मुद्दा : किले में एक और गेट बनाने की कवायद कहां तक उचित?
लेखक : डीके पुरोहित
इन दिनों गोल्डन सिटी जैसलमेर में एक ही मुद्दा छाया हुआ है- क्या सोनार किले जैसलमेर का नया गेट निकालना उचित है? 870 साल पुराना किला अब बूढ़ा हो गया है। 1156 ईस्वी में रावल जैसल द्वारा बनवाया गया यह लिविंग फोर्ट दुनिया में अपने तरह का अनूठा है। सोने जैसे चमकने वाले पत्थरों पर जब सूर्य की किरणें पड़ती है तो यह नजारा दुनिया अपने कैमरों में उतारने को लालायित रहती है। इसी विशेषता के कारण जनकवि श्यामसुंदर श्रीपत ने दोहा रचा था- सूरज पूछे सारथी, भू पर किसड़ो भांण, जूंझारो जदुवंश रो, चमके गढ़ जैसाण। यानी सूरज अपने सारथी से पूछता है धरती पर यह दूसरा सूरज कहां से आ गया? तब सूरज का सारथी कहता है कि यह यदुवंशियों का किला जैसाणगढ़ है जो चमक रहा है। इस किले में जब सीवरेज लाइन बिछाई गई और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार से सीवरेज का पानी नींव को खोखला कर रहा था तब पूरा शहर खामोश रहा, मगर विदेशी सैलानी सू कारपेंटर ने यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाया और तब भारत सरकार का ध्यान गया और सीवरेज लाइन पर दुबारा काम हुआ। यह बात अलग है कि आज तक सीवरेज लाइन किले की नींवें खोखली कर रही है। इस किले को संरक्षित स्मारक घोषित कर रखा है और पुरातत्व विभाग के जिम्मे है कि इस किले के मौलिक स्वरूप के साथ छेड़छाड़़ ना हो। मगर ऐसा नहीं हुआ। पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की जेबें गर्म करके पिछले चार-पांच दशक में इस किले के मौलिक स्वरूप का चीरहरण होता रहा और पूरी दुनिया यह तमाशा देखती रही। भारत का पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय कभी गंभीर नहीं रहा। अब जबकि जोधपुर के सांसद गजेंद्रसिंह शेखावत केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री है तो उनसे उम्मीद की जा रही थी कि वे जैसलमेर के लिविंग फोर्ट को लेकर कोई ठोस योजना बनाएंगे, मगर वे भी पूरी तरह फेल सिद्ध हुए। इस किले में रियासतकालीन बारूद आज भी यत्र-तत्र बिखरा हुआ है और कुछ समय पूर्व इसकी 100 मीटर की परिधि में जीवित बम भी मिला था, मगर शेखावत ने गंभीरता नहीं दिखाई। यह लापरवाही दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारत के लिए कभी भी खतरा बन सकती है।
इस किले का मौलिक स्वरूप बचाना सबसे बड़ी चुनौती रही। पुरातत्व विभाग ने ध्यान नहीं दिया और किले में निर्माण होते गए। चूंकि यह किला लिविंग फोर्ट है तो निर्माण भी समय की जरूरत रही है, मगर इसके लिए कोई नियम, कायदे नहीं रहे और जिसके जो मन में आया वैसा निर्माण कराया और किले की खूबसूरती और इसकी मौलिकता समय के साथ नष्ट होती रही। पूरा शहर खामोशी ओढ़े रहा। बुद्धिजीवी चुप्प रहे। मीडिया तमाशबीन बना रहा। और हुआ यह कि किले की हत्या होती रही। कोई किले के लिए बोलने वाला नहीं रहा। रही सही कसर आईएएस अधिकारियों ने पूरी कर दी। मनमाने नियम बनाए गए। बैसिक जरूरतों पर कभी ध्यान नहीं दिया गया और हालत यह हो गई है कि ट्रैफिक पुलिस बूढ़े-लाचार और बीमार लोगों को भरी दुपहरी में किले में टैक्सी में बैठकर जाने से रोकती है और पर्यटकों से पैसे वसूली कर टैक्सी में जाने की छूट देती है। यह लेखक खुद इसका साक्षी रहा है। आज से करीब 30 साल पहले सोनार किले में बारूद फटा था और कई लोगों की मौत हो गई थी। तब भगवानलाल सोनी जैसलमेर के पुलिस अधीक्षक हुआ करते थे। उन्होंने जैसलमेर के तत्कालीन महारावल के खिलाफ लापरवाही का मुकदमा दर्ज किया और आज तक कार्रवाई नहीं हुई। किला व्यावसायिक गतिविधियों का बड़ा केंद्र है। भूमाफियाओं और स्वार्थी तत्वों ने किले का पूरी तरह से दोहन किया। पूर्व केंद्रीय संस्कृति मंत्री चंद्रेश कुमारी ने भी किले को लेकर लापरवाही ही दिखाई। राज परिवार ने सपत्तियों को कब्जे में करने में ही अपनी शान समझी। इस किले को बचाने के लिए सबने अपनी तरफ से आंखें मूंद ली। जितने भी कलेक्टर आए वे पूंछ हिलाऊ साबित हुए और किसी ने किले की जरूरतें नहीं समझीं और अदूरर्दशितापूर्ण निर्णयों से विश्व के सबसे खूबसूरत किले की हत्या कर दी। किले की हत्या का षड़यंत्र अब भी जारी है और पूरी दुनिया खामोश है। जिस किले ने जैसलमेर के लोगों को समृद्धि दी, आय का जरिया बना, वे लोग ही इस किले के प्रति अपनी जिम्मेदारियां भूल गए। प्रशासन अपनी लाठी से लोगों को हांकता रहा। बुद्धिजीवी अपनी रोटियां सेंकते रहे। पर्यटन के पैरोकार बहती गंगा में हाथ धोते रहे और इसके मौलिक स्वरूप के साथ खिलवाड़ के खिलाफ कोई स्वर कभी नहीं उठे। मीडिया के कंधों पर भारी जिम्मेदारी थी, मगर वो भी समय के साथ पलटी मारता रहा। अब एक बहस चल पड़ी है कि किले की जो चार पोल है हवा पोल, सूरज पोल, गणेश पोल और अखे पोल उन पर बढ़ते ट्रैफिक और मानव दबाव को देखते हुए किले में एक नया गेट यानी नया द्वार निकाला जाए। जिला प्रशासन ने इसका प्लान बना लिया है। लेकिन इस निर्णय से किले की मौलिकता की हत्या हो जाएगी। किला अपना मूल स्वरूप खो देगा। इस किले की नैसर्गिक खूबसूरती मर जाएगी। मगर कोई नहीं बोल रहा है।
यहां तक कि पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय भी खामोश है। केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत भी इसे रोक नहीं रहे हैं। जैसलमेर का जिला प्रशासन अपने निर्णय को लागू करने के अंतिम चरण में है और कभी भी जैसलमेर में इस दुनिया के इकलौते और अनूठे लिविंग फोर्ट का एक और द्वार बनाया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो इस किले की असमय हत्या हो जाएगी। इस षड़यंत्र में बुद्धिजीवी वर्ग भी अपनी मौन स्वीकृति देता प्रतीत हो रहा है। पूरी दुनिया को जब पता चलेगा कि एक किला अपना नैसर्गिक सौंदर्य खो चुका है तो दुनिया भर के पर्यटकों को घोर निराशा होगी। लेकिन आश्चर्य की बात है कि इस मुद्दे पर अभी तक जनमत जाग्रत क्यों नहीं हुआ? लोग खामोश क्यों है? एक किले की सरेआम हत्या होने जा रही है और इसे बचाने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा। माना कि समय के साथ किले पर दबाव बढ़ रहा है, लेकिन इस किले के मौलिक स्वरूप को बचाकर ही किले की खूबसूरती बचाई जा सकती है, लेकिन ऐसा करने की बजाय प्रशासन सरल तरीके पर जोर दे रहा है। जबकि प्रयास यह होना चाहिए था कि किले के लोगों को समझाबुझाकर किले के बाहर बसाने का प्रयास किया जाता। धीरे-धीरे किले पर आबादी का दबाव कम किया जाता। लेकिन इस दिशा में सफल नहीं होने पर प्रशासन ने एक ऐसा कदम उठाने की ठान ली जो इस किले के भविष्य के लिए घातक होगा। इस किले की बनावट ही इस किले को दुनिया का अजूबा बनाती है। मगर अब जबकि किले का एक और गेट बनाने की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है तो यह तय है कि पर्यटन और परंपरा के शहर के साथ उसके इतिहास के साथ भी छेड़छाड़ हो रही है। पुरातत्व विभाग कैसे इसकी स्वीकृति दे सकता है? पुरातत्व विभाग के नियम कैसे इसकी इजाजत देते हैं? अब इस निर्णय के खिलाफ कोर्ट को ही कोई कदम उठाना होगा तभी किले की हत्या रुक सकती है। वरना किले की हत्या करने का षड़यंत्र गहरा है।
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