किसी का रुपया नहीं चलता
नाम के विधायक, कोई प्लानिंग नहीं : शहर को सुंदर बनाने में अगर एमएलए की बात की जाए तो स्व. सूर्यकांता व्यास सूरसागर की बार-बार एमएलए बनीं। अब देवेंद्र जोशी हैं। मनीषा पंवार पिछली बार शहर विधायक थीं। उससे पहले स्व. कैलाश भंसाली थे। अब अतुल भंसाली आ गए हैं। इन विधायकों पर शहर को साफ-सुथरा शहर बनाने का जिम्मा रहा। मगर जैसा कि सब जानते हैं इन विधायकों में इतना मादा कभी रहा ही नहीं। आलाकमान इनकी सुनता नहीं। इनके पास इतना सामर्थ्य नहीं कि वे अपनी बात मनवा सके। बेचारी जनता बेचारी बनी रहती है। जनता के पास भी इनकी जैजैवंती करने के अलावा कोई चारा नहीं है। अपणायत के शहर में जनता अपणायत तो निभाती रही पर इन जनप्रतिनिधियों ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। भाजपा के विधायक तो हिंदू कार्ड खेलते आए हैं इन्हें जोधुपर को साफ-सुथरा शहर बनाने से कोई सरोकार नहीं हैं।
नगर निगम : शहर का सत्यानाश कर दिया निगम ने, प्रत्येक महापौर सुपर फ्लॉप
अफसरों के भरोसे चलती रही महापौरी : शहर को साफ-सुथरा बनाने में निगम की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस बार तो दो नगर निगम थे-उत्तर और दक्षिण। वाकई ये नगर निगम उत्तर-दक्षिण बने रहे और इनका काम एक-दूसरे की टांग खिंचाई वाला ही रहा। शहर के विकास से इनका दूर-दूर तक वास्ता नहीं रहा। विकास तो दूर शहर में कचरा उठाने वाली गाड़ी भी महीने में दस दिन से ज्यादा नहीं आती। अधिकांश वार्डों में तो कचरा अभी भी सड़कों और पार्कों के आस-पास बिखरा मिल जाएगा। नगर निगम नाकारा साबित हुए। महापौर सुपर फ्लॉप साबित हुए। रामेश्वर दाधीच, घनश्याम ओझा, कुंती परिहार, वनिता सेठ…सब नाम बड़े रहे और काम उनके इतने बौने कि कुछ नजर नहीं आ रहा। इतने सालों में ये महापौर शहर की सफाई का रोडमैप तैयार नहीं कर पाए। इसका सीधा और स्पष्ट कारण है और वह ये कि ये महापौर जनता से जुड़ाव नहीं रख पाए। जनता ने इन्हें चुना जरूर मगर ये जनता से दूर होते गए। एक बार चुने जाने के बाद जनता के साथ विश्वास नहीं बना पाए। यही कारण है कि जनता की समस्याओं से इन्हें दूर-दूर तक वास्ता नहीं रहा और पिछले 15-20 सालों में शहर का सत्यानाश कर दिया निगमों ने और महापौर की भूमिकाओं में सारे महापौर सुपर फ्लॉप साबित हुए। यही कारण रहा कि इतने सालों में भी जोधपुर साफ-सुथरा शहर नहीं बन पाया।
और अब वो कारण जिसकी वजह से जोधपुर नहीं बन पाया सफाई में सिरमौर…
1-शहर को अपना समझा ही नहीं : यहां पर सात-समंदर पार से आने वाले पर्यटकों ने शहर के झालरों, बावड़ियों और तालाबों को साफ-सुथरा बनाने का बीड़ा उठाया मगर खुद शहर के लोगों ने इसकी उपेक्षा ही की। इसी तरह देखा जाए तो जोधपुर के लोगों ने जोधपुर को कभी अपना समझा ही नहीं। पर्यटन के नाम पर और यहां के लजिज पकवानों और व्यंजनों और नमकीन के नाम पर कमाई तो करते रहे मगर जो काम शहर को अपना समझ कर करना चाहिए था वो हो नहीं पाया। लोग इस बात पर ही खुश हैं कि जोधपुर का मिर्चीबड़ा कमाल का है। लोग घंटाघर की लस्सी पर इतराते रहे। लेकिन घंटाघर कितना गंदा है। घंटाघर की सैर को निकल जाएं तो जगह-जगह कचरे के ढेर। सड़कों पर बहता गंदा पानी और अव्यवस्थाएं हावी है। अतिक्रमण यहां पग-पग पर है। हर दृष्टि से उपेक्षित घंटाघर कमाई का साधन बन गया है। कमाई करो। कमाई करना बुरा नहीं है, मगर अपने ही शहर को साफ-सुथरा रखने में हम पीछे रहे। यह बात घंटाघर तक ही सीमित नहीं है। पूरा शहर दर्द भुगत रहा है। इस दर्द की दवा भी शहर के लोगों के पास ही है। मगर लोग दर्द के बीच रहते रहे मगर उसका उपचार करने के लिए आगे नहीं आए। एक तरह की फीलिंग जो इस शहर की अपणायत काे लेकर कही जाती है, वही फिलिंग अगर शहर को साफ-सुथरा शहर बनाने के लिए महससू करते तो आज जोधपुर पर्यटन के नक्शे के साथ-साथ देश का सफाई के नाम पर भी नंबर वन शहर होता। जोधपुर के पास क्या नहीं है। यहां देखने के लिए एक से बढ़कर एक स्थान है। यहां की परंपराएं महान है। यहां की विरासत अद्भुत है। यहां किसी चीज की कमी नहीं है। कमी है तो शहर को अपना समझने की। अपनत्व के भाव की। हमने बातें तो बड़ी बड़ी की मगर इस शहर को साफ-सुथरा बनाने के लिए कुछ नहीं किया।
2-भ्रष्ट और निकम्मी नौकरशाही…बजट कहां जाता है कोई पूछने वाला नहीं
विकास कहीं नजर नहीं आता : शहर में नगर निगम और जेडीए विकास के दम भरता है। हर साल बजट भी बड़ा होता है। मगर पैसा कहां चला जाता है कोई पूछने वाला नहीं। भ्रष्ट और निकम्मी नौकरशाही पर लगाम नहीं है। शहर में कहीं भी चलें जाए एक डस्टबिन तक दिखाई नहीं देता। सफाई क्या खाक होगी? हर तरफ कचरे के ढेर। बहता पानी। आवारा पशु। नील गाएं, सांड, गायें, सूअर, कुत्ते और अन्य पशु सड़कों पर विचरण करते हुए मिल जाएंगे। कोई कुछ करने वाला नहीं है। कोई बोलने वाला नहीं है। जनता सोई हुई है। जनप्रतिनिधि खोए हुए हैं। अफसर बेलगाम हो गए हैं। ऐसे में तो कैसे इंदौर की तरह जोधपुर सफाई में नंबर वन होगा।
क्या उपाय करें कि शहर सुंदर हो…
बहुत अच्छा सवाल है! जोधपुर को इंदौर जैसा साफ़-सुथरा बनाने के लिए एक संगठित और सामूहिक प्रयास की ज़रूरत होगी – प्रशासन, नागरिकों और निजी संस्थाओं की भागीदारी से। इंदौर की सफ़लता से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। नीचे कुछ महत्वपूर्ण कदम दिए गए हैं जो जोधपुर को सफाई में नंबर वन बना सकते हैं-
1. ठोस कचरा प्रबंधन सुधारना
डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण को 100% लागू करना। गीले और सूखे कचरे को स्रोत (घर) पर ही अलग करना। कचरे का रिसाइकल, कम्पोस्टिंग और प्रोसेसिंग में उपयोग करना।
2. जन जागरूकता अभियान
स्कूल, कॉलेज और समुदायों में सफाई को लेकर जागरूकता फैलाना। सोशल मीडिया, पोस्टर, नुक्कड़ नाटक, प्रतियोगिताओं के जरिए सफाई को स्टाइल बनाना।
3. नगर निगम की जवाबदेही और तकनीक का इस्तेमाल
इंदौर की तरह GPS ट्रैकिंग सिस्टम लगाना कचरा गाड़ियों में। फीडबैक और शिकायतों के लिए मोबाइल ऐप बनाना। कर्मियों को अच्छे वेतन और प्रशिक्षण देना।
4. सख़्त नियम और जुर्माना
सार्वजनिक जगहों पर गंदगी फैलाने पर तुरंत जुर्माना। होटल, दुकान और फैक्ट्रियों के लिए सख्त सफाई नियम।
5. सामुदायिक भागीदारी
RWA, NGO और लोकल लीडर्स को सफाई अभियानों में शामिल करना। “अपना वार्ड, अपनी जिम्मेदारी” जैसे अभियान चलाना
6. सफाई को गर्व और पहचान बनाना
“स्वच्छ जोधपुर – गर्व हमारा” जैसी टैगलाइन से भावनात्मक जुड़ाव बनाना। वार्डों, स्कूलों, मोहल्लों को “साफ़-सुथरे क्षेत्र” का पुरस्कार देना। अगर जोधपुर शहर और उसके नागरिक मिलकर यह सब कदम उठाएं, तो यकीन मानिए – जोधपुर भी इंदौर को टक्कर दे सकता है। आप जोधपुर के किस इलाके से हैं? वहाँ की सफाई की स्थिति कैसी है अभी? यह बात हम सबको जाननी होगी और बस हर गली-मोहल्ले, कॉलोनियों और वार्डों को साफ-सुथरा रखने में बच्चा-बड़ा अपनी जिम्मेदारी समझ ले तो शहर सुंदर हाे सकता है। साफ-सुथरा हो सकता है।
7. सफाई को आंदोलन के रूप में लेना होगा
जोधपुर को इंदौर की तरह साफ-सुथरा बनाने के लिए एक आंदोलन की हद तक जुनून दिखाना होगा। एक लहर की तरह जुड़ाव दिखाना होगा। हमें अपने घरों से ही सफाई का कल्चर डेवलप करना होगा। बच्चों को सफाई का महत्व समझाना होगा। स्कूलों में यह काम टीचर्स अच्छे ढंग से कर सकते हैं। कार्यालयों में सफाई का ध्यान रखना होगा। बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, पान पीक और साफ-सफाई को उत्कृष्ट रखकर ही हम आगे बढ़ सकते हैं। लोगों को जागरूक होना होगा। जहां भी गंदा पानी सड़कों पर बहता नजर आए तुरंत संबंधित एजेंसी को फोन और ट्वीट कर कार्रवाई के लिए लिखना होगा। जहां भी कचरा बिखरा देखे संबंधित विभाग को शिकायत करनी होगी। खुद जनता को ही सफाई के लिए तैयार रहना होगा। अपने घरों से यह आंदोलन शुरू करना होगा और पूरे शहर में छा जाना होगा।
