-वर्धमान महोत्सव के शिखर दिवस पर शांतिदूत ने चतुर्विध धर्मसंघ को दी पावन प्रेरणा
-साध्वीप्रमुखाजी ने भी जनता को किया उद्बोधित
-स्थानीय विधायक व मेयर सहित कई अन्य गणमान्यों ने आचार्यश्री से प्राप्त किया आशीर्वाद
पारस शर्मा. राजकोट (गुजरात)
राजकोट में तेरापंथाधिराज, महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण के मंगल प्रवास का तीसरा और आखिरी दिन तथा तेरापंथ धर्मसंघ के वर्धमान महोत्सव के त्रिदिवसीय कार्यक्रम का भी शिखर दिवस। वर्धमान समवसरण में बने मंच पर निर्धारित समयानुसार युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण विराजमान हुए और उनके दोनों ओर साधु-साध्वियां विराजे तो ऐसा लगा कि तेरापंथ धर्मसंघ के महासूर्य की श्वेत रश्मियां चहुं ओर प्रस्फुटित हो रही हों। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से शिखर दिवस के कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। मुनिवृंद ने इस अवसर पर गीत का संगान किया।
वर्धमान महोत्सव के शिखर दिवस पर तेरापंथ धर्मसंघ की नवमी साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने जनता को प्रतिबोधित किया। तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण ने वर्धमान महोत्सव के शिखर दिवस पर समुपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि वर्धमान होना अभीष्ट है। विकास की पराकाष्ठा तक आदमी न पहुंच जाए, तब तक उसे वर्धमान रहना चाहिए। वर्धमान रहने के लिए परिश्रमवान भी बने रहना चाहिए होता है। कोई वर्धमान होना तो चाहे, लेकिन परिश्रम न करे, आलस्य करने लगे तो भला उसकी क्या और कितनी वर्धमानता हो सकती है।
आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु
आदमी जीवन में वर्धमान बने, उसका एक आधार है, उसका पुरुषार्थी होना। आलस्य तो मनुष्य का उसके शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु होता है और परिश्रम, उद्यम के समान कोई बंधु नहीं होता। पुरुषार्थ आदमी के लिए कर्त्तव्य है। भाग्य जैसा भी हो, आदमी को पुरुषार्थी बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को भाग्य की ज्यादा चिंता ही नहीं करनी चाहिए। चिंता अथवा चिंतन पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। भाग्य ज्ञातव्य तो हो सकता है, किन्तु कर्त्तव्य पुरुषार्थ ही होता है। आदमी को अपने जीवन में अच्छा पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे बीज का वपन हो तो उसका कभी अच्छा फल भी प्राप्त हो सकता है। आदमी में परिश्रमशीलता होनी चाहिए। हमारे तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य आचार्यश्री भिक्षु स्वामी के जीवन को पढें तो उनके जीवन में पुरुषार्थ था। उनके जीवन के अंतिम चतुर्मास के श्रावण महीने में भी उनमें पुरुषार्थ बना रहा। वैसे समय में भी वे गोचरी जाने आदि का कार्य करते थे। वर्धमान बने रहने के लिए परिश्रम की आवश्यकता होती है। आचार्यश्री तुलसी के जीवन को देखें तो कितनी परिश्रमशीलता दिखाई देती है। उन्होंने अपने जीवनकाल में कितने प्रवचन, कितने साहित्य के लेखन आदि का पुरुषार्थपूर्ण कार्य किया। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने भी कितना पुरुषार्थ किया था। परिश्रम केवल शारीरिक परिश्रम ही नहीं, बौद्धिक परिश्रम भी बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। संगठन, संस्था के संचालन का कार्य भी पुरुषार्थ का है। हम सभी में पुरुषार्थ की लौ भी यथायोग्य रूप में जलती रहे, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आगम कार्य तो काफी कुछ हो चुका है, आगम के कार्य को निर्धारित समयावधि से पूर्व सम्पन्न हो जाए, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आगम संपादन कार्य और भिक्षु वाङ्मय को समय से सम्पन्न करने को आचार्यश्री ने संबद्ध साधु-साध्वियों को उत्प्रेरित किया।
इन्होंने भी किया संबोधित
आचार्यश्री ने साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री व साध्वीवर्याजी को भी विशेष आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री ने संवाददाता पारस शर्मा को बताया कि सभी केन्द्रीय संस्थाओं आदि में भी वर्धमानता के बने रहने का मंगल आशीष प्रदान किया। राजकोट के प्रवास के संदर्भ में कहा कि हमें राजकोट में प्रवास व कार्यक्रम के लिए इस आत्मीय युनिवर्सिटी का परिसर प्राप्त हुआ है। शिक्षा संस्थान से जुड़ा स्थान मिला हुआ है। स्वामी नारायण संप्रदाय से जुड़ा हुआ है। यह संस्थान भी खूब धार्मिक-आध्यात्मिक विकास करता रहे। आचार्यश्री ने वर्धमान महोत्सव के त्रिदिवसीय कार्यक्रम की सुसम्पन्नता की घोषणा की। राजकोट की विधायक दर्शिता शाह ने आचार्यश्री के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त कहा कि परम श्रद्धेय, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी का राजकोट में पहली बार पावन पदार्पण हुआ है। हम सभी राजकोटवासियों का यह सौभाग्य है कि आचार्यश्री के साथ इतने साधु-साध्वीजी महाराज के दर्शन का लाभ भी प्राप्त हुआ है। आपकी वाणी का लाभ हम सभी को प्राप्त हो रहा है। समता व सद्भाव की प्रेरणा दे रहे हैं। मेरी प्रार्थना है कि आगे भी जब भी अनुकूलता हो, हमारे राजकोट को पुनः ऐसा सौभाग्य प्रदान करें। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। राजकोट-ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भी अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। आज भी कई लोगों ने आचार्यश्री के दर्शन व मंगल आशीर्वाद का लाभ प्राप्त किया। राजकोट की मेयर श्रीमती नयनाबेन पढरिया ने आचार्यश्री के दर्शन मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। सादर उपाश्रय के अध्यक्ष श्री किशोरभाई दोसी, श्रीमती रजनी मालू, श्रीमती कृतिका जैन गोंडल, श्रीमती मीनाक्षी चौपड़ा व योगेन्द्र मालू ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आत्मीय यूनिवर्सिटी से स्वामीनारायण संप्रदाय के स्वामी त्यागवल्लभजी ने कार्यक्रम में अपने वर्तमान गुरु प्रेमस्वरूप स्वामीजी द्वारा आचार्यश्री की भक्ति में लिखे गए पत्र का वाचन किया और अपने स्थान पर पधारने हेतु कृतज्ञता ज्ञापित की। आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।