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Monday, April 14, 2025, 3:34 am

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आलेख : विश्वास की शक्ति

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केबी व्यास. विचारक एवं चिंतक,  दुबई

विश्वास एक बहुत बड़ी शक्ति है। एक जबरदस्त शक्ति। इससे पूरा ब्रह्मांड हिल सकता है। इससे आमूलचूल परिवर्तन आ सकता है। हम जानते हैं कि विश्वास के दम पर कितने ही लोगों ने अपने अपने जीवन क्षेत्र में विजय हासिल की है। श्वास हृदय के भीतर छुपी हुई शक्ति को निकाल कर बाहर लाता है। विश्वास जीवन की उस ऊर्जा का नाम है जो असीम है। मनुष्य जितना हो सके अपने चारों ओर विश्वास पात्र लोग ही खोजता है। वे ऐसे लोग खोजता है जिन पर यकीन कर सके। वे लोग जिन पर संदेह ना हो। अगर ऐसी बात है तो उस व्यक्ति को भी लोगों का विश्वास पात्र बनना चाहिये कि जिन पर लोग यकीन कर सकें और जिन पर संदेह ना हो। यदि हमें ऐसा बनना है तो हमें हर बात को पूरी तरह सोच.समझ कर कहना चाहिये और किसी भी बात को हल्के में नहीं लेना चाहिये। वो विश्वास ही दे और विश्वास ही ले। मगर क्या ऐसा हो सकता है कि हम जिससे भी मिलें विश्वास से ही मिलें। हमें प्रकट में नुकसान हो रहा हो मगर तब भी हम उस व्यक्ति से पूर्ण विश्वास के साथ मिलें । ये बात सही है कि नुकसान के प्रति पूर्णतया सजग रहना जरूरी है। इसलिए उचित व्यक्ति को उचित कार्य ही सौंपना चाहिये। हमारी सोच ऐसी हो कि हमें दयालुता भी रखनी चाहिये और हमें विवेकशील भी होना चाहिये। दयालुता और विवेकशीलता साथ साथ चलती हैं तभी सामंजस्य रहता है। मूलतः वो आदमी जो विश्वास कर रहा है। वो अपने ऊपर विश्वास कर रहा है और जो अपने ऊपर विश्वास करता है एक दिन उस पर संसार का हर व्यक्ति विश्वास करता है। जो आज नहीं कर रहा वो कल अवश्य करेगा। उसे भीतर में महसूस होगा कि इस व्यक्ति पर विश्वास करना चाहिये। भले ही प्रकट में वो कुछ भी कहता रहे। ये हमारी अब तक की सबसे बड़ी पूंजी है कि हम कितने लोगों के विश्वास पात्र बन सके। यही हमारे आकलन का पैमाना है।

लोग कहते हैं किसी पर विश्वास हो जाना यह बात गले नहीं उतरती क्यों कि यहां सभी ईमानदार नहीं हैं, लेकिन इसके उपरान्त लोग ऐसे हैं जिनका विश्वास सभी पर है। ऐसे लोग सोचते हैं कि ये आदमी कहां जाएगा। अपने आप से भाग कर कहां जाएगा। ये कब तक नजरें चुराएगा। एक दिन ऐसा आएगा कि इसे स्वयं अपने किए हुए अविश्वासों पर दुख होगा। इसीलिए वे नुकसान भले ही उठा लें लेकिन फिर भी सामने वाले पर उनका विश्वास नहीं डगमगाता। ये सही रूप में मानव होना है। बचपन में हमारा विश्वास हमारे माता पिता पर होता है और मां का विश्वास तो बहुत ही गूढ़ होता है। फिर अपने रिश्तेदारों पर और फिर मित्रों पर विश्वास होता है। अंत मे कहते हैं कि आम मनुष्य के लिए दो.चार लोग ही ऐसे होते हैं जिन पर विश्वास किया जा सके लेकिन यह स्थिति पलट भी सकती है। खुद दूसरों का विश्वास पात्र बन कर हमारे हृदय में जब किसी के लिए अविश्वास की भावना नहीं होती है तो हम ये समझें कि हमारे भीतर का झरना हम बहुत ही तेज गति से बहा रहे हैं। तब व्यक्ति उमंग में रहता है। असीम प्रेम में रहता है। विश्वास एक भीतर का जज़्बा है। भीतर अगर ये पुख्ता हो तो बाहर भी झलकता है। हमारे आचरण में झलकता है। हमारे व्यवहार में झलकता है। हमारी बोली में झलकता है। भीतर के विश्वास का विस्तार इतना गहरा और लंबा चौड़ा है कि कोई भी चीज होना उससे परे नहीं। सारी बात भीतर की है। बाहर कुछ नहीं। बाहर वही हो रहा है जो भीतर चल रहा है इसलिए भीतर की दुनिया स्वच्छ होती है तो हर एक पर विश्वास होता है ये भीतर की स्वच्छ दुनिया ही होती है कि हमारा खुद अपने ऊपर विश्वास हो जाता है। ज़रा गौर करने वाली बात है यह।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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